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________________ साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि इन्हीं स्थितियों को अंकित करते हैं। मुखपृष्ठ के शीर्ष पर जी म. ने किया है। पूज्य श्री सुमनमुनि जी म. धीर-गंभीर संयोजित कमल अनासक्ति/निर्लिप्तता का प्रतीक है। कुल सन्त, गहन अध्ययनशील, मनस्वी, अद्भुत् शब्द-शिल्पी मिला कर चारों भाग अध्यात्म के समस्त पहलुओं को विद्वान् हैं। इतना ही नहीं वे इतिहास के मर्मज्ञ मनीषी, सुरुचिपूर्ण/प्रामाणिक भाषा-शैली में प्रस्तुत करने में सफल सिद्ध हस्त लेखक, कुशल सम्पादक और प्रसिद्ध प्रवचनकार हैं। ग्रन्थ मननीय/संकलनीय है। भी हैं। - तीर्थंकर (मासिक) फरवरी '६६ शुक्ल प्रवचन का आधार है श्री रायचन्द्रजी की प्रसिद्ध कृति – “आत्मसिद्धि”। पूज्य श्री सुमन मुनि जी आत्मसिद्धि का शोधपूर्ण भाष्य । वर्षों तक इसका पारायण करते रहे। उनका चिंतन-मनन श्रीमद् रायचन्द्र जी वर्तमानकाल के सर्वमान्य अध्यात्म और तुलनात्मक अध्ययन इस विषय में अनवरत चलता रहा। विभिन्न नगरों में उन्होंने आत्मसिद्धि पर प्रवचन । पुरुष हुए हैं जिनसे गाँधी जी जैसे विश्व प्रसिद्ध युग देकर अध्यात्म जिज्ञासुओं को इसका रस पान कराया। पुरुष भी मार्गदर्शन लेते थे। उन्हें आत्मा की अनन्य जिससे जिज्ञासु समाज आत्मतोष से सराबोर हुआ और अनुभूति प्राप्त थी और वीतराग देव द्वारा प्ररूपित एक इस अध्यात्म-रस को चिरस्थाई बनाने के लिए प्रकाशन की एक सिद्धान्त को उन्होंने अनुभव की कसौटी पर कसा मांग निरन्तर होती रही जो भारत के दक्षिणांचल में जाकर था। अपनी उन सभी अनुभूतियों को रायचन्द्र जी ने मातृ मूर्त रूप ले सकी। उसी का परिणाम है -“शुक्ल प्रवचन" । भाषा गुजराती में जन कल्याण के लिए लिपिबद्ध किया है। उनकी अनुभूति परक प्रसिद्ध रचना है- “आत्मसिद्धि” । पूज्य श्री सुमन मुनिजी म. की कृपा से “शुक्ल प्रवचन" के चार भाग प्राप्त हुए। उन्हें क्रमशः पढ़ना शुरू इसमें रायचन्द्रजी ने छह विषयों पर आत्मा के अस्तित्व, किया तो ऐसा हुआ कि मन की तन्मयता उसके साथ नित्यत्व, कर्तृत्व भोक्तृत्व, मोक्ष के अस्तित्व और मोक्ष के बढ़ती गई, जैसे-जैसे पढ़ता गया तो मन श्रद्धेय श्री सुमन उपाय पर विशेष प्रकाश डाला है। इन छहों विषयों को मुनि जी म. की विद्वत्ता व व्याख्यान शैली के प्रति श्रद्धा विस्तार से दोहा छन्द में बड़े ही गभार भावा से प्रस्तुत से विनत होता गया। अपनी अल्पज्ञता का बोध हुआ। किया है जो कि अध्यात्म जगत् में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती __ ज्यूं-ज्यूं आगे बढ़ा तो लगा ऐसे प्रवचन क्या यह है। भाषा शैली एवं बदलते भौतिक परिवेश के कारण “आत्मसिद्धि” पर लिखा गया एक भाष्य है। एक-एक इस रचना का विस्तृत व्याख्या का अपेक्षा चिरकाल से शब्द पर, एक-एक पद पर जिस ढंग से विवेचन किया विशेषतः हिन्दी भाषी तत्त्व जिज्ञासुओं के लिए थी। इस गया, उससे 'सायनाचार्य" द्वारा लिखा गया वेदों का कार्य को वही कर सकता था जो उसी श्रेणी का विद्वान् भाष्य स्मरण हो आता है। साधक हो, जिसने श्री रायचन्द्रजी के भावों को आत्मसात् जब भाषा-प्रवाहशीलता को देखता हूँ तो मन गद्किया हो। साथ ही गुजराती, हिन्दी भाषाओं एवं जैन गद् हो जाता है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे महाराज श्री दर्शन एवं सैद्धांतिक तत्त्वों का अनुभव हो। यह बड़ा सामने बैठे हैं और धारा प्रवाह प्रवचन कर रहे हैं। विषय श्रमसाध्य कार्य था। को सर्वोपयोगी बनाने के लिए गीतों का प्रयोग किया गया यह कार्य “शुक्ल प्रवचन" के माध्यम से पूज्यवर है जिससे साधारण पाठक भी सहज ही विषय को ग्रहण विद्वद्वर्य श्रमण संघीय सलाहकार एवं मंत्री श्री सुमनकुमार कर लेता है। आत्मसिद्धि का शोधपूर्ण भाष्य | Jain Education International de For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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