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साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि
रोकना चाहा। उन सन्तों की यह दलील थी कि आपके गुरुदेव आने वाले हैं इसलिए आपके प्रतिनिधित्व की कोई आवश्यकता नहीं है । किन्तु श्री सुमनमुनिजी ने अपने अधिकार के लिए चुनौति दी और लिखित पत्र प्रस्तुत किया तत्पश्चात् स्वीकृति प्राप्त हुई । सभी की ओर से प्रतिनिधित्व
५ बैठकों के पश्चात् मन्द गति से विहार करते हुए गुरुदेव श्री पधारे तो फिर से प्रतिनिधित्व का संकट उपस्थित हुआ। उस समय पूरे सम्मेलन के लिए प्रतिनिधित्व का अधिकार पत्र प्रस्तुत किया साथ ही साथ कविरत्न श्री अमरमुनिजी महा. ने भी अपने गुरुदेव मंत्री श्री पृथ्वीचन्द्रजी म. का भी प्रतिनिधित्व मुनि श्री सुमनकुमारजी म. को सौंप दिया। इस प्रकार अजमेर शिखर सम्मेलन में आप ने कुशलता के साथ प्रतिनिधित्व किया।
जयपुर- वर्षावास सुनिश्चित
आचार्य श्री आनन्दऋषि जी म. उपाध्याय श्री अमरमुनिजी म., प्रवर्तक पं. रत्न श्री शुक्लचंदजी म. का आगामी वर्षावास जयपुर होना सुनिश्चित हुआ ।
अजमेर से मदनगंज पदार्पण हुआ गुरुदेवों का । अजमेर शिखर सम्मेलन में भाग लेने वाले कई मूर्धन्य सन्त-पुरुष यहाँ आये । यथा - उपर्युक्त तीनों महापुरुष एवं स्वामी श्री प्रेमचंदजी म., श्री फूलचन्द्रजी म., श्री कन्हैया लाल जी म., श्री नाथूलालजी म. ( बडे - दिवाकरीय) आदि-आदि । मदनगंज कतिपय दिनों के लिए धर्मनगरी के रूप में परिणित हो गई ।
आणाए धम्मो
किशनगढ़ संघ ने भी क्षेत्र स्पर्शन की विनति की तो क्षेत्र स्पर्शने एवं व्याख्यान - श्रवण कराने हेतु श्री सुमनमुनि
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जी म. को वहाँ जाने की आज्ञा दी। वहाँ रात्रि में सार्वजनिक प्रवचन का कार्यक्रम बना । श्री सुमनमुनि जी म. प्रतिदिन सायं आहारादि करके किशनगढ़ पधारते एवं रात्रिव्याख्यान एवं प्रातःकालीन प्रार्थना करवाकर पुनः मदनगंज पधार जाते ।
व्यतीत हुआ वर्षावास
मदनगंज से सभी दिग्गज संत विहार करके यथासमय चातुर्मासार्थ आदर्शनगर जयपुर पधारे। आदर्शनगर से लालभवन ( चौड़ा रास्ता ) पधारे ।
आचार्य श्री आनन्दऋषि जी म. अस्वस्थ होने के कारण कुछ समय तक अस्पताल में ही रहे। प्रवर्त्तक श्री जी म. ने भी स्वास्थ्य की अनुकूलता को दृष्टिगत रखते हुए आदर्श नगर में ही वर्षावास व्यतीत किया। इसी वर्षावास में श्रावक कर्तव्य एवं देवाधिदेव रचना का प्रकाशन हुआ । वर्षावास सानंद व्यतीत हुआ । धर्मध्यान भी अत्यधिक हुआ।
अधिकारों की रक्षा के लिए -
परम श्रद्धेय मुनि श्री सुमनकुमार जी म. आचार्य प्रवर की गरिमा एवं अधिकार की रक्षा के लिए सदैव दृढ़ता के साथ तत्पर रहते थे । प्रवर्त्तक श्री जी गुरुदेव एवं आचार्यश्री, श्री पूनमचंद जी बड़ेर के बंगले में विराजमान थे ।
श्री सुमनमुनि जी म. लालभवन में प्रवचन देकर पुनः गुरुदेव श्री के चरणों में आ जाते। प्रतिदिन का यही कार्यक्रम था। एक दिन संघ के मंत्री महोदय दो-तीन सज्जनों को साथ लेकर आये और आचार्य - प्रवर श्री को कहने लगे कि “. ... अमुक संत का पत्र आया था कि हमें अजमेर चातुर्मास के लिए जाना है, आचार्य श्री जी यदि आज्ञा प्रदान करें तो हम जयपुर आकर उनके दर्शन लाभ लेते हुए चले जायें.... । ” तदनन्तर मंत्री जी बोले – “मैंने
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