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साधना का महायात्री: श्री समन मुनि
“अन्य क्या विकल्प हो सकता है?" श्री संघ ने सुनकर संघ के सदस्य कृतकृत्य हो गए। पूज्य श्री चिन्तित स्वर में पूछा।
का दाहकर्म पूर्णभक्ति और श्रद्धा से सम्पन्न हुआ। आपने कहा - इस कार्य हेतु अन्य उचित भूमि की
रतिया में आज वह स्थान....समाधि स्थल अत्यन्त तलाश की जाएं। श्रीसंघ प्रमुख ने बताया-महाराज ! भव्य उद्यान के रूप में विकसित हो चुका है। पंचायती भूमि तो बहुत हैं पर उस भूमि पर संस्कार क्रिया मालेर-कोटला वर्षावास करने से जमींदार और सरदार नाराज हो जाएंगे।
रतिया से विहार करके श्रद्धेय चरित नायक श्री भाइयों को साथ लेकर आप श्री स्वयं भूमि देखने के सुमन कुमार जी महाराज बुढ़लाडा, भीखी, सुनाम, संगरूर लिए गये। आपने रतिया के प्रतिष्ठित, गणमान्य और । तथा धूरी होते हुए मालेरकोटला वर्षावास हेतु पधारे। निडर डॉ. शर्मा से बात की। आपके व्यक्तित्व के समक्ष आपके पदार्पण से नगर धर्म के रंग में रंग गया। उत्तराध्ययन डा. शर्मा नत हो गए। उन्होंने कहा – महाराज ! कल ही सूत्र तथा आत्मसिद्धि शास्त्र आपकी देशनाओं के आधारग्रन्थ यहां इस इलाके के एम.एल.ए. श्री नेकीराम (ग्राम लाली) थे। जप-तप और त्याग का त्रिवेणी संगम तट बंध मुक्त आने वाले हैं। उनसे मिलकर मैं उक्त भूखण्ड जैन समाज
होकर चार माह तक बहता रहा। केवल जैन और सनातनी को दिलवा दूंगा।"
ही नहीं अपितु बड़ी संख्या में मुसलमान भी आपके प्रवचनों
में आते थे। विशेष कार्यक्रम कुन्दनलाल धर्मशाला अथवा ____ डा. शर्मा ने अपने वचन का पालन किया। दूसरे
जैन कन्या महाविद्यालय में होते थे। दिन एम.एल.ए. श्री नेकीराम ने स्वयं उस भूखण्ड पर
___मुसलमानों की बहुतायत वाला यह नगर पंजाब में अपने हाथ से सीमा की ईंट रखी। इतना ही नहीं पटवारी
'जैननगरी' के नाम से प्रसिद्ध है। इसी भूमि पर आचार्य के रजिस्टर में भी उक्त 'भूखण्ड जैन समाधि' के नाम से
प्रवर श्री रामबख्श जी म., श्रद्धेय श्री विलास राय जी म., चढ़वा दिया।
आचार्य श्री रतिराम जी म. ने अपनी संयम साधना को उस समय सरदार अमरीकसिंह रतिया गांव का सरपंच मंजिल प्रदान की थी। था। दूर-दूर तक सरदार जी का प्रभाव था। सामान्य
यहां की विरादरी समृद्ध तथा श्रद्धानिष्ठ है। इस लोग नाम से ही कांपते थे। श्री संघ के सदस्यों ने
बिरादरी की यह विशेषता है कि यह विवादास्पद विषयों आशंका व्यक्त की कि पंचायती भूमि पर संस्कार करने से में भी तटस्थ रहती है। जहां तक बन सके यहां के कहीं सरदार जी रुष्ट हो गए तो ठीक न होगा।
श्रावक क्लेश को मिटाने का प्रयत्न करते हैं। पूज्य प्रवर गुरुदेव ने सस्मित मुस्कान के साथ संघ यहां पर डिस्पेंसरी, मॉडल स्कूल, हाईस्कूल, कॉलेज सदस्यों को आश्वस्त किया। आपने सरदार जी को बुलाया आदि अनेक जनकल्याणकारी संस्थाएं सुचारू रूप से चल
और उक्त संदर्भ में बात की। आपकी वाग्कुशलता और रही हैं। मधुर व्यवहार से सरदार जी गदगद हो गए और बोले
ऐतिहासिक वर्षावास को पूर्ण कर आप अहमदगढ़ महाराज ! पूरा पिण्ड ही आपका है। जितनी जगह
पधारे। आपकी मंगलमय प्रेरणा से यहां स्थानक का हाल चाहिए आप निःसंकोच ग्रहण कर सकते हैं।
और बालकनी का निर्माण हुआ।
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