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है । आचार से अभिप्राय है-व्यक्ति के जीवन का चलन । चलन जितना साफ सुथरा होगा उतनी ही हिंसा कम होगी, झूठ का परिहार होगा, चौर्य का परिहार होगा,. व्यभिचार, दुराचार आदि अब्रह्मचर्य का परिहार होगा, परिग्रह का परिहार होगा । चलन जितना स्वस्थ होगा उतना ही हमारा जीवन भी स्वस्थ होगा।
" आचारः प्रथमो धर्मः " आचार जीवन का पहला धर्म है। आप पूछ सकते हैं कि आखिर आचार है क्या ? मन से सोचना, वाणी से वोलना और काया के द्वारा करना इसी का नाम तो आचार है । कोई भी कार्य निष्पन्न होता है तो तीनों योगों से निष्पन्न होता है ।
वाणी, विचार और व्यवहार का सम्यक रूप ही आचार है और यह आचार ही जीवन के लिए धर्म का रूप है। जैसे धर्म की उपासना हम आत्मशुद्धि के लिए, कर्म निर्जरा के लिए करते हैं वैसे ही आचार की उपासना भी हम जीवन को स्वच्छ बनाने के लिए करते हैं ।
प्रश्न उठता है कि धर्म क्या है ? इसका समाधान है - “ धार्यते इति धर्मः” अर्थात् जो हमें धारण करे, हमारे जीवन को ऊपर उठाए उसका नाम धर्म है । तो यह आचार जो है यह भी धर्म है । यह धर्म इसलिए है कि इसका आचरण करने से जीव कभी नारकीय नहीं बनता, कभी पशु नहीं बनता, कभी दानव नहीं बनता। धर्म का पालन करने वाला, आचार की आराधना वाला व्यक्ति पतन की दिशा में नहीं जा सकता। वह उत्थान ही करेगा। मनुष्य से वह देव वन सकता है, देवाधिदेव बन सकता है।
आचार की आराधना से हमारे जीवन का ओछापन समाप्त हो जाएगा विचार और व्यवहार में सम्यक् दृढ़ता आएगी। पशुता मिटेगी मनुष्यता आएगी । नरक खो जाएगा दिव्यता प्रगट होगी । •••
प्रवचन - पीयूष - कण
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प्रवचन - पीयूष - कण
कुछ क्षण अपने लिए भी निकालिए
मोहासक्त व्यक्ति सत्य को नहीं देख सकता है । मोह में तो उसे अच्छा ही अच्छा नजर आता है। एक बड़ी पुरानी कहावत है- सावन में सब ओर हरितिमा खिल जाती है । हरी - कोमल घास उग आती है । पर गधे उस घास को खाते नहीं हैं। उसे देख-देख कर ही खुश होते रहते हैं। राजी होते रहते हैं और इधर से उधर कुलांचे भरते रहते हैं । दौड़ते रहते हैं । भाद्रपद का महीना बीतता है तो घास सूखने लगती है तो वह गधा रोता है । पश्चात्ताप करता है कि वह घास कहां गई ।
बन्धुओ ! बुरा मत मानना । यही हालत है हमारी । भरा पूरा परिवार होता है। व्यक्ति देख-देख कर प्रसन्न होता रहता है। अपने भाग्य पर इठला कर कहता है कि देखे पांच बेटे हैं, पांच बहुएं हैं, पोते हैं, पोतियां हैं। यह सब मेरे अपने हैं ।
जरा विचार कीजिए..... चिन्तन कीजिए कि क्या ये सब आपके हैं? कल तो ये आपके नहीं थे। कल फिर आएगा कि ये आपके नहीं रह जाएंगे। जिनके लिए आप दिन रात भागे फिरते हैं, सुख चैन को तिलांजलि दे बैठे हैं ....... ज्ञानियों की दृष्टि में वे आपके नहीं हैं। रात भर बिताने को आप इस जीवन रूपी वृक्ष पर आ बैठे हैं। इस वृक्ष पर आश्रय प्राप्त करने आए अन्य पक्षियों के मोह में आप पड़ेंगे तो प्रभात में आपको पछताना पड़ेगा जब सब पक्षी अपनी-अपनी दिशाओं में उड़ जाएंगे ।
मोह का वृक्ष स्वार्थ के धरातल पर विकसित होता है । स्वार्थ पूरे होते ही यह वृक्ष आधार हीन हो जाता है । इस सत्य को आप अपने जीवन में निश्चित रूप से अनुभव भी कर चुके होंगे। फिर भी किसी सज्जन के पुत्र-पुत्री अथवा पुत्रवधु भाग्यवान होते हैं तो उसकी सेवा हो जाती है, पर मृत्यु का क्षण तो सब विलीन कर ही देता है ।
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