________________
साधना का महायात्री श्री सुमन मुनि
यह वार्तालाप चल ही रहा था कि लुधियाना श्रीसंघ दूसरे दिन प्रातःकाल आप श्री ने लुधियाना के लिए पुनः गुरुदेव श्री के चरणों में उपस्थित हुआ। गुरु देव ने विहार किया। गुर्वाज्ञा का पालन आपके लिए प्राथमिक श्रीसंघ को आश्वस्त कर दिया कि सुमनमुनि जी का लक्ष्य था। अहमदगढ़ होते हुए लुधियाना पधारे । वर्षावास लुधियाना ही होगा। साथ ही एक आगार रख
लुधियाना श्री संघ ने पलक पांवड़े बिछाकर आपका लिया गया कि “यदि उन्हें आवश्यकता अनुभव हुई तो श्री सुमनमुनि जी को लुधियाना से बुला लेंगे।"
स्वागत किया। श्रद्धेय श्री रलमुनि जी म. आपको साक्षात्
पाकर हर्षाभिभूत बन गए। उमंगित हृदय लेकर लुधियाना श्री संघ लौट गया।
प्रतिदिन व्याख्यान होने लगा। धर्म ध्यान, तप-त्याग लुधियाना वर्षावास हेतु प्रस्थान तथा अमंगल शकुन की बहार आ गई। सम्वत्सरी महापर्व सानन्द सम्पन्न हो
श्रद्धेय चरितनायक अपने श्रद्धाधार गुरुदेव के चरणों गया। पर मस्तक रख कर लुधियाना वर्षावास के लिए प्रस्थित
__ वज्रपात / गुरुदेव का स्वर्गारोहण हुए। एक लघुमुनि आपके साथ थे। मालेरकटला और
६ सितम्बर १६८२ रात्री के ८-३० बज रहे थे। कुप्प के मध्य एक गांव के बाहर विद्यालय भवन में रात्री
श्रद्धेय चरितनायक प्रतिक्रमणादि से निवृत्त हो आत्मचिन्तन विश्राम हेतु रुके।
में लीन थे। सहसा मन उदास-उदास हो गया। मुनि-मन सूरज अस्ताचल में विलीन होने जा रहा था। श्रद्धेय । रूप विहग ने पंखों से उदासी के कण झाड़ने का यत्न चरितनायक एक वृक्ष के नीचे बने चबूतरे पर बैठे किया। पर उदासी घनीभूत होती चली गई। अकस्मात् आत्मचिन्तन कर रहे थे। उसी समय उस वृक्ष पर एक गुरुदेव का चित्र आपके मानस-पटल पर उभर आया। छोटा सा पक्षी (जिसकी आकृति उल्लू से ही मिलती। गुरुदेव कहीं अस्वस्थ न हो.... गुरुदेव के स्वास्थ्य की जुलती थी तथा जिसे राजस्थान में 'कोचरी' कहा जाता
सूचना पाने के लिए आपने भाई को मालेरकोटला टेलिफोन है) आ बैठा।
करने भेजा। ___ गुरुदेव ने देखा। उसी समय वह पक्षी उड़ा और
भाई लौटता....उससे पूर्व ही एक अन्य भाई ने गुरुदेव के सिर को स्पर्श करता हुआ दूर चला गया।
आकर सूचना दी कि मालेरकोटला में श्रद्धेय पंडित श्री
महेन्द्र मुनि जी म. दिवंगत हो गए हैं। कुछ देर बाद वह पक्षी फिर आकर वृक्ष पर बैठ गया। कुछ क्षण बाद उड़ा और गुरुदेव के सिर पर चोंच मारते
इस समाचार को कर्ण सुन नहीं पाए......हृदय दहल हुए निकल गया। इसी प्रकार वह तीसरी बार भी आया।
गया.... किंकर्त्तव्य विमूढ़ होकर प्रस्तर प्रतिमा बन गए
आप....लगा सब समाप्त हो गया है। मन अपराध बोध से गुरुदेव का मन उक्त घटना को देख / अनुभव
भर गया।...... अन्तिम समय में अपने गुरुदेव की आराधना करके किसी अनिष्ट की आशंका से भर गया। पुनः पुनः
न कर सका। गुरुदेव की तस्वीर आंखों के समक्ष उभरने लगी। मन
अस्तु ! कुछ क्षण के बाद आपका मन शान्त हुआ। निर्णय नहीं कर पा रहा था कि लुधियाना वर्षावास हेतु
संसार के शाश्वत नियमों को कौन बदल सकता है। जाएं या न जाएं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org