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________________ साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि जैन एकता : आधार और विस्तार आचार्यश्री विजय नित्यानन्दसूरी जैन एकता की हर कोई बात करता है किंतु उसका प्रतिफल? प्रतिफल आज दिन तक शून्य में विलीन है। धूल में हर कोई लट्ठ मार रहा है किंतु एकता का सूत्र नजर नहीं आ रहा है। हाथी के दांत दिखाने के और तथा खाने के और होते है ! संगठन हेतु कभी किसी के हाथ बढ़े भी तो वे हाथ बढ़ते-बढ़ते ही जड़वत् हो गये। निराशा में आशा की एक किरण ला रहे हैं - आचार्य श्री विजय नित्यानंदसूरी जी म. ! आप द्वारा आलेखित एकता के पाँच सूत्र अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। - सम्पादक एकता कैसी हो ? एक विचारक ने लिखा है - “संगठन का मतलब है, एक साथ मिल-जुलकर परस्पर एक दूसरे का सहयोग करना।" प्रकृति संगठन चाहती है, संगठन के आधार पर ही । संसार चलता है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण देखना हो तो कहीं दूर मत जाइए, अपने शरीर पर ही एक नजर डालिए। शरीर में विभिन्न अवयव हैं. अंग-उपांग हैंहाथ, पैर, आँख, कान, नाक जीभ आदि । इस शरीर के भीतर पेट है, हृदय है, यकृत है, गुर्दा है, इन सबके व्यवस्थित कार्य संचालन से शरीर चल रहा है। देखिए ये सब अलग-अलग हैं, सबका काम भी अलग-अलग है, स्थान भी अलग हैं। किन्तु फिर भी सब एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। हाथ-पैर परिश्रम करते हैं, मुंह भोजन ग्रहण करता है, पेट उस भोजन को पचाता है, रक्त आदि रस बनते हैं। हृदय प्रति क्षण धड़कता रहकर उस रक्त को हजारों नसों में फेंकता है। अशुद्ध रक्त को स्वयं ग्रहण करता है, शुद्ध रक्त को नसों में प्रवाहित करता है। गुर्दा रक्त को शुद्ध/रिफाइन करता है। इस प्रकार प्रत्येक अवयव की अपनी-अपनी जिम्मेदारी है, सब स्वतंत्र हैं किन्तु फिर भी एक दूसरे से जुड़े हैं। यदि पुरुष का एक हाथ या एक पैर बेकार हो जाता है तो दूसरा हाथ पैर अकेला ही पूरी जिम्मेदारी उठा लेता है और देखने का सब काम एक ही आँख पूरा कर लेती है। दो गुर्दे हैं, जिन्हें किडनी कहते हैं। यदि एक किडनी खराब हो जाती है तो दूसरी किडनी पूरे शरीर में रक्त शुद्धि का काम अकेली करती जाती है। हृदय का एक बाल्व बन्द पड़ जाता है या एक फेंफड़ा काम नहीं करता है, तो इसका दूसरा अंग अपने आप सब काम पूरा कर लेता है। शरीर के सभी अंग बिना किसी शिकवे-शिकायत के स्वयं ही पूरी जिम्मेदारी से शरीर का संचालन करते रहते हैं और मनुष्य को पूरे जीवन काल तक जीवित/ सक्रिय रखते हैं। सब अवयव एक-दूसरे से अलग होते हुए भी एक दूसरे के लिए काम करते हैं, एक दूसरे के क्षतिग्रस्त या नष्ट होने पर उसका पूरा काम अकेला ही करता जाता है - सामाजिक चेतना का, सामूहिक सहयोग भावना का कितना बड़ा और आश्चर्यकारी उदाहरण आपके सामने है। प्रकृति ने आपको सामाजिकता का, संगठन का, पारस्परिक सहयोग और मेल-जोल का कितना सुन्दर पाठ दिया है, परन्तु आप हैं कि इस पर ध्यान ही नहीं दे रहे हैं। मैं पूछता हूँ, आप जो भाषणों में, चर्चाओं में संगठन एकता और सहयोग की बड़ी-बड़ी लच्छेदार बातें करते हैं। कभी सोचा है, आपने, कि संगठन कैसे चलता है, एकता १६ जैन एकता : आधार और विस्तार | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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