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________________ सर्वतोमुखी व्यक्तित्व ___ महाविद्यालयों के छात्र-छात्राएँ भी राजनीति में कूद संभवामि पले-पले पड़े। छात्रों के उग्ररूप को देखकर संवेदनशील स्थानों पर फिर भी पुलिस अधिकारी ने आनाकानी की तो और पुलिस चौकियाँ स्थापित की गई। पुलिस दल ने मुनिजी ने स्पष्टतः कहा- आप मेरे कहे पर सोचिये, महावीर जैन भवन में भी एक चौकी स्थापित कर दी, छात्रगण आप की उपस्थिति देखकर यही सोचेंगे कि इन्हीं व्याख्यान हॉल के साथ बाहर बरामदे में पुलिस का जमघट महाराजों ने ही इन्हें शरण दी है तो वे और अधिक उग्र लग गया। हो जाएंगे और गजब हो जाएगा...। संभवामि पलेकैसा भय..? पले...। पुलिस अधिकारी ने कुछ पल सोचा ! उसे भी संभावना प्रतीत हुई और कहा - महाराज ! क्षमा कीजिये! ___ऐसी स्थिति देखकर मुनि श्री सुमनकुमार जी म. ने हम अभी यह स्थान खाली कर देते हैं और अन्यत्र चले संघ के अधिकारियों को कहा कि- आचार्य श्री ऊपर जाते हैं। विराजमान हैं और पुलिसवाले नीचे डेरा डाले बैठे हैं, पुलिस को देखकर जनता, छात्र और उग्र हो सकते हैं मुक्तकण्ठ से प्रशंसा अतः पुलिस चौकी कहीं अन्यत्र स्थापित करवाई जायें। तदनंतर वह स्थान पुलिस से रिक्त हो गया। आंदोलनकारी आते-जाते रहे, जुलूस पर जुलूस, हुड़दंग पदाधिकारियों ने आपस में कुछ कानाफूसी की और पर हुड़दंग होते रहे किंतु यह तो “जैनियों का धर्म स्थान 'हम असमर्थ हैं', कहकर भय के मारे एक-एक चलते है" सोचकर कोई भी क्षति नहीं पहुँचाई। बने! तब मुनि श्री ने स्वयं नीचे आकर पुलिस पदाधिकारी लिखने का तात्पर्य यह है मुनि श्री की सूझबूझ से से कहा - "हमारे आचार्य श्री अपने मुनिराजों के साथ विराजमान हैं अतः आप लोगों का यहाँ ठहरना उचित एक दुर्घटना टल गई और जैन समाज एवं संत मण्डली ने .. नहीं है। ऐसे भी यह धर्म स्थान है और धर्मस्थान की संतोष की सांस ली। आचार्य श्री ने मुनि श्री की निडरता निर्भिकता की मुक्त कण्ठ से प्रशंसा की। पवित्रता आपके बूटों की पदचाप से भंग होती है तदुपरांत धर्मस्थान में निष्कारण पुलिस-प्रवेश भी अनधिकृत है, एक और वर्षावास सम्पन्न आप लोग अन्य स्थान ढूंढ लेवें।" यहीं पटियाला संघ आगामी चातुर्मास की विनति पुलिस - अधिकारी ने कहा – “हम तो नगर की लेकर उपस्थित हुआ। सुविधा-सुरक्षा हेतु यहाँ सन्नद्ध है, आपको कोई खतरा गुरुदेव श्री का स्वास्थ्य ठीक न होने से अम्बाला में नहीं होगा।" ही विराजित रहे और सन् १६६६ के पटियाला चातुर्मास ___ मुनि श्री ने कहा - "हम आंदोलनकारी नहीं हैं, पक्ष- हेतु मुनि श्री सुमनमुनि जी म. को अन्य संतों के साथ विपक्ष में भी नहीं हैं, अतः संतों को आंदोलनकारियों से प्रेषित किया। पटियाला चातुर्मास धूमधाम से सम्पन्न कर कोई खतरा नहीं है किन्तु आप लोगों की यहाँ उपस्थिति। मुनिवर श्री पुनः गुरु-चरणों में आ गए। समय धर्मसाधनादेखकर छात्र उग्ररूप ले सकते हैं और कुछ भी दुर्घटना ज्ञानसाधना के साथ व्यतीत होता जा रहा था। घटित हो सकती है, अतः आप लोगों का यहाँ से अन्यत्र आचार्य श्री आनंदऋषि जी म. को अम्बाला से प्रस्थान कर लेना ही उचित है।" विहार करके लुधियाना चातुर्मासार्थ पधारना था। अतः ४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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