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________________ साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि आपश्री का यश-गौरव दिन दूना रात चौगुना प्रसारित | गुरुदेव! सुध लो, अपने होता रहे इसी श्रद्धा के साथ प्रणति! वतन की मुनि लाभचन्द्र पंजाब आत्मीयता की प्रतिमा, गुणों के पुञ्ज, श्रद्धा के केन्द्र श्रेष्ठमना पूज्य गुरुदेव श्री सुमनमुनि जी म.सा. के चरणाम्बुजों में कोटिशः वन्दनाभिनन्दन! | उदारचेता श्रमण “प्रभो! आपकी मधुर स्मृतियाँ कायम हैं, अमिट हैं। अपने कभी 'अपने' आत्मभाव से नहीं जा सकते! आपका पंजाब प्रान्त के यशस्वी मनस्वी संत मुनि श्री सुमनकुमार अभाव अतीव खटकता है। प्रत्यक्ष दर्शनों की तमन्ना भी जी म. जैन जगत के आकाश पर सूर्य की भांति देदिप्ययान प्रबल रहती है। बेशक, दिल से दूर नहीं पर आँखें भी हैं। आपका संयमीय जीवन ज्ञान की आभा से चमत्कृत, तृप्त होना चाहती हैं।” दर्शन की दिव्यता से अलंकृत तथा चारित्र की पदयात्राएं __यह ठीक है कि आपश्री भक्ति की नूतन जंजीरों में करके जन जागरण के कई अविस्मरणीय उपक्रम किए बंध चुके हैं पर अपने घर (पंजाब-प्रान्त) की भी तो सुध लेनी चाहिए। महामना अन्यत्र जाकर रह नहीं सकते, उन्हें तो घर आना अनिर्वाय होता है। ठीक है. संघ __आपकी प्रवचन शैली अद्भुत है जिसे सुनकर श्रोताओं का हृदय निर्मल बन जाता है और वे धर्म में रम जाते हैं। स्थिति दयनीय है, जर्जरित है पर अन्ततः परिणाम.....? समाज के कल्याण के लिए आप सदैव चिन्तनशील रहते आओ, भगवन्! आपकी इधर भी आवश्यकता है, अपने हैं। आपकी मंगल प्रेरणाओं से समाज में कई रचनात्मक वतन की भी सुध लो! कार्य हुए हैं। अनेक स्थानों पर स्थानक भवन तथा कृपानिधे! पंजाब की ओर मुख कीजिएगा, कदम समाजसेवी संस्थाएं अस्तित्व में आई हैं। बढ़ाइएगा! हम प्रतीक्षा में है....! किं बहुना, इत्यलम्! ऐसे उदारचेता, सत्यनिष्ठ श्रमण की दीक्षा-स्वर्ण जयंती 0 साध्वी उमेश (शिमला) शास्त्री पंजाव पर हम उनका अभिनन्दन करते हैं। 0 सुरेश मुनि 'शास्त्री' आलन्दुर (चेन्नई) यथानाम तथागुण सम्पन्न मुनिराज जियो और जीने दो । परम श्रद्धेय श्रमणसंघीय सलाहकार, मंत्री श्री सुमनमुनि जी म. के दर्शनों का सौभाग्य मुझे सर्वप्रथम सन् १६६४ | में जयपुर चातुर्मास के समय प्राप्त हुआ। तब मुझे आप | १४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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