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________________ साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि गया। दोनों जैन स्थानक आज भी विद्यमान है एवं उनमें प्रवर्तक श्री को पक्षाघात धार्मिक क्रियाएँ सम्पन्न हुआ करती हैं। प्रवर्तक श्री जी म. जब आदमपुर पधारे थे तभी विहार-चातुर्मास उच्च रक्तचाप से पीड़ित हो गए थे तथापि धीरे-धीरे विहार करते हुए जालंधर छावनी पधार ही गये। पूज्य __ मंडी समाना से नाभा, सुनाम, संगरूर, धुरी, गुरुदेव श्री महेन्द्र कुमार जी म. एवं मुनि श्री सुमनकुमार मालेरकोटला, बरनाला, भदौड, सैणा, जगराँव, रायकोट, जी म. को यह दुःखद सूचना प्राप्त हुई कि प्रवर्तक श्री जी अहमदगढ़ मंडी, गुज्जरवाल क्षेत्रों को फरसते हुए आचार्य म. को पक्षाघात हो गया है और वे अस्वस्थ हैं तो दोनों श्री जी लुधियाना पधार गये। मुनि श्री सुमनकुमार जी म.. संत उग्र विहार कर जालंधर प्रातः ८.३० बजे पहुँच ने चातुर्मासार्थ पटियाला की ओर प्रस्थान किया। गये। चातुर्मासोपरांत पटियाला से अम्बाला आये । तदनंतर अपशकुन प्रवर्तक श्रीजी के साथ राजपुरा, वन्नूड़, खरड़ कुराली, __ मार्ग में आप श्री जब द्रुतगति से विहार करते हुए रोपड़ में विहरण किया। यहाँ जालन्धर संघ सन् १६६७ लक्ष्य की ओर बढ़ रहे थे, यकायक काले रंग का कुत्ता के चातुर्मास की विनति लेकर उपस्थित हुआ। साधु भाषा खेत में से रोता हुआ संतों की ओर बढ़ा और पुनः चला में जालंधर श्री संघ को आगामी वर्षावास की स्वीकृति गया। पं रत्न गुरुदेव श्री महेन्द्रकुमार जी म. इस प्रकार प्रवर्तक श्री जी म. ने प्रदान कर दी। के अपशकुन को देखते ही और अधिक व्यथित होने रोपड़ से बलाचोर, नवांशहर, जेजों, होशियारपुर । लगे। पधारे। प्रवर्तक श्री जी का स्वास्थ्य स्वस्थ न होने के तदनन्तर गुरुदेव श्री २०-२५ कदम आगे बढ़े ही कारण एक मास कल्प की स्थिरता रही। युवामुनि श्री होंगे कि एक व्यक्ति स्कटर पर सवार होकर आया और सुमनकुमारजी म. सेवा में ही रहे । उसने सूचना दी – “महाराज श्री जी पक्षाघात एवं बेहोशी जन सेवा प्रेरक में हैं। अतिशीघ्र पधारें।” ___ यहाँ पर आचार्य श्री कांशीराम जी म. को आचार्य गुरुदेव एवं मुनिश्री जी म. उग्र विहार कर गुरू एवं पद की चादर अर्पित की गई थी। उनकी स्मृति में श्री गुरुमह पंजाब प्रवर्तक श्री शुक्लचन्दजी म. की सेवा में पधारे। तन-मन से प्रवर्तक श्री की सेवा में लीन हो गए। सुमनकुमारजी म. ने प्रेरणा देकर पूज्य कांशीराम स्मारक प्रवर्तक श्री अपने शिष्य एवं प्रशिष्य की सेवा से गद्गद् समिति का गठन करवाया जिसका एक मात्र उद्देश्य था - हो उठे। तथापि वे कुछ चिंतन में खोये रहते हुए थे। मानव सेवा, जन सेवा, स्वाध्याय के लिए पुस्तकालय। कारण था - प्रवर्तक श्री ने जालंधर में ही विराजित प्रवर्तक श्री जी म. कुछ संतों के साथ होशियारपुर महासती श्री प्रवेश कुमारी जी म. के सान्निध्य में एक से विहार कर जालन्धर छावनी पधारे। पं. रत्न श्री वैराग्यवती की दीक्षा सम्पन्न होने जा रही थी, के दीक्षा महेन्द्रमुनि श्री म. एवं श्री सुमनमुनि जी म. ठाणा २ से महोत्सव में पधारने की स्वीकृत दे दी थी। दीक्षा स्थल होशियारपुर में ही विराजित रहे। जैन स्कूल था। उसी रात ४.३० बजे हल्का दिल का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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