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सर्वतोमुखी व्यक्तित्व
धूरी का श्रीसंघ आगामी वर्षावास की विनति लेकर आपके श्री चरणों में उपस्थित हुआ। तपस्वीराज श्री सुदर्शनमुनि जी म.ने चातुर्मास की स्वीकृति प्रदान कर दी।
१६७० के वर्षावास को लक्ष्य में रखकर आप श्री अम्बाला से राजपुरा, पटियाला, नाभा, सुनाम होते हए संगरूर पधारे । वहां स्थानक भवन तथा अग्रवाल पंचायती भवन में भी आपके सार्वजनिक प्रवचन होते रहे। अपर्व धर्म जागृति हुई। यहां पर जैन समाज के घर थोड़े ही हैं। फिर भी श्रद्धा और भक्ति अपार है। अजैन बन्धुओं में भी जैन मुनियों के प्रति पूरी आस्था है। सामाजिक
और धार्मिक कार्यों में धर्म और सम्प्रदाय से ऊपर उठकर सभी लोग पूर्ण सहयोग करते हैं। संत के वचन की करामात
अम्बाला की तरह संगरूर में भी धूरी गेट (छोटे चौक के पास) पर स्थानक पुनर्निर्माण की स्थिति में था। नीचे दुकानें होने से पुनर्निर्माण में बाधा उपस्थित हो गई थी। आप श्री ने अथक श्रम करके दुकान मालिकों को समझाया और उन्हें विश्वस्त किया कि उनकी दुकानें उन्हें पुनः मिल जाएंगी, आपके समक्ष नत हो गए और लम्वे अर्से से रुका हुआ कार्य पूरा हो गया।
संगरूर यह वही भूमि थी जहां संतशिरोमणि प्रसिद्ध वक्ता श्री सुदर्शन लाल जी महाराज की दीक्षा हुई थी। धूरी में वर्षावास ___ संगरूर से आप श्री चातुर्मासार्थ धूरी पधारे। अपूर्व तप-त्याग और धर्म प्रभावना के साथ वर्षावास व्यतीत हुआ। जैन-अजैन सभी लोगों ने पूर्ण उत्साह से आपके प्रवचनों में रुचि दिखाई। गुरुदेव का ऑप्रेशन
वर्षावास समाप्ति के पश्चात् आप श्री पुनः संगरूर
पधारे। गुरुदेव पूज्य श्री महेन्द्र मुनि जी म. को हरणिया की शिकायत हो गई। संगरूर में गुरुदेव का हरणिया का ऑप्रेशन कराना पड़ा । सरकारी हस्पताल के डॉ. गोयल ने बड़ी कुशलता से गुरुमहाराज का ऑप्रेशन किया। श्री कैलाश चन्द्र जी एडवोकेट ने (वर्तमान में संघाध्यक्ष) पूरी व्यवस्था की और सेवा का भरपूर लाभ लिया। फलतः मासाधिक तक संगरूर में विराजना रहा।
मालेरकोटला, संगरूर, अहमदगढ़ मण्डी आदि श्रीसंघ भावी वर्षावास के प्रार्थी थे। पर गुरुदेव ने मालेरकोटला श्री संघ को वरियता प्रदान की। १६७१ का वर्षावास मालेरकोटला सुनिश्चित हुआ।
धूरी चातुर्मास में अनेक क्षेत्रों की प्रार्थनाएं निरन्तर आती रही थीं। उन्हें दृष्टिपथ में रखते हुए आप संगरूर से सुनाम, भीखी, बुढ़लाडा होते हुए रतिया पधारे। वहां पर स्वामी श्री ताराचन्द जी म. कई वर्षों से स्थिरवासी थे। श्री विवेक मुनि जी म. निरन्तर ६ वर्षों से सेवालाभ ले रहे थे। मुनि सेवा का प्रसंग समक्ष पाकर आप भी रतिया में रुककर अग्लान चित्त से रुग्ण मुनि की सेवा में समर्पित हो गए।
शनैः शनैः पूज्य स्वामी श्री ताराचन्द जी म. का स्वास्थ्य गिरता गया और एक मास के पश्चात् उनका देहावसान हो गया।
देहावसान के पश्चात् दाह संस्कार के लिए उपयुक्त स्थान की चिन्ता हुई। वैसे रतिया श्रीसंघ ने इस कार्य हेतु २०४३० फुट का भूखण्ड पहले ही ले रखा था। पर उस समय वहां फसल उगी हुई थी। आप श्री के समक्ष स्थिति रखी गई।
प्राणी मात्र के कंपन को आत्मकम्पन अनुभव करने वाले श्रद्धेय चरितनायक ने स्पष्ट निर्देश दिया - एक मुनि के संस्कार के लिए फसल नहीं रोंदी जाए। इसके लिए अन्य विकल्प तलाशा जाए।
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