SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 284
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि वहां से खरड़, कुराली होते हुए रोपड़ आए। वहां से बलाचौर, राहों, बंगा, फगवाड़ा, लुधियाना, समराला, माछीवाडा, चमकौर साहब, मरिंडा, खरड़ आदि क्षेत्रों में धर्मोद्योत करते हुए अम्बाला नगर में पधारे। यहां पर पूज्य वर्य श्री कर्पूरचन्द जी म., बाबा श्री माणक मुनि जी म., तपस्वीरल उप, प्रवर्तक श्री सुदर्शन मुनि जी म. आदि मुनिवृन्द का दर्शन लाभ लिया। __ पूज्यवर्य श्री कपूरचन्द्र जी म. तथा श्रद्धेय श्री शान्तिस्वरूप जी म. (मेरठ) प्रवर्तक श्री शुक्लचन्द्र जी म. के स्वर्गगमन के पश्चात् आचार्य सोहन मुनि परिवार के क्रमशः प्रमुख और उपप्रमुख चुने गए थे। चण्डीगढ़ का श्रीसंघ आगामी वर्षावास की प्रार्थना लेकर आपके श्री चरणों में अम्बाला पहुंचा। मुनि परिवार प्रमुख श्री कर्पूरचन्द जी म. की आज्ञा से आपने आगामी वर्षावास चण्डीगढ़ श्री संघ को प्रदान कर दिया। उन दिनों पूज्य प्रवर श्री कर्पूरचन्द जी म. अस्वस्थ चल रहे थे। आपने उनकी सेवा का पूरा लाभ लिया। पूज्य श्री के निरन्तर गिरते स्वास्थ्य को देखकर आप चण्डीगढ़ चातुर्मासार्थ उचित समय पर विहार न कर सके। चातुर्मास से कुछ ही दिन पहले पूज्य श्री का स्वर्गवास हो गया। चातुर्मास शुरु होने में इतना स्वल्प समय रह गया कि आप चण्डीगढ़ नहीं पहुंच सकते थे। फलतः वर्ष १६६६ का वर्षावास आपको अम्बाला नगर में ही करना पड़ा। इस वर्षावास में अन्य पूज्य मुनिराज थे-बाबा श्री माणकचन्द जी उप प्रवर्तक तपस्वी श्री सुदर्शन मुनि जी म., गुरुदेव श्री महेन्द्र मुनिजी म., श्री छज्जूमुनि जी म. तथा तपस्वी श्री श्रीचंदजी म.। चरितनायक की सृजन धर्मिता अम्बाला नगर में सर्राफा बाजार के साथ लगती गली में जैन महिला उपाश्रय था। उपाश्रय का वह भवन लाला श्री लच्छीराम रामलाल जैन सराफ ने जैन समाज को दान रूप में दिया था। कालान्तर में यह भवन जर्जरित हो गया। पुनर्निर्माण के लिए उसकी ऊपर की मंजिल उतार दी गई थी। परन्तु नीचे के तल में दुकानें होने के कारण पुनर्निर्माण कार्य प्रारंभ नहीं हो पा रहा था। दुकान मालिकों और श्रीसंघ के मध्य विश्वास निर्मित नहीं हो पा रहा था। सृजनधर्मी गुरुदेव पूज्य श्री सुमनमुनि जी म. के समक्ष पूरी स्थिति आई। आप श्री ने दुकान मालिकों और श्री संघ के बीच की अविश्वास की खाई को अपनी वाग्कुशलता से पाट दिया। दुकान मालिकों को आपने विश्वास दिलाया कि भवन निर्माण के पश्चात् उनकी दुकानें उन्हें वापिस लौटा दी जाएंगी। इससे विश्वास निर्मित हो गया और कई वर्षों से रुका हुआ कार्य प्रारंभ हो गया। थोड़े ही समय में भवन बनकर तैयार हो गया। दुकान मालिकों को उनकी दुकानें लौटा दी गई। इस कार्य में श्री शांतिलाल जी गोटेवाले, श्री पवनकुमार जी रंगवाले कोषाध्यक्ष, श्री मदनलाल जी अध्यक्ष ने पूर्ण निष्ठा और समर्पण का परिचय दिया। चातुर्मास धर्म-गतिविधियों का केन्द्र बना रहा। चातुर्मास के पश्चात् भी आप श्री का विराजना अम्बाला में हुआ। पार्श्वनाथ जयंति का भव्य आयोजन हुआ। गुरु-शुक्ल-पुण्य-स्मृति २८ फरवरी १६७० को पूज्यगुरुदेव प्रवर्तक श्री शुक्लचन्द्र जी म.की पुण्यतिथि तप-त्याग पूर्वक समायोजित की गई। इस अवसर पर आप श्री की प्ररेणा से वहां पर "प्रवर्तक पं. श्री शुक्लचन्द्र जैन आई कैम्प थियेटर" की स्थापना की गई। नेत्र चिकित्सा शिविर लगाया गया। साथ ही यह संकल्प लिया गया कि प्रतिवर्ष ऐसे शिविर लगाए जाएंगे। ४८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy