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________________ वंदन-अभिनंदन ! मनुष्य जन्म को अमूल्य हीरे की उपमा दी जाती है | सदैव बना रहे। दीक्षा स्वर्ण जयंति के सुअवसर पर मेरा जिसकी कद्र कोई कद्रदान/जौहरी ही जानता है। कोटि कोटि वन्दन है, अभिनंदन है। हाँ, तो इस मनुष्य जन्म की कद्र को, मूल्य को दरबार में मेरे सतगुरु के, दुख-दर्द मिटाए जाते हैं। समझा, परखा, पंडितरत्न श्री सुमनकुमार जी महाराज ने गर्दिश के सताए लोग, यहां सीने से लगाए जाते हैं।। जो शेरों का बाना पहनकर निकल पड़े मैदान-ए- जंग में, आपश्री के चरणों में भावाजलि! विनयाज्जालि!! कर्मों से युद्ध करने, उनको पराजित करने । वह युद्ध आज भी निरंतर जारी है। ____ मेजर मुनि, पंजाब श्रद्धेय महाराज श्री ने आज तक कई महत्त्वपूर्ण पुस्तकें लिखी हैं तथा श्रमणसंघ में कई प्रतिष्ठित पद पाकर गुजरात को भी पावन करें । समाज की भरपूर सेवा की है। सत्य बात तो यह है कि आपके कोमल हृदय में श्रमणसंघ के प्रति कुछ कर गुजरने पण्डित रत्न श्रमणसंघ के मंत्रीवर श्री सुमनमुनि जी की शुभ भावना समाहित है। श्रमणसंघ के लिए आपश्री म. के पावन चरणों में सविधि वन्दन! अभिनंदन!! (इस जी का तन-मन अर्पण है। आपश्री जी प्रधानाचार्य पूज्य पावन प्रसंग पर!) आपश्री ने दक्षिण प्रान्त में धर्म जागृति श्री सोहनलालजी म.सा. की वाटिका के उज्ज्वल पुष्प का एक नया आयाम खड़ा किया है।.... अब आप अवश्य गुजरात पधारें। इस धरा को भी पावन करें। परम श्रद्धेय पंडितरत्न श्री सुमनकुमारजी म.सा. पंजाब - गिरीशमुनि, गुर्जरप्रदेश प्रवर्तक पूज्यपाद श्री शुक्लचंद्रजी म.सा. के संत परिवार में चमकते-दमकते सूर्य के समान है। जो अपनी तेजोमय आभा से जैन समाज को चमका रहे हैं। आप एक कुशल ! फैले यश सौरभ, दिन दूना,, रहबर की भांति समाज को सुमार्ग दिखा रहे हैं। रात चौगुना __ आपश्री जी पूज्य गुरुदेव श्री महेन्द्रकुमार जी म.सा. के बेशकीमती लाल हैं। जो अपना अमूल्य समय देकर ___ परम श्रद्धेय श्री गुरुदेवजी म.की दीक्षा-स्वर्ण-जयंति श्रमणसंघ को चमकाना चाहते हैं, सुधार लाना चाहते हैं। अभिनंदन की सूचना प्राप्त कर मन गद्-गद् हो गया। संघ को गौरवमय स्थान दिलाना चाहते हैं। आपकी यह पंडितरत्न श्री शुक्लचंदजी म.सा. की कृपा का ही यह शुभ भावना कब फलीभूत होती है, यह तो समय ही प्रतिफल है कि आप एक ज्ञानवान्, गुणवान्, चारित्रवान् बताएगा। अस्तु, आपश्री जी एक नेक दिल दरिया संत संत है तथा साहित्यिक प्रतिभा के धनी एवं खोजी गवेषक रत्न हैं। आपश्री जी की बलवती शुभभावना है, कि जैन हैं। आपश्री ने ही नाभा से आचार्य श्री अमरसिंहजी म. समाज अपने पाँवों पर मजबूती के साथ खड़ा हो ताकि का चित्र प्राप्त किया और जैनदर्शन की अतिविशिष्ट सामग्री कोई विरोधी अंगुली उठाने की हिम्मत न करे। प्राप्त की जिसका आलेख आत्मरश्मि के अंक में पढ़ने को आप चिरायु हों। आपका वरद्हस्त इस दास पर | मिला। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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