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________________ सर्वतोमुखी व्यक्तित्व जी एवं नवांशहर के लाला श्री वेद प्रकाश जी को और उमंग व्याप्त हो गई। धर्मध्यान और त्याग-तप की आपका अभिमत जानने के लिए आपके पास भेजा। प्रभूत प्रभावना हुई। वर्षावास आनन्द सम्पन्न हुआ। आचार्य श्री ने एक पत्र भी भेजा था जिसमें आपके लिए प्रवर्तक-पद-प्रकरण चातुर्मास में भी चलता रहा। उपप्रवर्तक पद का प्रस्ताव रखा गया था। वर्षावासोपरान्त जैनेन्द्र गुरुकुल पंचकूला में वार्षिक अधिवेशन उस समय तक आप मत के विषय में अपने पारिवारिक पर मान्य मुनिराजों सहित आचार्य देव का पदार्पण सुनिश्चित मुनिराजों से विचार-विर्मश नहीं कर सके थे इसलिए आप हुआ था। एतदर्थ आपके पास भी पंचकूला पधारने की अपना मत आचार्य श्री को नहीं भेज सके। साथ ही विनती आई थी। आप रायकोट का वर्षावास पूर्ण करके आपने बड़ी विनम्रता से इस उत्तर के साथ कि मेरे परिवार चमकोर साहब, रोपड़, खाड़, आदि क्षेत्रों में विचरण में अन्य कई ज्येष्ठ मुनिराज मौजूद हैं उपप्रवर्तक पद का करते हुए पंचकूला पहुंचे। आचार्य श्री के अतिरिक्त प्रस्ताव आचार्य श्री को लौटादिया। बहुश्रुत श्री ज्ञान मुनि जी म., श्री जगदीश मुनि जी म., आचार्य श्री ने कुछ दबावों के चलते सभी मुनियों के श्री विमल मुनि जी म., श्री पूरण चंद जी म. आदि मान्य मतों की प्रतीक्षा न करके बहुमत को दृष्टि विगत कर मुनिराज भी पंचकूला पधारे थे। प्रवर्तक पद की घोषणा कर दी। उसी अवसर पर तपस्वी पंचकूला में अन्ततः इस विवाद का पटाक्षेप हो श्री सुदर्शन मुनि जी म. को उपप्रवर्तक पद पर प्रतिष्ठित ___ गया। पूज्यप्रवर श्रमण श्री फूलचन्द जी महाराज ने किया गया था। प्रवर्तक पर से त्यागपत्र दे दिया। हमारे चरितनायक पूज्य वर्य श्री सुमन मुनि जी म. तीन वर्षों तक पंजाब मुनिसंघ में प्रवर्तक पर रिक्त प्रारंभ से ही एक सिद्धान्तनिष्ठ मनिराज रहे हैं। उन्होंने रहा। बाद में महासभा पंजाब ने पुनः प्रयत्न प्रारंभ किए। उक्त घोषणा को अस्वीकार कर दिया। फलतः संघर्ष की महासभा का एक शिष्ट मण्डल रोपड़ में आपके पास स्थितियां बन गई। उक्त घोषणा पर पूज्य श्री समनमनि आया। शिष्टमण्डल के सकारात्मक चिन्तन को दृष्टिपथ में जी म. की अस्वीकृति असैद्धान्तिक नहीं थी। आपका रखते हुए आपने आचार्य श्री को पत्र लिख दिया कि - स्पष्ट मत था कि आचार्य देव या तो अपने अधिकारों का जिसे भी आप प्रवर्तक पद पर अधिष्ठित करेंगे वह मुझे उपयोग करके प्रवर्तक पद की घोषणा करते जो सभी को मान्य होगा।" मान्य होता। या फिर बहुमत प्राप्त मुनिराज के लिए इस इस तरह तीन वर्ष के अन्तराल के बाद पूज्य आचार्य पद की घोषणा करते। देव ने सर्वसम्मति से पूज्य श्री श्रमण फूलचंद जी म. को अस्त ! आचार्य श्री के आमंत्रण को सिरमाथे पर पुनः प्रवर्तक पद पर अधिष्ठित किया। रख कर आप मालेरकोटला पधारे। गहन विचार विमर्श अम्बाला की ओर / वर्षावास चला। परन्तु शमस्या का समाधान नहीं हो पाया। जैनेन्द्र गुरुकुल पंचकुला से विहार करके आप श्री रायकोट वर्षावास चण्डीगढ़ १८ सेक्टर जैनस्थानक में पधारे । चौ. दिलीपसिंह, मालेरकोटला से रायकोट की दिशा में विहार हुआ। भूषण कुमार जैन, बलदेवराज जैन, लाभचन्द जैन आदि रायकोट पदार्पण हुआ। नगर के आबालवृद्ध में उत्साह अधिकारी एवं सदस्यों ने सेवा का पूरा-पूरा लाभ लिया। ४७ Jain Education International For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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