________________
साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि
अहसास...!
वहाँ से नसीराबाद छावनी, भीलवाड़ा, चितौड़गढ़ पधारे। चित्तौड़गढ़ का भी अवलोकन किया। म्यूजियम एवं वहाँ के खंडहरों को देखकर इतिहास के माध्यम से पढ़े अतीत में खो गये। संसार की नश्वरता और जीवन की क्षणभंगुरता का मुनिश्री को अहसास हुआ। कुछ पलों के लिए वे चित्तौड़गढ़ का वैभव देखकर उसकी प्राचीनता में खो गये... कहाँ राजाओं के राज थे यहाँ, कहाँ खंडहरों में तबदील हो गये ! राजस्थान से मध्यप्रदेश में
चित्तौड़गढ़ से निम्बाहेड़ा होते हुए मध्यप्रदेश की सीमा में पधारे। नीमच, जावरा, मन्दसौर, रतलाम, इन्दौर पधारे । रतलाम में जैन दिवाकरजी के संत श्री प्यारेलालजी म. ठाणा २ के दर्शन हुए। इन्दौर में तपस्वीरत्न श्री मेघराजजी म., मुनि श्री सुदर्शनलालजी, पं. रत्न श्री उदयमुनिजी म. और श्री रमेशमुनि जी म. के सुशिष्य श्री विजयमुनि जी म. आदि सन्त विद्यमान थे। उनके दर्शन एवं सान्निध्य पाया। ये सभी सन्त गण भी पूना की ओर प्रस्थान करने वाले थे। स्मृति हो आयी...
इन्दौर में ही आचार्य श्री घासीलाल जी म. के शिष्यरल स्थविर श्री कन्हैयालालजी म. का ऑपरेशन हुआ था। दर्शन एवं सुखसातार्थ मुनि श्री सुमनकुमार जी म. अस्पताल पधारे। आपश्री को सर्वप्रथम देखकर मुनि श्री का हृदय गद्गद् हो उठा और आचार्य श्री आत्माराम जी म. की स्मृति हो आयी। ऐसा ही कद, ऐसी ही मीठी वाणी और
ऐसी ही आगम उक्तियाँ उनके मुख से निर्झरित हो रही थी। उन्होंने अजमेर सम्मेलन के संस्मरण सुनाते हुए आचार्य श्री कांशीराम जी म., पं. रत्न श्री शुक्लचन्द्र जी म. आदि के बारे में भी चर्चा की। संस्मरण सुनाये। श्री कन्हैयालालजी म. मध्याह्न में एक बजे मांगलिक आयोजन करते थे। इस समय महावीर भवन का हॉल खचाखच भर जाता था। ये मुनिश्रेष्ठ शान्त प्रकृति के धनी थे एवं दान्त तपस्वी थे। (कुछ ही माहों के पश्चात् मुनिश्रेष्ठ का विचरण करते हुए सड़क दुर्घटना में स्वर्गवास हो गया।) महाराष्ट्र में विचरण
मध्यप्रदेश का अंतिम नगर तथा महाराष्ट्र सीमा के निकट 'सेंधवा' मुनि श्री पधारे। वहाँ से धूलिया पधारे। यहाँ पर वरिष्ठ सलाहकार श्री जीवनमुनि जी म., श्री रूपेन्द्रमुनि जी म., प्रवर्तक श्री उमेशमुनि जी म. 'अणु' आदि संत-महात्माओं के दर्शन हुए। मालेगाँव में श्रमणसंघ के सचिव (वर्तमान में महामंत्री) श्री सौभाग्यमुनि जी म. 'कुमुद' का सम्मिलन हुआ। यहाँ साप्तहांत स्थिरता रही। प्रातःकाल एवं रात्रि को लोढ़ा भवन में सार्वजनिक प्रवचन हआ। यहीं पर श्री शांतिलालजी दगड आदि नासिक संघ का प्रतिनिधि मंडल आया और परम श्रद्धेय मुनि श्री को नासिक पधारने की पुरजोर विनति की।
मालेगांव से सौदाना, उमराणा, चांदवड़' होते हुए नासिक पधारे।
सलाहकार पद
नासिक पहुँचने से पूर्व विहार यात्रा में आदिनाथ सोसायटी, पूना का शिष्ट मण्डल श्री अमरचंद जी गांधी के
१. यहाँ का संघ अत्यन्त ही धर्मप्रिय है। यहाँ पर मुनिवरश्री के तायां गुरु पंडित श्री राजेन्द्रमुनि जी म. एवं श्री दाताराम जी म. ठाणा २ चांदवड़ में चातुर्मासार्थ विराजमान रहे थे। चातुर्मास के पश्चात् ही चाँदवड़ में ही श्री राजेन्द्रमुनि जी म. का - स्वर्गवास हो गया था। उन्हीं की संस्कृति में जैन स्थानक भवन का नाम श्री राजेन्द्र मुनि स्मारक भवन रखा गया है। यहीं पर श्री दाताराम जी म. से मिलन हुआ। (कालांतर में श्री दाताराम जी म. का स्वर्गवास भी यही हुआ) अतः चाँदवड़ दो महापुरुषों की स्मृति-स्थली है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org