SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 293
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सर्वतोमुखी व्यक्तित्व जीवन, जीवन ही बना रहे यह संभव नहीं है। मिटना अंगुली का उपचार कराया गया। पर “ज्यों-ज्यों नियति है। पर इस सत्य को..... जब यह अपने किसी दवा की मर्ज बढ़ता गया" की कहावत सत्य बन कर प्रियजन पर घटता है तो हजम कर पाना - विष को कण्ठ उभर आई। पीड़ा शान्त न हुई। इसी पीड़ा के साथ में धारण करने से कम कठिन नहीं होता है। शिवपुरी सुन्दरनगर आदि क्षेत्रों में पधारे। साथ-साथ रात्री व्यतीत हुई। १० सितम्बर को प्रातःकाल इलाज भा चलता रहा। मालेरकोटला के लिए आपने प्रस्थान किया। प्रलम्ब दूरी प्रवर्तक श्री जी के स्वर्गवास के पश्चात् पण्डित प्रवर को एक ही दिन में आप तय नहीं कर पाए। मालेरकोटला श्री शान्ति स्वरूप जी म. उत्तरभारत के नए प्रवर्तक से लगभग १० कि.मी. की दूरी पर रात्री विश्राम किया। घोषित हुए। मेरठ में प्रवर्तक-पद-चादर महोत्सव तथा ११ ता. को प्रातःकाल आप मालेरकोटला पहुंचे। लघु मुनि सम्मेलन का आयोजन निश्चित हुआ था। मेरठ ____ कदम थक चुके थे। हृदय भाव शून्य बन चुका का श्री संघ आप श्री के पास मेरठ पदार्पण की प्रार्थना के था। अब से पहले जब भी आप मालेरकोटला आते । साथ उपस्थित हुआ। साथ ही पंजाब महासभा ने भी थे....गुरु चरणों पर सिर रखते ही आपकी सारी थकान आप से आग्रह किया कि उक्त अवसर पर आपका मेरठ मिट जाती थी परन्तु अब वे चरण अदृश्य में विलीन हो पहुंचना आवश्यक है। श्रद्धेय श्री रल मुनिजी म. का भी चुके थे। आंखें बार-बार हाल में कक्षों में कुछ तलाश रही आपके लिए यही परामर्श था। थी.....जो तलाश रही थीं वह इन्हें दिख न रहा था। ____ आखिर आपने मेरठ जाने की स्वीकृति दे दी। श्री दयाचन्द जी म.व श्री अजय मुनि जी म. जिनका अंगुली की पीड़ा यथावत् थी। गंभीरता से चिकित्सा वर्षावास धूरी था भी मालेरकोटला आ गए। कराई। एक्सरे लिए गए। ज्ञात हुआ कि अंगुली की हड्डी में फ्रेक्चर है। डाक्टर ने पट्टा बान्धने का परामर्श श्रद्धांजलि सभा का आयोजन हुआ। श्रद्धा सञ्ज दिया। पर पट्टा बान्धने का अर्थ था विहार में विलम्ब । शब्दों से आपने गुरुदेव को श्रद्धांजलि अर्पित की तथा आखिर साथ वाली अंगली के साथ ही पीडित अंगली को मालेरकोटला श्री संघ का लक्ष-लक्ष धन्यवाद किया। बान्धकर विहार कर दिया गया। श्री संतोष मुनि जी म. जो आपकी अनुपस्थिति में चादर महोत्सव पर मेरठ में गुरुदेव की सेवाराधना करते रहे थे को साथ लेकर आप शेष वर्षावास को पूरा करने के लिए लुधियाना पधार लुधियाना से मार्ग के क्षेत्रों को स्पर्शते हुए अम्बाला गए। पधारे। श्रद्धेय चरण तपस्वी श्री सुदर्शन मुनि जी म. के दर्शनों का लाभ लिया। वहीं पर श्री दयाचन्द्र जी म. तथा क्रमश : वर्षावास पूर्ण हो गया। श्री अजयमुनि जी म. विराजित थे। इनको भी मेरठ असातावेदनीय कर्म का उदय प्रवर्तक पद महोत्सव पर जाना था। सो यहां से ये मुनि __वर्षावास की परिसमाप्ति पर भी श्रद्धेय श्री रत्नमुनि भी आपके साथ ही मेरठ के लिए प्रस्थित हुए। जी म. ने आपको विहार नहीं करने दिया। एक दिन पाटे ____ अम्बाला नगर से छावनी, मुलाना, विलासपुर, जगाधरी, से ठोकर लगी। पांव की अंगली में भयंकर चोट लगी। सरसावा, सहारनपुर, देवबन्द, मुजफ्फरनगर, दुराला, असाध्य पीड़ा झेली। . मोदिपुरम होते हुए श्रद्धेयचरितनायक मेरठ पहुंचे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy