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________________ साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि हम बिना विचारे ही करते जाते हैं या लोक दिखावे के रूप में प्रवाह में बहते जाते हैं। इसलिए हमारे क्रिया कलापों में, धार्मिक कहे जाने वाले क्रिया कांडों में न तो तेजस्विता होती है न ही हृदयस्पर्शिता होती है। विचार शून्य क्रिया हमारे आचरण को प्रभावशाली नहीं बना सकती और न ही कोई जीवन में परिवर्तन ला सकती है। जिस क्रिया व आचार के पीछे विचार नहीं है, उससे अच्छे परिणाम की क्या आशा की जा सकती है? इसलिए भगवान् महावीर का यह सबसे मुख्य जीवन सूत्र है - तत्थ भगवया परिण्णा पवेइया' - भगवान् ने यह प्रज्ञा, विवेक, विचार बताया है कि जो भी काम करो, पहले उसका चिन्तन मनन करो, विवेक करो। विवेक की रोशनी हमारे कर्म को चैतन्य और परिणामकारी बनायेगी। __इसलिए ऐसे ज्ञानी को, चिन्तनशील को कोई उपदेश या शिक्षा की भी जरूरत नहीं रहती। उद्देसो पासगस्स णत्थि।' जो स्वयं द्रष्टा है, जो अपना मार्ग स्वयं देखता है, उसे क्या किसी दूसरे मार्ग दर्शक की जरूरत रहती है? किमत्थि उवाही पासगस्स? न विज्जइ - क्या विचारशील, विवेकशील द्रष्टा को कभी उपाधि, परेशानी या चिन्ता होती है? नहीं होती। भगवान महावीर का यह चिन्तन हमें जीवन का सबसे पहला नियम समझाता है कि जो करो, वह विवेकपूर्वक करो। ___ दूसरी बात वे अपने ज्ञान को दूसरों पर नहीं थोपते हैं, किन्तु उसी के भीतर ज्ञान दृष्टि जगाते हैं। उसे स्वतंत्र चिन्तन, स्वतंत्र विचार करने का अवसर देते हुए कहते हैं - मइमं पास - हे मतिमान, तू स्वयं विचार कर, मैंने कहा है, इसलिए तू मानने को बाध्य नहीं है। किंतु अपनी बुद्धि की तुला पर तोलकर इसकी परीक्षा कर और फिर विश्वास कर । भगवान् महावीर का यह कथन मानव की बुद्धि पर, उसकी विचार क्षमता पर गहरा विश्वास प्रकट करता है। अध्यात्मवादी आचार्य कुन्दकुन्द कहते हैं - जह विसमुव जतो विजो पुरिसो ण मरणमुवयादि। जिस प्रकार औषध का ज्ञाता वैद्य विष खाता है या औषध के रूप में विष देता है तब भी उससे मृत्यु नहीं होती, अपितु वह विष औषध भी रोग का प्रतीकार करने वाला होता है। ___ आज हमारे जीवन में चिन्तन की, जागृति की, विवेक की कमी आ रही है। हम जो कुछ कर रहे हैं, उसके पीछे या तो परम्परा की लीक पीटी जाती है या रूढ़ि के रूप में सत्य से जुड़ो ___ भगवान् महावीर का दूसरा महत्वपूर्ण जीवन सूत्र हैसया सच्चेण सम्पन्ने । सदा सत्य से जुड़े रहो। सच्चे तत्थ करेजुवक्कम । जो सत्य हो, उसमें पुरुषार्थ करो, पराक्रम करो। सत्य ही संसार में मूल-भूत शक्ति है। इसलिए सच्चस्स आणाए उवट्ठिए स मेहावी मारं तरइ। जो बुद्धिमान सत्य का आधार लेकर चलता है, सत्य का पक्ष लेता है या जीवन में सत्य का सहारा लेता है वह सब प्रकार के भयों को जीत जाता है। सब प्रकार के कष्टों से पार पहुँच जाता है। यहाँ तक कि मृत्यु को भी जीत लेता है। भगवान् महावीर के सामने गणधर गौतम आते हैं। वे कहते हैं – भन्ते ! आनन्द श्रावक कहता है, उसे ऐसा अपूर्व अवधि ज्ञान हुआ है, जिससे वह विशाल क्षेत्र को देख सकता है, परन्तु मैंने उसे कहा है, ऐसा विशाल अवधिज्ञान श्रावक को नहीं हो सकता है, तुम्हें असत्य का ४. समयसार १/४ ५. सूत्रकृतांग १५/३, आचारांग सूत्र १/१ १. आचारांग २/६ २. आचारांग ३/४ ३. आचारांग ३ ६. सूत्रकृतांग २/३/६४ ७. आचारांग ३ ८. वही भगवान् महावीर के जीवन सूत्र | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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