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________________ साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि है वही दायित्व 'शांतिरक्षक' के भी होते हैं। सर्वसम्मति से युवाचार्य की बात सभा पटल पर उभरी तो दो नामों पर खुलकर चर्चा हुई, वे नाम थेपण्डितरत्न श्री सुमनमुनि जी म. ने इन दायित्वों का (i) सचिव श्री देवेन्द्रमुनि जी म. एवं सचिव डॉ. शिवमुनि समग्र रूपेण निर्वहन किया और सम्मेलन में पूर्णतया शांति जी म.। इन दोनों में एक का चयन करना अत्यन्त कठिन बनाये रखने के सद्प्रयास भी किये। काम था। इस समाधान के लिए उपाचार्य का नूतन पद १० दिवसीय श्रमण संघ सम्मेलन की प्रक्रिया अन्ततः सृजित करके एक को उपाचार्य और एक को युवाचार्य सानंद सम्पन्न हुई। घोषित करने का प्रावधान आया। प्रशंसनीय योगदान प्रश्न तो पुनः समुपस्थित था कि किसे युवाचार्य और किसे उपाचार्य बनाया जाए? मुनिश्री द्वारा सुचारू रूप से शांतिरक्षक पद भार संभालने एवं दायित्व निभाने के लिए कितने ही आत्मीय उसका समाधान था - "जिसका संयमकाल अधिक संतों श्रद्धालुओं के संस्तुति पत्र मिले । कतिपय नमूने इस है, वह उपाचार्य होगा और जिसकी संयम पर्याय कम है प्रकार है वह युवाचार्य।” फिर यह प्रश्न भी उभरा कि युवाचार्य का पद ही “पूना सम्मेलन में शांतिरक्षक" के पद का गौरव प्राप्त कर पंजाब को आपने जो सम्मान दिलवाया है उसकी समाप्त कर दिया जाए। किंतु समय की महत्ता को देखते जितनी भी सराहना की जाए कम है। आप जैसे सुयोग्य हुए पद यथावत् रहने दिया। तदनंतर उपाचार्य श्री देवेन्द्रमुनि जी महाराज को एवं युवाचार्य डॉ. शिवमुनि जी महाराज पंजाबी श्रमण से ऐसा ही आशा थी। पुनः पुनः लक्षाधिक को घोषित किया गया। साधुवाद - चंदनमुनि ‘पंजाबी' (कविरत्न) इस यक्ष-प्रश्न के समाधान में भी परम श्रद्धेय मुनि ___ आपने जो पंजाब का नाम उज्ज्वल किया है, वह । श्री की महती भूमिका रही। इतिहास में अमर रहेगा। तीन सौ संत-सतियों में 'शान्तिरक्षक' के पद को आपने जिस कुशलतापूर्वक निभाया है वह प्रस्थान पूना से स्वयं एक अविस्मरणीय घटना है। आप युग-युग जीएं पूना श्रमण सम्मेलन की कार्यवाही सुसम्पन्न होने के और ख्याति की ओर कदम बढ़ाते ही जाएं। पश्चात् आचार्य प्रवर सहित सन्तवृन्द का आदिनाथ सोसायटी - टी.आर. जैन, लुधियाना में पदार्पण हुआ। यहीं से संतप्रवर अपनी-अपनी गन्तव्यमहती भूमिका दिशा की ओर प्रस्थित हुए। ___सम्मेलन की मूल कार्यवाही के पश्चात् युवाचार्य पद आचार्य प्रवर श्री ने अहमदनगर हेतु, उपाध्याय श्री की परिचर्चा हेतु विशेष सभा प्रारंभ हुई। युवाचार्य हेतु केवलमुनिजी महा. ने सिकन्दराबाद के लिए, उपाध्याय तीन नामों की चर्चा हुई। दो नाम सर्व सम्मति से दो वर्ष श्री विशालमुनि जी म. ने धूलिया के लिए, सलाहकार पूर्व ही लिये जा रहे थे। गुप्त पद्धति से चिह्नित करके सुमतिप्रकाश जी म. ने आलिन्दी के लिए, युवाचार्य श्री निर्णय करना भी उचित नहीं था क्योंकि युवाचार्य पद शिवमुनि जी ने मुंबई के लिए, उपाचार्य श्री देवेन्द्रमुनि जी गौरवपूर्ण पद है एवं अनुशास्ता का पद है। म. ने नगर की ओर प्रस्थान किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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