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जैन संस्कृति का आलोक
दोष लग रहा है। भन्ते ! क्या मेरा कथन सत्य है, या एक तरफ प्रभु सत्य के पूर्ण पक्षधर हैं तो साथ ही आनन्द श्रावक का कथन सत्य है ?
लोक नीति व लोक व्यवहार को भी महत्व देकर चलते भगवान् महावीर कहते हैं - “गौतम ! आनन्द श्रावक
हैं। इसलिए सत्य के साथ लोक नीति को जोड़ने की बात का कथन सत्य है। तुमने उसके ज्ञान का अपलाप करके
कहते हैं - सच्चं पि होइ अलियं जं पर पीडाकरं वयणं ।" उसकी अवहेलना की है। अतः जाओ उसे खमाओ।"
जिस सत्य वचन को सुनकर किसी के हृदय पर चोट गौतम तुरंत जाते हैं और आनन्द श्रावक को खमाते हैं।
लगती है, दूसरों को पीड़ा होती है, ऐसा सत्य वचन अपनी भूल के लिए पश्चात्ताप करते हैं।
असत्य की कोटि में है। वह सत्य, सत्य नहीं जो दूसरों के
हृदयों पर घाव कर दे। ओए तहीयं फरुसं वियाणे - जो भगवान् महावीर सत्य के पक्षधर थे। एक श्रावक
सत्य कठोर हो, जिसके सुनने से सुनने वाले का मन खिन्न के सत्य-कथन का अपलाप करने पर अपने प्रमुख शिष्य
व दुखी हो जाता है, ऐसा सत्य वचन मत बोलो। गणधर को भी उसके पास भेजकर क्षमा माँगने को कहा। यह घटना बताती है, सत्य के सामने कोई छोटा-बड़ा
भगवान् महावीर का प्रमुख श्रावक है – महाशतक। नहीं। सत्य ही महान् है। सत्य ही भगवान है।
अपनी पौषधशाला में बैठा है, जीवन की अन्तिम आराधना
करता है, उसे अवधि ज्ञान हो जाता है। अपनी आराधना सच्चं खु भयवं' - जो सत्य की रक्षा करता है वह ।
में लीन है तभी उसकी पत्नी रेवती उसके साथ अत्यन्त स्वयं सुरक्षित रहता है, सत्य को भी भय नहीं। उपनिषद्
अभद्र दुर्व्यवहार करती है। बड़े ही अश्लील वचन बोलती का प्रवक्ता ऋषि कहता है -सत्यं वदिष्यामि ऋतं वदिष्यामि,
है, जिन्हें सुनते, सहते महाशतक का धैर्य जबाव दे जाता तन्मामवतु तद् वक्तारमवतु' - मैं सत्य बोलूंगा। मैं ।
है। तब वह उससे कहता है – रेवती ! तू इस प्रकार के न्याय युक्त वाणी बोलूंगा। वह सत्य मेरी और
दुराचरण के कारण घोर रोगों का शिकार होगी और अन्त बोलने/सुनने वालों की रक्षा करे। सत्य समस्त जगत् को
में मरकर प्रथम नरक में जायेगी। वहाँ भयंकर यातनाएँ अभय करे।
भोगेगी। सत्य भी मधुर बोलो
पति का यह वचन सुनकर रेवती उद्भ्रांत हो जाती ___ कहते हैं सत्य कड़वा होता है। सनने में. बोलने में है -- पति ने मुझे शाप दे दिया। इस प्रकार वह भयभीत सत्य कभी-कभी कठोर व अप्रिय लगता है। इसलिए होकर आकुल-व्याकुल होकर इधर-उधर भागती है।
छाती पीटती है।
छटपटा भगवान् महावीर सत्य को मानते हुए भी सत्य के साथ माधुर्य का योग करते हैं। भगवान् कहते हैं - भासियवं दूसरे दिन प्रातः भगवान् महावीर गणधर गौतम को हियं सच्चं - सत्य तो बोलो, परन्तु वह हितकारी हो और कहते हैं - गौतम ! तुम जाओ और श्रावक महाशतक प्रिय हो, मधुर हो । सत्य सुनकर किसी का हृदय दुखी न से कहो, उसने अपनी भार्या रेवती को पौषध में जो कठोर हो, किसी के मन पर आघात नहीं लगे। इस बात का भी कर्कश वचन कहे हैं, उन्हें सुनकर उसका हृदय व्यथित हो पूरा ध्यान रखना है।
उठा है। भले ही सत्य वचन हो, परन्तु श्रावक को इतना
१. प्रश्न व्याकरण २
२. ऐतरेय उपनिषद् १/३
३. उत्तराध्ययन १६/२३
४. प्रश्न व्याकरण २ .
५. सूत्र १४/२१
भगवान् महावीर के जीवन सूत्र
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