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नेतृत्व में आचार्य श्री के निर्देशानुसार उपस्थित हुआ और श्रमण संघ के "सलाहकार " पद हेतु आचार्य श्री का पत्र दिया ।
संत-सम्मिलन : प्रशंसनीय योगदान
नासिक में उपाध्याय श्री पुष्करमुनिजी म. सचिव श्री देवेन्द्रमुनिजी म., उपाध्याय श्री विशालमुनि जी म., पंजाबी श्री विजयमुनि जी म., आदि संतों का सम्मिलन हुआ । एक सप्ताह स्थिरता रही। धर्मध्यान की पावन गंगा बहती रही। साध्वी मंडल भी वहाँ समुपस्थित था । इसी शुभ प्रसंग पर वहाँ के जीर्ण-शीर्ण जैन स्थानक के पुनर्निमाण की योजना का श्रीगणेश हुआ। श्री शांतिलालजी दूगड़ का योगदान प्रशंसनीय रहा।
पूना के निकट
नासिक से उपाध्याय श्री पुष्करमुनि म.सा. ने एवं श्री सुमनकुमार जी म. सा. ने अपनी-अपनी शिष्य सम्पदा के साथ, साथ-साथ विहार प्रारंभ किया। महावीर जयंति के पश्चात् द्रुतगामी विहार करते हुए पूना के सन्निकट आलिन्दी पहुँचे। आलिन्दी से कांतिलालजी चौरड़िया के बंगले पर पधारे।
उपर्युक्त थी
पूना आगमन की प्रक्रिया!...
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शांति-रक्षक पद
महाराष्ट्र मंडल के विद्यालय के प्रांगण में ठहरे मुनिवरों की रात्रि में सम्मेलन के लिए अनौपचारिक विद्यागोष्ठी एवं विचार-विमर्श हुआ करता था ।
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एकदा सायंकालीन प्रतिक्रमण के पश्चात् आचार्य श्री ने पण्डितरल श्रद्धेय श्री सुमनकुमार जी म. को बुलवाया और सम्मेलन संचालन हेतु 'शांति-रक्षक' पद का निर्वहन करने का आग्रह किया ।
सर्वतोमुखी व्यक्तित्व
मुनि श्री ने विनम्रता के साथ निवेदन किया कि आचार्यवर! मेरी प्रकृति एवं प्रवृत्ति से आप परिचित हैं, ही, मेरे में सहिष्णुता भी अल्प है अतः आप यह पद किसी अन्य को समर्पित करें। यही उचित रहेगा ।
आचार्य श्री ने प्रेमभरे शब्दों में कहा- “ मैंने कुछ सोच-समझ कर ही आपको यह पद देना चाहा है अतः इसे स्वीकृत करें ।” आचार्य श्री के अत्याग्रह पर मुनि श्री
तमस्तक होना पड़ा। तदननंतर वरिष्ठ मुनियों की सभा गोष्ठी हुई। जिसमें मुनि श्री जो विधिवत् 'शांतिरक्षक' का पद प्रदान किया गया। मुनिश्री जी ने भी कहा- शांतिरक्षक जो भी नियम बनाये, जो भी संचालन विधि अपनावे वह स्वीकार करनी होगी, अन्यथा मुझे त्याग पत्र देना ही उचित प्रतीत होगा ।
शांतिरक्षक पद की घोषणा प्रवर्तक श्री रूपचंदजी म. सा. ने की ।
दायित्व निर्वहन
शांतिरक्षक श्री का दायित्व इस प्रकार रहा - सभा में प्रश्न प्रस्तुत करना, सबसे उत्तर एकत्र करना, उन पर निर्णय सुनना । साथ ही साथ दर्शक मण्डल (साधु-साध्वी ) द्वारा भेजी गई शंकाओं का निराकरण करना। सभा को हर प्रकार का सहयोग देना एवं लेना, सभा के नियमों की परिपालना करवाना आदि -आदि ।
कोई भी सदस्य उच्छृंखलता करे और बिना इजाजत के बोलने का दुस्साहस करे तो उसे रोकना, उसके विरुद्ध निंदा - प्रस्ताव का अधिकार शांतिरक्षक को है ।
शांतिरक्षक का सर्वोच्च दायित्व यह होता है कि समन्वय पद्धति से आये हुए सभी प्रस्तावों को शांतिपूर्ण ढंग से पारित करवाना। .. लोकसभा या राज्यसभा में " राज्य सभा - अध्यक्ष" का जो स्थान एवं उत्तरदायित्व होता
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