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________________ सर्वतोमुखी व्यक्तित्व दी। के कर कमलों से भेंट किया गया। समारोह का संचालन सेठ ने प्रास्ताविक भाषण करते हुए प्राकृत भाषा के महत्व संघ मंत्री श्री बी.ए. कैलाश चन्द जैन ने किया। एवं उसकी वर्तमान में आवश्यकता पर जोर दिया। दिनांक ६-११-१६६६ को दीपावली के नूतन वर्ष प्राकृत भाषा स्वाध्याय संघ बेंगलोर के विद्यार्थियों ने पर आयोजित विशेष धर्म सभा में प्रातः सवा छः से सवा प्राकृत भाषा में संवाद प्रस्तुत किया। समारोह के मुख्य सात बजे तक सामुहिक प्रार्थनाएं भजन संपन्न हुए, जिसमें अतिथि श्री मोहनलाल जी खोरीवाल ने श्री संघ को इस लगभग १००० व्यक्तियों ने हिस्सा लिया। मुनि श्री आयोजन के लिए बधाई दी। अखिल भारतीय श्वेताम्बर सुमन कुमार जी महाराज द्वारा बड़ा मंगल पाठ प्रदान स्थानकवासी जैन कान्फ्रेंस मन्त्री श्री जे. माणक चन्द जी किया गया। संघ मंत्री श्री बी.ए. कैलाशचन्द जैन ने श्री कोठारी एवं रतन हितैषी श्रावक संघ के कर्नाटक एवं संघ की ओर से सभी को नूतन वर्ष की मंगल कामनाएं आंध्रा प्रदेश अध्यक्ष श्री संपतराज जी मरलेचा ने सम्मेलन के लिए श्री संघ को बधाई एवं शुभकामनाएं दी। श्री सुमन मुनि जी महाराज सा. के ओजस्वी-तेजस्वी मार्गप्राकृत भाषा एवं जैन विद्वद् सम्मेलनः दर्शन एवं आशीर्वचन के पश्चात् मंगल पाठ संपन्न हुआ। __दिनांक १६-१७ नवम्बर १६६६ को द्विदिवसीय उद्घाटन समारोह का संचालन संघ मन्त्री श्री बी.ए. प्राकृत भाषा एवं जैन विद्वद् सम्मेलन श्री स्थानकवासी कैलाशचन्द जैन ने किया। कैलाशानन्द जैन ने जैन भवन, महावीर नगर, मैसूर-१ के प्रांगण में मुनि श्री सुमनकुमार जी महाराज सा. के सान्निध्य में संपन्न हुआ। जैन धर्म में प्राकृत भाषा का महत्त्वःसम्मेलन के अध्यक्ष श्रीमान् डॉ. एम.डी. वसंतराजैय्या जी प्राचीन काल में भारत वर्ष में संस्कृत भाषा शिष्ट जैन रहे। सम्मेलन की प्रेरणा एवं रूप रेखा को बनाने में लोगों की भाषा मानी जाती थी। विद्यार्थी अध्ययन हेत बेंगलोर के स्वाध्याय सन्मति पीठ के संस्थापक एवं । गुरुकुलों में रहकर संस्कृत भाषा का अध्ययन किया करते व्यवस्थापक श्रीमान शांतिलाल जी वनमाली सेठ श्री सन्मति थे। जन साधारण की बोलचाल की भाषा के लिए प्राचीन स्वाध्याय पीठ के अध्यक्ष सप्रसिद्ध ऑडीटर श्रीमान काल में प्राकृत को जनता ने मान्यता दी। भगवान महावीर मोहनलाल जी खारीवाल का प्रारम्भ से समापन तक पूर्ण का उपदेश प्राकृत भाषा के अर्ध मागधी में रहा था। सहयोग एवं मार्गदर्शन रहा। गणधरों ने भगवान की वाणी को गूंथा और ग्रन्थ साहित्य उद्घाटन समारोहः आदि की रचना की। अतः जैन समाज के लिए प्राकृत दिनांक १६-११-१६६६ को प्रातः १० बजे श्री भाषा जानना-सीखना अत्यन्त आवश्यक है। शांतिलाल जी वनमाली सेठ ने जैन ध्वजारोहण कर सम्मेलन प्राकृत भाषा संगोष्ठि के मूल प्रणेताःका शुभारम्भ किया। संघ अध्यक्ष श्री ए. केवल चन्द जी सिंगवी ने सम्मेलन के उद्घाटन पर स्वागत भाषण प्रस्तुत श्रमण संघीय सलाहकार मन्त्री मुनि श्री सुमनकुमार किया। मन्त्री श्री बी.ए. कैलाश चन्द जैन ने विद्वान का जी महाराज की मैसूर महानगर में सन् १६६६ के चातुर्मास परिचय, सम्मेलन की रूप रेखा एवं उसकी आवश्यकता काल में प्राकृत भाषा के लिए प्रबल प्रेरणा रही कि धर्म पर प्रकाश डाला। सम्मेलन प्रेरक श्री शांतिलालजी वनमाली की सही जानकारी सिखनी हो तो हर श्रावक को अपनी ६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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