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साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि
वे शिष्य सम्पदा सहित विहार करके घन्नौर एवं पटियाला आचार्य श्री ने कहा - कौन महाशय ? पधारे। आचार्य श्री जी एवं प्रवर्तक श्री जी का सम्मिलन
व्यक्तियों ने कहा - वहीं जो आपसे दो मिनिट पहले हुआ। श्री सुमनमुनि जी म. को परम श्रद्धेय गुरुदेव
बात करके गये है ! प्रवर्तक श्री जी म.सा. ने आचार्य श्री के साथ जाने की
"हां, उन महाशय ने चर्चा-वार्ता के लिए समय आज्ञा दी। अतः मुनिवर्य आचार्य श्री के साथ कुछ समय तक विचरण करते रहे।
चाहा, मैंने मध्याह्न में आने का कहा है। अम्बाला शहर से आचार्य श्री ने मुनिवरों के साथ
____ वरिष्ठ सज्जनों ने कहा - “आचार्यवर्य! यह अत्यन्त
आग्रही ही नहीं दुराग्राही व्यक्ति है, खटपटिया भी! इसने विहार किया एवं घन्नोर को पावन करते हुए पटियाला
मुनि श्री धनराजजी म. एवं मुनि श्री अमरचंदजी म. आदि पहुँचे। मुनिश्री सुमनकुमारजी म. भी गुरुदेव श्री के संग
कितने ही संतों के साथ वार्तालाप-शास्त्रार्थ करके क्रोड़पत्र आचार्य श्री की विहार यात्रा में सहभागी थे। पटियाला से
(पेम्पलेट) निकाल कर लोगों में जैन धर्म के प्रति अनास्था विहार कर समाना शहर पहुँचे। आचार्य श्री भी पधारे।
ही उत्पन्न की है अतः ऐसे व्यक्ति से दूर रहना ही उचित सभी जैन मोहल्ले में स्थित जैन स्थानक में ठहरे। जैनों के लगभग १५० घर थे। यहाँ महाशय राधाकिशन आर्यसमाजी से मुनि श्री
मैं अनभिज्ञ था सुमनकुमार म. का शास्त्रार्थ हुआ। शास्त्रार्थ क्यों, किसलिए ___ आचार्य प्रवर ने सहजरूपेण कहा - मैं तो अनभिज्ञ हुआ आद्योपान्त विवरण प्रस्तुत है।
था, इस बात से, तथापि आप सज्जनों ने मुझे सावधान आर्य समाजी महाशय
कर दिया, यह ठीक ही किया। समय तो उसे दे ही चुका व्याख्यान के पश्चात् एक आर्यसमाजी महाशय
हूं, यथावसर यथास्थिति देखेंगे कि क्या करना है। राधाकृष्ण जी अपने साथी के साथ आचार्य श्री की सेवा ____ लाला कस्तूरी लाल जी जैन, लाला सागरमलजी में पहुंचा और कहने लगा – “आचार्य जी! आपसे कुछ जैन, (जैन मूर्तिपूजक समाज के मुखी) लाला मोहन लालजी विषयों पर चर्चा वार्ता करनी है, समय प्रदान करें।" जैन, लाला निरंजनदास जी नसीबचंदजी आदि ने कहा - आचार्य श्री ने कहा – “मध्याह्न में समय की अनुकूलता है गुरुदेव ! इससे बचने का कोई उपाय खोजिये। उसी समय आप आइए, आपकी जिज्ञासाओं का समाधान अब क्या किया जाय? कर दिया जाएगा।"
__ आचार्य श्री ने पुनः यही कहा - मैंने तो समय दे - आचार्य श्री ने सहजता से बात कह दी थी किंतु दिया है - अब क्या किया जाय? आगन्तुक व्यक्ति के मन में कुटिलता का जहर था।
अतंतः निष्कर्ष यही निकाला गया कि चर्चा-वार्ता के राधाकृष्ण अपने साथी के साथ स्थानक से निकलने लगा
दौरान पाँच लोगों को मध्यस्थ चुना जाय। वे सज्जन थे तभी जैन समाज के वरिष्ठ व्यक्तियों ने उन्हें देख लिया।
- आर्यसमाज के अध्यक्ष डॉ. साहब, सनातन धर्म सभा के उपहास में एक-दूसरे से कहा - 'महाशय, आ गये' तदनंतर ।
लालाजी, गुरूद्वारा सिंह सभा के अध्यक्ष, जैन सभा के वे वरिष्ठ जन आचार्य श्री के समक्ष पहुँचे विनीत भाव से । अध्यक्ष, एक प्राध्यापक जी ! पाँचों ने मध्यस्थता करना कहा - गुरुदेव! महाशय आये थे, क्या कहा उन्होंने। स्वीकार कर ली।
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