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________________ साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि चादर महोत्सव का कार्यक्रम बड़े सुचारू रूप से सम्पन्न हुआ। शताधिक श्रमण-श्रमणियां उक्त प्रसंग पर पदार्पित थे। श्रद्धेय प्रवर्तक श्री जी के सान्निध्य में सामुहिक बैठक हुई और साध्वाचार पर चिन्तन-मनन हुआ । उत्साह और प्रसन्नता की मंगलवेला में प्रवर्तकपद महोत्सव सम्पन्न हो गया । प्रवर्तक पद चादर महोत्सव पर ही अहमदनगर से आचार्य श्री आनन्द ऋषि जी म. द्वारा प्रेषित " उपाध्याय पद घोषणा पत्र " आया। इस घोषणा पत्र से श्रमण समुदाय में पारस्परिक गतिरोध उत्पन्न हो गया जो आगे चलकर विराट विवाद के रूप में उभरा। अस्तु! श्रमण श्रमणी वृन्द मेरठ से विदा होने लगे । बड़ौत की ओर मेरठ से विहार करके श्रद्धेय चरण चरिनायक खतौली शामली, मुजफ्फर नगर, कांधला होते हुए बड़ौत पहुंचे । नव उद्घोषित उपाध्याय श्री मनोहर मुनि जी म. कुमुद भी बड़ौत पधारे। एस. एस. जैन श्री संघ बड़ौत की ओर से “उपाध्याय पद प्राप्ति वर्धापन समारोह" आयोजित किया गया। बड़ौत से आप श्री जी ऐलम, कान्धला, शामली होते हुए गंगोह पधारे। यहं से यमुना पार करके यमुनानगर • पधारे। माडल टाऊन उपनगरीय क्षेत्रों को स्पर्शते हुए विलासपुर, सदौरा, मुलाना होते हुए अम्बाला छावनी पधारे। यहां पर उपाध्याय श्री मनोहर मुनि जी से मिलन हुआ। जैन नगर होते हुए अम्बाला शहर उपाश्रय में पधारे। अम्बाला से उपाध्याय श्री जी के साथ राजपुरा, सरहिन्द, गोविन्दगढ़, खन्ना होते हुए लुधियाना पधारे । अभूतपूर्व स्वागत समारोह लुधियाना नगर में महासभा पंजाब तथा एस.एस. ५८ Jain Education International जैन संघ लुधियाना की ओर से पूज्य उपाध्याय प्रवर तथा श्रद्धेय चरितनायक का अभूतपूर्व स्वागत समारोह आयोजित किया गया। पूरे नगर को दुल्हन की तरह सजाया गया था । १०८ भव्यतम द्वारों का निर्माण कराया गया था समय थम सा गया था। नगर का आबालवृद्ध आपके आगमन पर चमत्कृत सा अनुभव कर रहा था। उपाध्याय पद को लेकर श्रमण समुदाय में अभी भी गतिरोध कायम था । लुधियाना श्री संघ तथा वहां विराजित मुनिराजों ने उपाध्याय श्री में अपनी आस्था प्रगट की तथा यहां पर पुनः उपाध्याय पद की घोषणा की। हजारों की जनसंख्या मौजूद थी । विद्वद्ल श्री रत्नमुनि जी म. ने इसी अवसर पर श्रद्धेय चरितनायक को " इतिहास केसरी” पद से विभूषित किया । लुधियाना का प्रवास अत्यन्त मनमोहक रहा । बड़ौत वर्षावास आप पूर्व में ही बड़ौत श्री संघ का वर्षावास मान चुके थे । फलतः लुधियाना से अहमदगढ़ मण्डी, मालेर कोटला, संगरूर, घग्गा, पातड़ां, खन्नोरी, टोहाना, नखाना, कैथल, असंध, पानीपत, गन्नौर, छपरौली होते हुए बड़ौत वर्षावास हेतु पधारे। नगर निवासियों ने पलक पांवड़े बिछाकर आपका स्वागत किया। बड़ौत नगर में यह आपका द्वितीय वर्षावास था। इससे पूर्व सन् १६५७ में आपने यहां वर्षावास किया था। बड़ौत व्यापार का केन्द्र तो है ही जैनधर्म का गढ़ भी है। यहां पर १५०० से २००० तक जैन घर हैं। चिकित्सा एवं शिक्षा की सुन्दर व्यवस्था है । अनेक जैन कॉलेज और विद्यालय हैं। आत्मसिद्धि शास्त्र तथा कल्याण मंदिर स्तोत्र पर आपके प्रभावक प्रवचन होते रहे । आबालवृद्ध में जागृति आई । तप-जप और धर्मप्रभावना अभूतपूर्व हुई । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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