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________________ साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि है, यह अनुकम्पा का परिणाम है और सम्यण दृष्टि का है। मोह आसक्ति रूप है। यह व्यक्ति को पदार्थों में लक्षण है। मूर्च्छित कर देता है। मोह के कारण व्यक्ति जीवन के असम्यग् दृष्टि में आभास मात्र रहता है और सम्यम् । अन्य पक्षों को गौण कर, विवेक शून्य हो, हेय और दृष्टि के पास ज्ञान रहता है। यह वृत्ति उसे बराबर प्रेरित उपादेय का ज्ञान नहीं रखता। करी रहती है। जिस वृक्ष की जड़ सूख गई हो उसे कितना भी सींचिए वह हरा-भरा नहीं होता, वैसे ही मोह के क्षीण होने पर कर्म भी हरे-भरे नहीं होते। मोह किसी भी प्रकारके पारिवारिक, सामाजिक, और राष्ट्रीय जीवन में जब विकृति आती है, तो वह मोह कर्म वैराग्य/विराग के कारण आती है। कई बार व्यक्ति कह देता है - मुझे कोई मोह नहीं है, वह मोह से दूर है, किन्तु ऐसा वैराग्य उसी का सफल है, जिसको आत्मा का ज्ञान वास्तव में नहीं होता। वह किसी न किसी अवस्था में मोह है। आत्मज्ञान के बिना वैराग्य शून्य है। ऊपरी वैराग्य अवश्य रखता है। खानदान की जरासी बात चल पड़े। का कोई महत्व नहीं। जिस प्रकार किसी ने भोजन छोड़ा, किसी बुजुर्ग के नाम की बात चल पडे तो फिर देखो कैसा वस्त्र त्याग दिये और कई प्रकार की उपभोग क्रियाएं तमतमाता है? मोह नहीं है तो छोड़ो इन सब को। फिर त्याग दी, लेकिन उसे आत्मज्ञान नहीं है। आत्मज्ञान के क्या फर्क पड़ता है किसी के कुछ कहने से, कहने दो बिना छोड़ा गया एवं किया गया त्याग तो देह का कण्ट उसको लेकिन नहीं, मोह रहता है। मोह को जीतना बहुत हो जायेगा। त्याग ज्ञान पूर्वक करना चाहिये, वही निर्जरा कठिन है। का कारण बनेगा। सकाम निर्जरा होगी कर्म की। अन्यथा मोह एक प्रकार का उन्माद है । इसे बड़ी कठिनाई से वह बालकर्म या अज्ञानकर्म ही कहतायेगा। अतः विराग दूर किया जा सकता है। रावण जैसे विद्वान् पुरुष का के साथ सही ज्ञान होना अति आवश्यक है। उन्माद इसका उदाहरण है, अपना सर्वनाश सामने उपस्थित जहाँ विराग होगा, वहाँ त्याग सहज ही आ जायेगा होते हुए भी उसे दिखाई न दिया। इंग्लैंड (ब्रिटेन) के बादशाह जार्ज पंचम ने एक नारी के मोह में, ग्रेट ब्रिटेन क्योंकि इच्छाएँ/वासनाएँ शान्त हो जाने से मन हल्का हो का सिंहासन छोड़ना स्वीकार कर लिया। नेपोलियन, जायेगा। मन का हल्कापन वस्तु को त्यागने में ही रहता सिकन्दर, हिटलर आदि सभी ने राज्य विस्तार, धन वैभव, है, वस्तु को ग्रहण करने में नहीं। अहंता की पुष्टि के लिए, मोह के लिये किया, दर-दर की विराग में आसक्ति भाव का उपशम और त्याग है। खाक छानी, भयंकर कष्ट सहे। किसने भटकाया उन्हें? विरति/विरमण - इससे आश्रव का निरोध होता है। कर्म मोह ने। निर्जरा के लिये इन्द्रिय संवर, योग संवर आदि से आत्मानुभव सब प्रपंच का कारण मोह है। सुख-दुख, आकुलता- प्रकट होता है, इसलिये वैराग्य, त्यागादि और आत्मज्ञान व्याकुलता, आदि मानसिक यातनाओं का कारण मोह ही दोनों एक दूसरे के पूरक है। ४० सुमन वचनामृत | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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