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________________ स्वामी श्री मदनलालजी म. को पूर्व घटित घटनाओं को अपनी झोली में डाल देने की बात कही किंतु स्वामी जी म. ने इतना ही कहा – “पूज्य जी महाराज ! आप भी मजबूर हैं और मैं भी मजबूर हूँ... समय हाथ से निकल गया... । ” आचार्य देव ने उनसे क्षमायाचना की और संघ में सम्मिलित होने का आग्रह किया.. किंतु आचार्य श्री को निराशा ही हाथ लगी । ३० जनवरी १६६२ को आचार्य श्री का रात्रि में २ बजे संथारा के साथ समाधिमरण हो गया। धन्य हैं, पुनीत आत्माओं को सन् १६५२ जोधपुर-संथारा ( श्रुताचार्य श्री चौथमलजी म.सा. का) के बाद यह द्वितीय अवसर था। दोनों महापुरुषों का मृत्यु-महोत्सव सन्निकटता से मुनि श्री सुमनकुमारजी म. ने देखा। एक महापुरुष का दस वर्ष पूर्व, द्वितीय महापुरुष का भी ठीक दस वर्ष पश्चात् । दोनों महापुरुषों में अपार आत्मिक शान्ति विद्यमान थी तथा रोग ग्रस्त होते हुए भी परम समाधि भाव में तल्लीन थे । धन्य है, ऐसी पुनीत आत्माओं को, जो मृत्यु से भयभीत न होकर स्वतः ही मृत्यु का आलिङ्गन करते हैं । १६६२ का चातुर्मास - सम्पन्न लुधियाना से प्रस्थान करके गुर्जरवाल, रायकोट, जगरांव, मोगा, जीरा, सुल्तानपुर, लोइयाँ, शाहकोट, नकोदर, जालंधर, लुधियाना, अहमदगढ़ मंडी, धुरी होते. हुए संगरूर में चातुर्मास किया - सन् १६६२ का । प्रवर्तक श्री जी म. ने १६६२ का वर्षावास अम्बाला शहर में व्यतीत किया । लेखनी चल पड़ी तो संगरूर चातुर्मास सुसम्पन्न करके सुनाम एवं भीखी पधारे। श्री सुमनकुमार जी म. से प्रेरणा प्राप्त कर वहाँ के Jain Education International सर्वतोमुखी व्यक्तित्व धर्म-प्रेमियों ने वसन्त पञ्चमी के दिन स्थानक का शिलान्यास किया। भीखी से नाभा, पटियाला, राजपुरा होते हुए आप श्री अम्बाला आये । यहाँ पर तत्त्व चिन्तामणि भाग२ लेखन एवं सम्पादन किया तदनन्तर प्रकाशित हुआ । यहाँ से विहार कर राजपुरा, सरहन्द, बस्सी, गोविन्दगढ़ मण्डी, खन्ना, लुधियाना होते हुए जालन्धर पधारे । यहाँ तत्त्व चिंतामणि भाग-३ का प्रकाशन हुआ। रायकोट हेतु चातुर्मास की स्वीकृति प्रदान कर देने पर आप भीखी, मानसा, बुडलाढ़ा, बरनाला होते हुए रायकोट पधारे । १६६३ का चातुर्मास रायकोट में सम्पन्न हुआ । इस चातुर्मास में हस्तलिखित “ श्रावक सज्झाय" की एक पत्रावलि के आधार पर मुनि श्री सुमनकुमार जी म. ने 'श्रावक कर्तव्य' पुस्तक का आलेखन किया । रायकोट चातुर्मास के बाद बरनाला, बुढलाढा, रतिया, भिवानी, हांसी-हिसार होते हुए नारनौल पहुँचे । नारनौल से निजामपुर रेल्वे लाईन से विहार करते हुए फूलेरा, रिंगस, हरमाड़ा, मदनगंज होते हुए अजमेर पहुँचे । अजमेर शिखर सम्मेलन सन् १६६४ में अजमेर में श्रमण संघीय शिखर सम्मेलन आयोजित हुआ। पंजाब श्रमण संघ की ओर से प्रतिनिधित्व श्री प्रवर्तक जी म. को सौंपा गया किन्तु प्रवर्तक श्री शुक्लचन्द जी म. अस्वस्थ होने के कारण अम्बाला शहर से शीघ्रातिशीघ्र नहीं आ सकते थे। अतः आप श्री को अपना प्रतिनिधित्व सौंपते हुए शीघ्रातिशीघ्र विहार करके अजमेर पहुँचने का निर्देश दिया था। मुनि श्री सुमन कुमार जी म. अब प्रतिनिधि तो थे ही साथ ही साथ मुनि श्री सुशीलकुमारजी म. एवं कवि श्री चन्दनमुनि जी म. की प्रौक्सी भी आपको प्रदान कर दी गई। दी चुनौति, मिली स्वीकृति सम्मेलन प्रारंभ होते ही कतिपय मूर्धन्य सन्तों ने प्रतिनिधित्व करने से मुनि श्री सुमनकुमार जी म. को For Private & Personal Use Only ३७ www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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