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________________ जैन संस्कृति का आलोक व्यक्तियों का भविष्य संवारा है। पापी हत्यारे अर्जुनमाली में क्षमतावीर श्रमण की तस्वीर देखते हैं। क्रूर, उग्र विषधर चंडकौशिक की जहरीली फुकारों में भी वे उसके कल्याण की संभावना सुनते हैं। इसी दिव्य दृष्टि ने पापियों को, अधमियों को साधुता और श्रेष्ठता के पथ पर बढ़ाया आज जब हम भगवान् महावीर के जीवन सूत्रों पर विचार करते हैं तो आगमों में यत्र-तत्र सर्वत्र बिखरे उन जीवन सूत्रों को और घटनाओं के साथ जुड़े उस जीवन दर्शन को समझने की, स्वीकारने की जरूरत है। वही आज हमारा मार्गदर्शन करेगी और हमें अंधकार में प्रकाश का पथ दिखायेंगी। । जैन साहित्य के सुप्रतिष्ठित विद्वान् श्री श्रीचंद सुराणा ने जैन श्रमणों / साध्वियों के अनेक ग्रन्थों का संपादन एवं प्रकाशन किया है। आपने आगम साहित्य का विशेष अध्ययन किया एवं आचारांग, उत्तराध्ययन, दशवैकालिक आदि सूत्रों के हिन्दी एवं अंग्रेजी में सुंदर चित्रात्मक संस्करणों का प्रकाशन किया। आप आगरा स्थित “दिवाकर प्रकाशन" के निदेशक हैं। इस प्रतिष्ठान ने दिवाकर कथा-माला के अंतर्गत चित्रात्मक जैन कथाओं का प्रकाशन कर जैन साहित्य को लोकप्रिय बनाने का अभूतपूर्व कार्य किया है। आप जैन दर्शन के गम्भीर ज्ञाता हैं। आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर द्वारा प्रकाशित अनेक आगमग्रन्थों के संपादन व प्रकाशन का कार्य आप द्वारा हुआ है। 'देवेन्द्र भारती' मासिक के यशस्वी संपादक। “आदमी आत्म हत्या पर उतारू कब होता है? जब वह किसी आवेश में होता है। भावों के अतिशय आवेग के बिना आत्महत्या नहीं होती। शान्ति में आदमी मरता नहीं है। आदमी जब भी मरता है अशान्ति में मरता है। क्रोधादि में वह उत्तेजित होता है, तभी मरने को तैयार होता है। और वैसे कोई आदमी को कहते कि “मैं तुझे मार दूंगा” या “तूं मरजा” तो देखो क्या सोचता है आदमी? इसने मुझे यह कैसे कह दिया? माँ अपने बेटे को भले ही कहती रहे कि “इससे तो मर जाना ही बेहतर था तेरा" आदि-आदि। किंतु गली-मोहल्ला का कोई व्यक्ति कह दे कि “तेरा बेटा मर जाए” फिर देखो माता के मन पर क्या बीतती है? लड़ती है, झगड़ती है – “मेरा बेटा क्यों मर जाये! तूं ने कहा तो कहा कैसे? मेरा बेटा मर जाये।" माता नहीं चाहती किन्तु स्वयं कहती रहती है। घर में झगड़ों से तंग आकर कभी स्वयं के लिए तो कभी पुत्र आदि के लिए कि “मर जाता तो अच्छा था” – यह आवेश तो है ही किन्तु आवेश में भी तारतम्य, कमोवेशी रहती है। माता का आवेश मंद ही रहता है, प्रायः वह अंतर से न स्वयं मरना चाहती है न ही बच्चों को मारना।" - सुमन वचनामृत भगवान् महावीर के जीवन सूत्र Vain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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