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________________ साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि की दूरी पर संगरूर (जिला) आए। यहाँ बाजार में दुकानों पर रहे कमरों में स्थानक था, फलतः मुनिश्री ने उसके जीर्णोधार की प्रेरणा दी और विशाल हॉल का निर्माण हुआ। १६५६ का चातुर्मास संघ की आग्रह भरी विनति को दृष्टिगत रखते हुए सुनाम के लिए घोषित हुआ। निवेदन मानकर..... १६५६ के वर्षावास में लाला रलाराम जी जैन, भागचन्दजी, लाला ताराचंदजी, हकीम मिलखी राम जी आदि श्रावकों के आग्रहभरे निवेदन को स्वीकार कर मुनि श्री सुमनकुमारजी म. ने सर्वप्रथम शास्त्र श्रवण कराया। आप श्री ने ज्ञाताधर्म कथांग सूत्र का वाचन किया। इसी वर्षावास से आपश्री की शास्त्रवाचन की रूचि विकसित खरड़, डेरावसी होते हुए अम्बाला शहर पधारे। यहाँ प्रवर्तक श्री जी म. विराजमान थे। उनकी सेवा में रत रहते हुए तत्त्व-चिंतामणि के प्रथम भाग का लेखन-सम्पादन मुनि श्री जी ने किया। होशियारपुर, बलाचौर, नवां शहर आदि क्षेत्रों की चातुर्मासार्थ पुरजोर विनतियाँ थी। सभी सन्त-प्रवरों का सन् १६६१ का चातुर्मास नवांशहर के लिए घोषित हुआ। १६६१ के वर्षावास में मुनि श्री सुमनकुमार जी म. ने इंगलिश में B.A. ऑनर्स का कोर्स किया। शिवानी स्कूल के प्राध्यापक ने अध्ययन करवाया। धर्म के प्रभाव से इस वर्षावास के पश्चात बलाचौर पधारे। वहाँ 'अष्टग्रही' का बड़ा शोर-शराबा था। गुरुदेव श्री ने धर्मध्यान की प्रबल प्रेरणा दी और कहा - "धर्म के प्रभाव से सारे ग्रह निष्फल हो जाते हैं / निष्प्रभावी बन जाते है अतः दत्तचित्त होकर धर्मध्यान करो।" यहीं पर दुःखद समाचार प्राप्त हुआ कि आचार्य श्री आत्माराम जी म. अस्वस्थ हैं। गुरुदेव श्री तत्काल विहार करके नवांशहर होते हुए फिलौर से लुधियाना पहुंचे। लगभग अर्द्धमास वहाँ स्थिरता रही। श्री रघुवरदयाल जी महा., शेरेपंजाब स्वामी श्री प्रेमचंदजी म., श्री जगदीशमुनि जी म., श्री विमलमुनि जी म. आदि सन्त-प्रमुख एवं प्रमुख साध्वियों के सिंघाडें वहाँ आचार्यदेव के श्री चरणों में सेवार्थ उपस्थित हुए। संत-सतियों की संख्या लगभग १५० रही होगी। व्या.वाच. स्वामी श्री मदनलाल जी म. भी शिष्य-सम्पदा सहित पधारे थे। शास्त्र वाचन सुनाम से विहार करके पुनः संगरूर धुरी, मालेर कोटला, रायकोट, लुधियाना, फगवाड़ा, जालंधर, कपूरथला, सुलतानपुर लोदी, शाहकोट, नकोदर, जालंधर एवं इनके मध्यवर्ती क्षेत्रों में धर्म की जहोजलाली करते हुए १६६० का वर्षावास कपूरथला में किया। चातुर्मास पूर्व मार्च मास में सुलतानपुर लोधी में मैट्रिक अंग्रेजी की परीक्षा पंजाब बोर्ड से उत्तीर्ण की एवं साथ ही 'हिन्दी भूषण' पंजाब विश्वविद्यालय से परीक्षा पास की। ___ यहाँ पर संघाध्यक्ष थे - श्री पृथ्वीराजजी जैन 'वकील' । उन्होंने उत्तराध्ययन सूत्र श्रवण की इच्छा व्यक्त की। फलतः चातुर्मास में उत्तराध्ययन सूत्र का वाचन हुआ। अंग्रेजी भाषा भी जरूरी है चातुर्मास की समाप्ति के बाद कपूरथला, जालन्धर, फगवाड़ा, बंगा, नवां शहर, बलाचौर, रोपड़, कराली, हृदय विदारक दृश्यः उस समय का दृश्य बड़ा ही हृदय विदारक एवं मन भरने वाला था जब आचार्य श्री ने अपनी झोली फैलाकर ३६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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