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________________ प्रवचन-पीयूष-कण धर्म की यह स्पष्ट घोषणा है कि आत्मा ही परमात्मा है। बीज एकाएक वृक्ष नहीं तो जाता है। उसे स्वयं को परमात्मा आत्मा से अलग नहीं है। यदि अलग होता तो मिट्टी में दफन करना पड़ता है। स्वयं के अस्तित्त्व को आत्मा कभी परमात्मा न बन पाता। आत्मा बीज रूप है, खण्डित करना पड़ता है। उसके विखण्डन से ही वृक्ष की परमात्मा वृक्ष रूप है। बीज में वृक्ष होने की पूर्ण संभावना प्रथम सूचना कोंपल फूटती है। उसे मौसम के तीखे तेवरों और क्षमता है इसीलिए एक दिन वह वृक्ष बन जाता है। का सामना करना पड़ता है। ज्येष्ठ की तपिशें और पौष क्षद्र से बीज को देखकर यदि आप यह कहें कि की सर्दी को अपने सीने पर सहना पड़ता है। तब वह इससे इतना बड़ा वक्ष कैसे उत्पन्न होगा तो यह आपकी वृक्ष हो पाता है। यदि ये सब आघात उसे स्वीकार नहीं अज्ञानता का ही दर्शन होगा। क्योंकि कि जगत में आज हैं तो वह वृक्ष होने की संभावनाओं से पूर्ण होकर भी वृक्ष तक जितने वृक्ष विकसित हुए हैं वे क्षुद्र बीजों से ही प्रगट नहीं बन पाएगा। लेकिन वे नन्ही कोपलें सब कुछ झेलने हुए हैं। को तैयार रहती हैं। शनैः शनैः विकसित होते-होते, होते___ महावीर की आत्मा में परमात्मा प्रकट हुआ, ऋषभदेव होते एक दिन महावृक्ष हो जाती हैं। की आत्मा में परमात्मा के फूल खिले, राम भगवान बने । आप भी महावृक्ष....अर्थात् परमात्मा हो सकते हैं। इन पुरुषों में प्रगट हुई भगवत्ता स्पष्ट इंगित है कि हमारे आप यदि परमात्मा होना चाहें तो कोई बाधा आपको रोक भीतर भी वह क्षमता और योग्यता निहित है कि हम भी नहीं सकती। किसी में इतनी शक्ति नहीं है कि आपके परमात्मा हो सकें। हमारी आत्मा में भी परम के पुष्प खिल संकल्प को खण्डित कर सके। वस; आवश्यकता है कि सकें। संकल्प निर्मित हो। आप संकल्प कर लें और सम्यक् __ हम परमात्मत्व की संभावनाओं से पूर्ण होते हुए भी विधि से साधनाशील बन जाएं तो वह क्षण दूर नहीं जब संसार में क्यों भटक रहे हैं? हमारे भीतर अनन्त प्रकाश आपमें..... आपकी आत्मा में परमात्मा उतर आएगा। की क्षमता होते हुए भी हम अन्धकार में क्यों भटक रहे आपके जीवन के समस्त अन्धकार खो जाएंगे। समस्त हैं? आनन्द रूपा होकर भी हम दुखों की मूर्त्त क्यों बने विषाद धुल जाएंगे। तब आपको किसी परमात्मा के हुए हैं? हमारे भीतर का परमात्मा प्रगट क्यों नहीं होता समक्ष खड़े होकर प्रार्थना करने की आवश्यकता न रहेगी कि वह आपको अन्धेरे से प्रकाश की ओर ले जाए। मृत्यु इसके लिए हमें थोड़ा चिन्तन करना पड़ेगा। आप से अमृत की ओर ले जाए। यह जानते ही हैं कि घी दूध से निकलता है। दूध के तुम्हारे अन्धेरों को सिवाय तुम्हारे कोई नहीं मिटा कण-कण में धी विद्यमान है। परन्तु जब तक उसे एक । सकता। तुम्हारी मृत्यु के हन्ता तुम हो। किसी अन्य से विशेष विधि से उवाला, जमाया और मथा नहीं जाता तब इसकी अपेक्षा मत करना। अन्य से अपेक्षा करोगे तो तक आप दूध से घी प्राप्त नहीं कर सकते हैं। भटक जाओगे। क्योंकि तुम्हारे परमात्मा तुम स्वयं हो। यही बात आत्मा पर चरितार्थ होगी। आत्मा से अपने परमात्मा को जगा लो। उसे पुकार लो। शेष किसी परमात्मा को प्रगट करने के लिए आत्मसाधना आवश्यक को पुकारने की जरूरत नहीं। अप्पा सो परमप्पा। इस है। स्वयं को तपाना जरूरी है। एक लम्वी साधना और सूत्र को आत्मसात् कर आगे बढ़ो। साधनाशील बनो। प्रतीक्षा अपेक्षित है तभी आत्मा से परमात्मा प्रगट होगा। तुम स्वयं मृत्यु-हंता हो जाओगे। अरिहंत हो जाओगे। | प्रवचन-पीयूष-कण 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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