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साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि
आहार, व्यवहार और आचार
व्यक्ति का आहार, व्यवहार और आचार जब तक दुरुस्त नहीं होगा तब तक उसका, उसकी समाज का और उसके धर्म का दूसरों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। आज यदि हमें अपने धर्म को प्रभावी बनाना है तो हमें अपने आहार पर ध्यान देना होगा। हम क्या खा रहे हैं? हमें क्या खाना चाहिए? हम भक्ष्य खा रहे हैं या अभक्ष्य खा रहे हैं, इस पर हमें चिन्तन करना होगा। आज हमारा अधिकांश आहार रेडिमेड/बना-बनाया आता है। अक्सर वह अभक्ष्य जैसा होता है। उसकी पैकिंग पर फार्मूला नहीं लिखा होता है। लिखा भी होता है तो उस पर विश्वसनीयता का कोई सुदृढ़ आधार नहीं होता है। घर हम जल्दी में होते हैं। आसान मार्ग चुनते हैं। एक • तकिया कलाम बन गया है आज कि - 'कुण माथा फोड़ी
करे।' जो मिलता है बाजार में हम उसे ही ले आते हैं। घर पर बनाने की कोशिश नहीं करते। कौन बनाए। हम श्रम से जी चुराते हैं। नतीजा यह होता है कि हम अपने आहार पर ध्यान नहीं दे पाते हैं। पुरानी कहावत है"जैसा खावे अन्न वैसा होवे मन,"
"जैसा पीवे पानी वैसी बोले वाणी।" हम जैसा अन्न खाएंगे, जैसा जल पीएंगे हम वैसे ही हो जाएंगे। अपने आहार पर ध्यान देना बहुत आवश्यक
साधनहीन हो लेकिन अपनी वाणी को खराब नहीं करता है, वह निम्न भाषा का उपयोग नहीं करता है, अपने व्यवहार की गरिमा को गिरने नहीं देता है।
व्यवहार के साथ ही हमें अपने आचार पर भी ध्यान देना होगा। आचार रक्षा के लिए हमें अपनी पुरानी मर्यादाओं का अध्ययन करना होगा। आज के युग में यदि अपेक्षित है तो उनमें परिवर्तन भी करना होगा। आज हम किधर जा रहे हैं? हमारे बच्चे क्या कर रहे हैं? इस पर दृष्टि डालिए। ___आज आपवादिक विवाह हमारे समाज में बढ़ते जा रहे हैं। माता-पिता की सोच भी बदल गई है। वे सोचते हैं - जीवन उन्हें विताना है, हमें क्या। जाति और कुल का विचार गौण हो गया है। लड़का स्वतंत्र हो गया है पली चुनने में, लड़की स्वतंत्र हो गई है पति चुनने में। माता-पिता को, बुजुर्गों को, जिनके पास जीवन का विस्तृत अनुभव होता है वीच से विदा कर दिया गया है। यह हमारे आचार की सरक्षा पर एक बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह है।
इस प्रश्न को अनुत्तरित छोड़ देना, या इससे आंखें चुरा लेना समझदारी नहीं है। ऐसा करना आल्मघाती होगा। हमें अपने आचार को सुदृढ़ बनाना होगा। पवित्र
और स्वच्छ बनाना होगा। अपनी संतानों में बचपन से ही सुसंस्कार डालने होंगे। उन्हें कुसंगति से बचाकर रखना होगा।
हमारा आहार, व्यवहार और आचार सम्यक् बने । ऐसा होगा तो हमारा जीवन ही आगम वन जाएगा। न केवल हम अपने मित्रों को ही धार्मिक बना पाएंगे अपितु, अन्य लोगों को भी हम प्रभावित कर सकेंगे.... उन्हें श्रेष्ठ जीवन जीने की प्रेरणा दे सकेंगे। ...
आचार प्रथम धर्म है व्यक्ति के जीवन में आचार का बहुत बड़ा महत्त्व
अपने व्यवहार पर ध्यान दें। देखें कि हम किसके साथ कैसा व्यवहार करते हैं। कैसे उठते-बैठते हैं। किसके साथ किस प्रकार से बोलते हैं। छोटों के साथ हमारा क्या व्यवहार है। ये वातें ध्यान देने योग्य है। क्योंकि हमारे जाति-कुल-खानदान की पहचान हमारे व्यवहार और वचन से ही होती है। उच्च कुल का व्यक्ति भले ही निर्धन हो,
प्रवचन-पीयूष-कण |
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