________________
सर्वतोमुखी व्यक्तित्व
प्रवर्तक श्री रूपचंद जी म. का आगामी वर्षावास का है, गुरुदेव का तथा महाराष्ट्र में विराजित पूज्य आचार्य साधना सदन पूना में था तथा श्रद्धेय सलाहकार मंत्री जी देव का है। इस शरीर का स्वागत क्या हो सकता है? – 'मैं म.सा. का आगामी वर्षावास आदिनाथ सोसायटी पूना में । किस योग्य हूँ यह मुझे स्वयं को जानने की भी अभी बहुत था अतः वहीं ठहरे।
जरूरत है।' पूना संघ और सम्मेलन की उपलब्धि का परम श्रद्धेय मुनि श्री जी द्रुतगति से विहार करने के
उल्लेख करते हुए बताया कि सम्मेलन ने संगठन को कारण एवं सम्मेलन की कार्यवाही के कारण अस्वस्थ हो
हो दृढ़ता प्रदान की है जो शायद अर्द्धशताब्दी पर्यन्त शिथिलता गये थे अतः एक माह की स्थिरता रही। तदनंतर येरवड़ा
नहीं हो सकेगी। यह अन्य उपलब्धियों से सर्वोपरी है। तक आचार्य श्री के साथ विहार यात्रा कर पुनः आदिनाथ सोसायटी पधार गये।
तदनंतर चातुर्मासिक कार्यक्रम सम्पन्न होने लगे। चतुर्मासार्थ पूना-प्रवेश
धर्म एवं तप-त्याग की त्रिपथगा शाश्वत बहने लगी।
प्रातः प्रवचन “आत्मसिद्धि शास्त्र" पर नियमित होने लगे। सलाहकार मंत्री श्री सुमन मुनि जी महाराज ने अपने
मध्याह्न में तत्त्वार्थ सूत्र का पारायण तत्त्व जिज्ञासुओं को शिष्य समुदाय के संग आदिनाथ सोसाइटी पूना में चातुर्मास
विश्लेषणात्मक एवं व्याख्यात्मक पद्धति से करवाते थे। हेतु दिनांक ६-७-८७ दिन गुरुवार प्रातः ६ बजे मंगल प्रातः प्रार्थना के सुस्वर भक्ति रस ले वातावरण को पवित्र प्रवेश किया। इस शुभ अवसर पर ब्राह्मी बालिका संघ
बना ही रहे थे। की बालिकाओं ने मंगल कलश द्वारा महाराज श्री जी का
श्रद्धालुओं का, दर्शनार्थियों का आवागमन प्रारंभ भव्य स्वागत किया। तदनंतर जुलूस सभा के रूप में परिणित हो गया।
रहा। पूना के माननीय महापौर श्री चन्द्रकान्तजी छाजेड़ एवं डॉ. कान्तिलाल जी संचेती स्वागत समारोह के मुख्य पूना संघ - आदिनाथ सोसायटी के पदाधिकारियों अतिथि थे।
एवं कार्यकारी सदस्यों का आपसी विवाद को निपटाया
मुनिश्री ने - परसरामजी चोरडिया - ट्रस्टी थे- सभी ने पूना संघ (साधना सदन) के अध्यक्ष श्री कचरदास
उनको इस्तीफे दिये और फिर पुनः पुनः कार्यकारीणी जी पोरवाल तथा (सादडी संघ के महामंत्री) श्री पोपटलाल
गठित हुई एवं पदाधिकारियों के चुनाव हुए। अमरचंदजी जी सोलंकी ने महाराज श्री का परिचय दिया तथा श्रमण
गांधी पुनः अध्यक्ष बने। सम्मेलन के संचालन में शान्तिरक्षक के गौरवपूर्ण दायित्व को निभाने का श्रेय दिया।
आचार्य श्रीने १६८६ में पूना चातुर्मास किया वहाँ
स्थानक के सन्निकट ही भूमिखंड था - चातुर्मास के दौरान श्रीवीतराग संघ के पदाधिकारी भाई-बहिनों ने भी
वहाँ पंडाल बनाया – पंडाल उठा दिया - दीवार नहीं तोड़ी महाराज श्री जी के भव्य स्वागत में भाग लिया। गई। दीवार तोड़ने के लिए जब उपक्रम हुआ तो प्रश्न
महाराज श्री ने अपने स्वागत का उत्तर देते हुए उठा कि यह जगह सोसायटी की है किन्तु स्थानक की भाषण में कहा कि यह स्वागत मेरा नहीं बल्कि साधुता भूमि का भाग भी उस में था। फलतः स्थानकवासी
पूना चातुर्मास
६७
Jain Education International
For private para
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org