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________________ साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि मत अभिमत शुक्ल - प्रवचन : एक दृष्टि में “आत्म-सिद्धि पर पंडित प्रवर श्रमणसंघीय मंत्री ने आत्मसिद्धिशास्त्र के गहन विषय को अत्यन्त सरल, श्रीसुमनमुनिजी म. ने प्रवचन दिये हैं। मुनिश्री जी एक सहज, सुबोध भाषा में व्यक्त करने का सरल प्रयोग किया गम्भीर विचारक व जैनदर्शन के गहन अध्येता हैं। इनकी है। गहन, दुरूह विषय को सहज सरल बनाकर प्रस्तुत वाणी में ओज है, भाषा सरल, सुलभ एवं प्रवाही है तथा करना सफल प्रवचनकार की सबसे बड़ी सफलता होती है प्रवचन माधुर्य पूर्ण एवं चिन्तन गहरा है।" जिसमें पूज्य श्रीसुमनमुनिजी म.सा. खरे उतरे हैं। उनके प्रवचनों को पढ़ते हुए ऐसा अनुभव होता है जैसे सामने - आचार्य प्रवर श्रीआनन्दऋषी जी म.सा. बैठकर उनके मुखारविन्द से प्रवचन प्रवाह श्रवण कर रहे "शुक्ल-प्रवचन" पुस्तक को मैंने आदि से अन्त तक । हों। यह सुनिश्चित है कि इन सरल, सुबोध एवं साधना पढ़ा। पुस्तक अपने आप में अनूठी है। प्रवचनकार श्री सहायक प्रवचन से लाखों लोगों को प्रवचन का अनिर्वचनीय सुमनमुनि जी ने “आत्मसिद्धि” पर जो विवेचन और आनन्द प्राप्त होता रहेगा।" विश्लेषण किया है वह दिल को लुभाने वाला है। प्रवचनकार - उपाध्याय विशालमुनि की सहज प्रतिभा का संदर्शन यत्र-तत्र सहज रूप से किया “आत्मसिद्धि शास्त्र" एक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है। जा सकता है। ऐसे सुन्दर नयनाभिराम प्रकाशन के लिए आध्यात्मिक एवं तात्त्विक विचारों का एक सुन्दर खजाना साधुवाद ! है, जिनकी दृष्टि आध्यात्मिकता में सराबोर है वे ही आत्माएं - आचार्य श्रीदेवेन्द्रमुनिजी म.सा. इसे समझ पाती हैं। आपने अपने प्रवचनों में इसको आधार बनाकर जो विचार प्रकट किये हैं वे सुन्दर हैं, श्रीसुमनमुनि जी म. ने श्रीमद् रायचन्द्र के “आत्मसिद्धि सुव्याख्यायित हैं। साथ ही साथ यत्र-तत्र आगमीय स्थल शास्त्र" पर आधारित विभिन्न आगम एवं अन्य तात्त्विक जोड़कर इसे और भी महत्त्वपूर्ण बना दिया है। आज ग्रंथों के उद्धरण देते हुए पाठकवृन्द को सरस भाषा में आध्यात्मिक दृष्टि खोलने वाले ग्रंथों की अत्यधिक आध्यात्मिक रसपान कराने का सुन्दरतम प्रयास किया है। आवश्यकता है। उसकी पूर्ति में आपका यह योगदान भी पुस्तक के प्रत्येक पृष्ठ को पढ़ने पर अभिनव जागृति का श्लाघनीय है। मेरा तो यह भी विचार है - आध्यात्मिक संचार होता है। इन प्रवचनों में आध्यात्मिक, धार्मिक, दृष्टि के नहीं खुलने के कारण ही समाज में वैमनस्य, सामाजिक एवं लौकिक विषयों पर विश्लेषणात्मक विवेचन कटुता, साम्प्रदायिक मनोवृत्तियों को नग्न तांडव करने का किया गया है। स्थान-स्थान पर प्राकृत, पंजाबी शब्दों का अवसर मिलता है। हाँ, एक बात जरूर है, वह प्रयोग भी हुआ है। इससे मुनिश्रीजी की विद्वत्ता दृष्टिगोचर आध्यात्मिकता केवल शाब्दिक ही नहीं रहे किन्तु वह होती है। प्रवचनों की भाषा एवं शैली सुन्दर और प्रवाहमयी आन्तरिक भी हो तभी वह आध्यात्मिकता प्राणवान् होगी। - विनोदमुनि - आचार्य श्री डॉ. शिवमुनिजी म.सा. "आत्मसिद्धि-शास्त्र" अध्यात्म योगी महापुरुष श्रीमद् "शुक्ल प्रवचन" में प्रवचनकार श्रीसुमनमुनिजी म.सा. रायचन्द्रजी की आत्मा के अस्तित्व को लेकर परमात्मा तक | २० शुक्ल प्रवचन : एक दृष्टि में | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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