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________________ सर्वतोमुखी व्यक्तित्व आर्यसमाजी महाशय - राधाकृष्ण ने भी उक्त पाँचों । प्रश्न राधाकृष्ण जी से पूछे हैं उनका उत्तर दें अन्यथा की मध्यस्थता स्वीकार कर ली। अपनी हार स्वीकार कर लें।...” महाशय जी जड़वत् हो स्वामी श्री प्रेमचंदजी म., श्री फूलचन्दजी म. 'श्रमण' गए, मौन धारण कर लिया। आदि १५ संत वही विराजमान थे। मुनि श्री सुमनकुमार अंततः महाशय जी उत्तर नहीं दे पाए। मुनि श्री ने जी भी संतद्वय के साथ वहीं थे। जैन सिद्धांतों की विजय पताका फहराकर जैन धर्म की वादे-वादे जायते तत्त्वबोध : जाहोजलाली की। तदनंतर महाशय ने निंदा-विकथा के क्रोड़पत्र निकलवाने बंद कर दिये किंतु भीतर में प्रतिशोध __मुनि श्री सुमनकुमार जी म. की युवकोचित वीरता की ज्वाला जरूर सुलगती रही। जोश एवं प्रौढ़ोचित होश एवं तार्किकता को दृष्टिगत रखते हुए आचार्य श्री एवं मुनिमंडल ने महाशय से चर्चा- पुनः निराकरण वार्ता करने का दायित्व सौंपा। कहा - आप योग्य है, समाना मण्डी में जब मुनि श्री का पदार्पण हुआ तो आचार्य श्री एवं विशिष्ट मुनिगणों की सन्निधि में यह चर्चा- लाला भगवानदास जैन (मित्तल) के घर में आश्रय ग्रहण वार्ता आप ही को संपादित करनी है। किया था। वहाँ रात्रिकालीन प्रवचन प्रारंभ हुए।... मुनि श्री ने कहा - आप जैसे महारथियों के रहते आर्यसमाजी महाशय-राधाकृष्ण ने भी एक आर्यसमाजी मुझे यह दायित्व क्यों सौंप रहे हैं, मेरा विनम्र निवेदन है विद्वान् को आमंत्रित कर आर्यसमाज में रात्रिकालीन प्रवचन कि गुरुजन ही इस चर्चावार्ता को सम्पन्न करें। प्रारंभ कर दिए। जैन धर्म का खंडन-मंडन होता रहा। कुछ जैन युवक उनके प्रवचन की बातें सुनकर आते और गुरुजनों ने कहा - महारथी एक और संत को मुनिश्री सुमनकुमार जी म. को बताते कि जैन धर्म पर येमहारथी बनाना चाहते हैं अतः यह दायित्व आपको सौंप ये कटाक्ष किये गये हैं तो मुनि श्री अपने प्रवचन में पुनः रहे हैं। निराकरण कर देते। ___ जोर देकर गुरुजनों ने कहा तो मुनि श्री ने दायित्त्व ___ अंततः मुनि श्री के अकाट्य तर्कों एवं प्रवचनों से निर्वहन की बात स्वीकार ली। आर्यसमाजी विद्वान व महाशय कायल हो गये और प्रवचन महाशयजी निरुत्तरित करने बंद कर दिए। मुनि श्री के प्रवचनों की धूम मच गई, अजैन जनता भी आपश्री के प्रवचनों से अभिभूत चर्चा-वार्ता का समय आ गया। महाशय-राधाकृष्ण एवं प्रभावित होने लगी। के जो प्रश्न थे उनका मुनि श्री सुमनकुमार जी म. ने सटीक उत्तर दिये। ढाई घंटे तक शास्त्रार्थ चला। मुनि एक और प्रेरणा श्री ने प्रतिपक्षी को कुछ प्रश्न पूछे, महाशय उत्तर न दे समाना मंडी में उस समय जैन स्थानक नहीं था, मुनि पाये। अंततोगत्वा मध्यस्थों ने निर्णय लिया - राधाकृष्ण श्री के प्रभावकारी प्रवचनों एवं सदुपदेशों से प्रेरणा पाकर जी ने ईश्वरकर्तृत्व, कर्मफल का प्रदाता ईश्वर, ईश्वर की लाला भगवानदासजी ने अपना एक भूखंड जैन समाज को इच्छा-अनिच्छा के बिना कुछ भी संभव नहीं आदि प्रश्नों अर्पित कर दिया। तदनन्तर पटियाला के जौहरी परिवार का मुनि श्री ने युक्तियुक्त उत्तर दिये हैं। मुनिश्री ने जो द्वारा प्रदत्त भूखण्ड पर एक और भवन/दुकानें निर्मित हो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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