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साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि
भी न हीं थी कि हमारे प्रवर्तक श्री जी की यही जीवन था श्री संघ जालंधर ने पूज्य प्रवर्तक श्री जी की स्मृति में सान्ध्य वेला है। सूर्य अस्ताचल की ओर था । एक धर्मार्थ अस्पताल प्रारंभ करने की उद्घोषणा की। समाधिपूर्वक महाप्रयाण
(लगभग तीन वर्ष के बाद जैनस्थानक जालंधर के सायं ठीक सात बज रहे थे। विद्वद्वर्य श्री सुमनकुमारजी
नीचे के खण्ड में “स्वामी शुक्लचन्द्र जैन हस्पताल" का महाराज, तपस्वी श्रीचंदजी महाराज, श्री संतोषमुनिजी
उद्घाटन हुआ।) महाराज और श्री अमरेन्द्रमुनिजी महाराज श्रद्धेय प्रवर्तक जालंधर शहर को साश्रुनयन अलविदा कह कर श्री के सामीप्य ही थे। लाला केसरदास जैन भी वहीं आप कपूरथला जंडियालागुरु होते हुए अमृतसर पधारे । उपस्थित थे। श्रद्धेय गुरुवर्य पर्यंकासन से विराजित थे। कुछ दिन वहां ठहर कर आप पुनः जालंधर पधारे। वहां पहली डकार ली और आँखे मूंद ली, अभी डॉ. आनन्द पर वर्ष १६६८ के वर्षावास की प्रार्थना लेकर रायकोट आ ही न पाये थे कि दो ऊर्ध्ववायु खींच कर नेत्र खोल का श्रीसंघ उपस्थित हुआ। सो आगामी वर्षावास रायकोट दिये। सभी को क्षमापना हित कर बद्ध किये, खुले नेत्रों के लिए निर्धारित किया गया। से सब को देखते/निहारते समाधिपूर्वक पार्थिव देह का
सिद्धान्त निष्ठा परित्याग कर हमेशा-हमेशा के लिए विदा हो गये। फिर कभी लौट कर नहीं आये। आते भी कैसे और क्यों...? जालंधर से फगवाड़ा, अट्टा, फिल्लौर, लुधियाना क्योंकि यह उनका प्रयाण नहीं अपितु महाप्रयाण था। आदि क्षेत्रों में विचरण करते हुए आप अहमदगड़ मंडी
पधारे। उधर मालेरकोटला नगर में आचार्य सम्राट श्री मंगल प्रेरणा
आनन्द ऋषि जी म. वर्षावास हेतु विराजमान थे। आचार्य श्रद्धेय चरितनायक गुरुदेव श्री सुमनमुनि जी म. श्री ने मालेरकोटला श्री संघ को आपके पास भेजा। चिन्तनशील बने कि गुरुदेव प्रवर्तक श्री जी की स्मृति वर्षावास से पूर्व आचार्य श्री जी आपसे एक बार मिलना स्वरूप कोई जनकल्याणकारी संस्था की स्थापना जालंधर चाहते थे और संघ में उभरे असंतोष पर विचार विमर्श शहर में होनी चाहिए। अपने चिन्तन को मूर्तरूप देने के करना चाहते थे। लिए आपने विराजित सभी छोटे बडे संतों से इस संदर्भ में पूज्य प्रवर्तक श्री शुक्लचन्द्र जी म. के स्वर्गवास के विचार-विमर्श किया। सभी संतों ने आपके प्रस्ताव का पश्चात् प्रवर्तक पद को लेकर पंजाब मुनिसंघ में विरोधाभास सहर्ष समर्थन किया। तदन्तर आपने जालंधर श्री संघ के । की स्थिति उत्पन्न हो गई थी। आचार्य श्री ने पंजाब के प्रमुख श्रावक श्री दीनानाथ जी जैन तथा लाला श्री टेकचन्द सभी संतों के मत मांगे थे। पूज्य प्रवर श्री सुमन मुनि जी जी जैन (राय साहब) के समक्ष अपने भाव रखे। उक्त म. ने पूज्य प्रवर्तक श्री शुक्लचन्द्र जी म. के स्वर्गारोहण श्रावकों ने पूर्ण श्रद्धाभाव से आपकी बात को स्वीकार के पश्चात् आचार्य सोहन परिवार का गठन किया था। किया तथा संकल्प व्यक्त किया कि वे शीघ्र ही इस दिशा आपको अपने परिवार के मुनिराजों से विमर्श करके ही में कोई महत्त्वपूर्ण कार्य करेंगे।
'प्रवर्तक पद' के लिए अपना मत देना था। फलतः महावीर जयंति के पावन प्रसंग पर जिसका आप श्री जालंधर में विराजमान थे। उस समय भव्य आयोजन श्री पार्वती जैन हाई स्कूल में किया गया आचार्य श्री ने दो मान्य श्रावकों अम्बाला के श्री गोरेलाल
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