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साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि
कठोर, दूसरों के हृदय को पीड़ा पहुँचाने वाला वचन नहीं बोलना चाहिए । महाशतक से कहो वह इसकी आलोचना प्रायश्चित करे । '
सत्य के साथ भद्रता, मधुरता का मिलन ही, सत्य को उपादेय और लोकमान्य बनाता । इसलिए सत्य के श्रेष्ठतम अद्वितीय साधक भगवान् महावीर भी सत्य के साथ हियं सच्चं अणवज्जं अकक्कसं आदि नियम जोड़ देते हैं। सत्य हितकारी हो, अकर्कश हो, मधुर हो, मर्मघाती न हो / मन को पीड़ाकारी न हो। ऐसा मधुर हितकारी सत्य बोलने वाला लोक में यश और कीर्ति का भागी होता है ।
व्यक्तित्व में छिपी संभावनाओं के द्रष्टा
भगवान् महावीर सर्वज्ञ थे । यह एक सत्य है । वे भूत-भविष्य के ज्ञाता थे । परन्तु इस विशिष्टता से हटकर हम उनकी जीवन दृष्टि पर विचार करें तो यह एक सत्य उजागर होता है कि वे व्यक्ति के भीतर छिपी असीम संभावनाओं को देखते थे और उनको उद्घाटित करते थे। बीज के भीतर वट बनने की क्षमता का ज्ञान तो सभी को है परन्तु उस क्षमता का सम्मान करना और उसे उद्घाटित करने का अवसर प्रदान करना, यह जीवन दृष्टि किसी-किसी के पास ही होती है।
अन्तकृद्दशा सूत्र में एक प्रसंग है । जब अतिमुक्तक कुमार श्रमण भावनाओं में बहकर पानी में अपनी नाव तिराता है और स्थविर आकर भगवान् से उसकी शिकायत करते हैं - भन्ते ! आपका बाल शिष्य तो वर्षा के पानी में नाव तिराता है । यह अभी अबोध है। तब भगवान् अतिमुक्तक कुमार को कुछ नहीं कहते, न ही किसी प्रकार का प्रायश्चित्त देते हैं । न ही डांटते हैं, किन्तु उन
१. उपासक दशा सूत्र
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स्थविर श्रमणों को ही कहते हैं- "हे श्रमणों ! तुम इस बाल मुनि की अवज्ञा मत करो। इसकी अवहेलना मत करो, यह बहुत सरल आत्मा है । इसी भव में मोक्ष जाने वाला चरम शरीरी है। इसलिए इसे खमाओ, इसको जो कटु वचन कहे हैं उसके लिए क्षमा मांगो। "
यह है बीज में वट की असीम संभावना का दर्शन बालमुनि के भीतर छिपी चरम शरीरी की श्रेष्ठता का दर्शन कराते हैं। उसकी सरलता और सहजता का सम्मान करते हैं। वर्तमान में भविष्य को देखते हैं और उज्ज्वल भविष्य को उद्घाटित कर उसे संयम में उत्साहित करते हैं और साधना में सतत आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं ।
ज्ञातासूत्र में मेघकुमार का प्रसंग है जब वह रात भर नींद नहीं आने के कारण विचलित हो जाता है और साधु जीवन छोड़कर वापस अपने राजमहलों में लौट जाने के लिए भगवान् के पास आता है तो भगवान् उसके भीतर की आकुलता को समझते हैं, छटपटाहट पहचानते हैं । परन्तु उसकी अधीरता को प्रताड़ित नहीं करते। उसे कठोर या अप्रिय शब्दों में लांछित नहीं करते, किन्तु उसके भीतर छिपी संवेदना को, सहिष्णुता को जगाते हैं । कुछ भी नहीं कहके उसे उसका हाथी का पिछला भव सुनाते हैं । बस, अपना पूर्व जीवन सुनकर ही वह जागृत हो उठता है । अपनी भूल पर पश्चाताप करता है और भगवान् के चरणों में पुनः स्वयं को समर्पित कर देता है । यह प्रसंग बताता है, भगवान् महावीर मानव - मनोविज्ञान की दृष्टि से प्रत्येक व्यक्ति को भीतर से टटोलते थे, उसकी भावनात्मक चेतना को मूर्च्छित संवेदना को जगाकर उसे स्वयं ही जागृत होकर आगे बढ़ने का अवसर प्रदान करते थे।
इस प्रकार की अलौकिक जीवन दृष्टि ने सैकड़ों
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भगवान् महावीर के जीवन सूत्र
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