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सुमन साहित्य : एक अवलोकन
की यात्रा कराने वाली एक अनूठी कृति है। उसके एक- एक दोहे में विराट भावों का संस्पर्श है, जो अपनी स्पष्टता के लिए विस्तृत विश्लेषण की अपेक्षा रखता है। यह अत्यंत आह्लाद का विषय है कि शुद्ध आत्मतत्त्व जैसे गहनतम विषय को श्रमणसंघीय सलाहकार, मंत्री पूज्य महामुनिवर श्रीसुमनमुनिजी म. ने अपने प्रवचन का विषय बनाया और प्रत्येक दोहे को अपनी अनुभूति व संभूति के सांचे में ढालकर विस्तृत एवं तलस्पर्शी विवेचन प्रस्तुत किया है। __ग्रंथ को देखने से यह अनुभव होता है कि आप श्री "शब्द सम्राट्" हैं। एक-एक शब्द को सुबोध सरस एवं रुचिपूर्ण बनाने के लिए अनेक समानार्थक शब्दों का उपयोग किया है। यही नहीं, आत्मा, परमात्मा, कर्ता, भोक्ता, मतार्थी, आत्मार्थी, मोह, मोक्ष, सद्गुरु आदि जटिल विषयों को उस प्रकार प्रस्तुत करना कि श्रोता चटखारे ले लेकर सुने और अंत में अगाध तृप्ति का अनुभव करने लगे, यह वस्तुतः आपकी प्रवचन शैली के मनमोहक रूप को उजागर करता है।
समानार्थक दिखाई देने वाले “आकुलता और व्याकुलता” का पृथक्करण करते हुए पृष्ठ १७८ में आप लिखते हैं
आकुलता - इच्छित, मनचाही वस्तु नहीं मिलती तब तक मन में उठने वाले संकल्प-विकल्प ही “आकुलता"
से संवार कर निज रूप दिलाने में आपने तो कमाल ही कर दिया है। ऐसी चिन्तन-मनन एवं कल्याणकारिणी, साथ ही अध्यात्मरस के रसिकों को आनन्द-रस में सराबोर करने वाली सुंदर कृति को प्राप्त कर मुमुक्षु आत्माएँ परम तृप्ति का अनुभव करेंगी, ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास है।
- साध्वी विजयश्री एम.ए. महत्वपूर्ण ग्रन्थ
शुक्ल प्रवचन भाग १ से ४ ग्रन्थ सुन्दर ही नहीं अति महत्त्वपूर्ण भी है। ___अध्यात्मभाव से भरा यह ग्रन्थ हिन्दी जगत् में निश्चित ही श्रेष्ठता सिद्ध करेगा। भव्यात्माएं आत्मा की गतिविधियों से ज्ञात होंगे तथा जीवन के कई प्रश्नों का समाधान भी प्राप्त करेंगे। लेखक को वन्दन! अभिनन्दन !!
- गिरीशमुनि मुमुक्षुओं की परम निधि ____ तत्त्वप्रज्ञ श्रीमद्राजचन्द्रजी की चतुर्दश पृष्ठीय गेय .. कृति आत्मसिद्धि एक ऐसी परम निधि है, जो मुमुक्षु-जगत् की एक अपरिहार्यता बन गयी है। १४२ दोहों की इस लघु कृति के प्रतिपाद्य को मेधावी संत प्रवचनकार श्री सुमन मुनिजी म. ने 'शुक्ल प्रवचन' शीर्षक चार खण्डों (लगभग १,००० पृष्ठों) में बड़ी सरल-सुबोध भाषाशैली में प्रस्तुत किया है। ‘आत्मसिद्धि' में भेद विज्ञान पर अधिक बल देते हुए श्रीमद् ने आत्मा की अनन्त शक्ति का अचूक/सुगम परिचय दिया है।
ग्रन्थ के आवरण का आकार/रंग-संयोजन भी विलक्षण है। ऐसा लगता है कि चित्रकार ने 'आत्मसिद्धि' की तमाम खूबियों को उसमें बड़ी कलात्मकता से समेट लिया है। रंग हैं : श्याम, रक्त, श्वेत/क्रमशः बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा के परिचायक। तीन वृत्त हैं, जो क्रमशः
व्याकुलता – प्राप्त, मिली हुई वस्तु के लिए यह मेरे से दूर न हो जाये ऐसी चिंता ही “व्याकुलता” है।"
अथवा यों कहें कि इष्ट, प्रिय संयोग की तीव्र इच्छा आकुलता है तथा उसके वियोग की चिंता व्याकुलता है।
इसी प्रकार ज्ञान-विज्ञान, निर्जरा-व्यवदान, प्रमत्त आदि अनेक समानार्थक शब्दों को अपनी तीक्ष्ण-प्रज्ञा की छेनी
शुक्ल प्रवचन : एक दृष्टि में
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