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________________ सर्वतोमुखी व्यक्तित्व हुए भिवानी शहर पहुँचे। यह सेठों की भियाणी कहलाती थी। यहाँ तेरापंथ जैन समाज के घर अधिक हैं। स्थानकवासी घर भी हैं। यहाँ कन्या पाठशाला के लिए युवामुनि जी ने प्रेरणा दी और महावीर-जयन्ति की पावन वेला में भगवान महावीर जैन कन्या पाठशाला का उद्घाटन श्री रामशरणदास जैन काल के करकमळों द्वारा हुआ। सर्वप्रथम शिक्षिका थी - श्री सुमित्रा बाई जैन (पंजाबी)। बालिकाओं की बढ़ोतरी होने पर श्री बीना (अग्रवाल) सहयोगी बनी। तीन साल तक यह पाठशाला प्राईमरी के रूप में चलती रही तदनन्तर मिडिल स्कूल में परिवर्तित होती हुई हाई स्कूल में परिणित हो गई। आज स्कूल का निजिभवन है। अन्ततः प्रवर्तक श्री जी म. जैन धर्म प्रभावना के लिए विश्व धर्म सम्मेलन में सम्मिलित हुए। जैन कान्फ्रेन्स भवन, राष्ट्रपति भवन, रामलीला ग्राउण्ड, लाल किले के सभी आयोजन आशातीत सफल रहे । प्रवर्तक श्री जी म. के साथ श्री सुमनमुनि जी म. भी इन सभी गतिविधियों से निरन्तर जुड़े रहे। धार्मिक प्रचार-प्रसार की कार्यशैली का उन्हें व्यापक अनुभव प्राप्त हुआ। जहाँ नेह हो, वहाँ..... ___ पूज्य प्रवर्तक श्री जी म. दिल्ली से विहार करके मध्य क्षेत्रों में विचरण करते हुए मेरठ पधारे जहाँ पर तपस्वी श्री निहाल चन्दजी म. स्थानापति थे। उनकी आँखों में मोतिया बिन्दु उभर आया था अतः प्रवर्तक श्री जी म. को सूचना भिजवाई कि आपके यहाँ आने पर ही ऑपरेशन करवाऊंगा क्योंकि तपस्वी जी म. और प्रवर्तक श्री का आपस में अत्यधिक स्नेह था। मेरठ पदार्पण के पश्चात् तपस्वीजी म. की आँखों का ऑपरेशन हुआ। लेखन कार्य : प्रवर्तक गुरुदेव श्री मेरठ में स्वयं ज्वर-पीड़ित हो गए। स्वस्थ होने में दो माह का समय व्यतीत हुआ। वहां से विहार कर उत्तरप्रदेश के विविध क्षेत्रों को पावन करते हुए १६५८ का चातुर्मास मेरठ में ही सम्पन्न किया। पं. रत्न श्री महेन्द्रकुमार जी म., एवं श्री सुमनमुनिजी का १९५८ का चातुर्मास चरखी दादरी हुआ। यहाँ पर युवा मुनि श्री की प्रेरणा से भगवान महावीर जैन पब्लिक लाईब्रेरी की स्थापना हुई। वर्षावास पूर्णतः सफल रहा। लाईब्रेरी हेतु एक कक्ष का निर्माण भी ट्रस्ट द्वारा किया गया। इसी वर्षावास में "श्रमण आवश्यक सूत्र" का सम्पादन - प्रकाशन किया जो मूलपाठ, हिन्दी-अतिचार, टिप्पणी आदि सामग्री से युक्त था। ज्ञान के दीप जले चातुर्मास के पश्चात् यहाँ से विहार कर मानहेडु होते . जैन ही नहीं जैनेतर भी आगे : यहाँ से विहार करके बबानीखेड़ा होते हुए हाँसी पधारे। यहाँ पं. रत्न पूज्य गुरुदेव श्री महेन्द्रमुनि जी म. की दीक्षा सम्पन्न हुई थी। यहाँ भी एस.एस. जैन हाई स्कूल एवं जैन स्थानक हैं। हाँसी से सीसाय, सराणा खेड़ी (जालब खेड़ी) आये। यहाँ कतिपय दिवसों की स्थिरता रही। ग्राम के जैन जैनेत्तरों ने श्रद्धाभक्ति के साथ व्याख्यान - श्रवण सेवा आदि का लाभ लिया। यहाँ जैन स्थानक का अभाव था अतः ग्रामवासियों को स्थानक की भी प्रेरणा दी। यहाँ के दो परिवारों की (लाला शीशराम की दो पुत्रियाँ अनिल और स्नेह प्रभा एवं लाला भगतराम की दो पुत्रियाँ सरिता और अजय है।) चार युवतियों ने जैन भागवती दीक्षा भी ग्रहण की है। आज सरिता उपप्रर्वतिनी डॉ. सरिता जी म. के नाम से सुविख्यात हैं एवं धर्म के व्यापक प्रचार-प्रसार में अग्रणी हैं। सुनाम में किया सुनाम: सराणाखेड़ी से बुड्डा खेड़ा, उकलाना, बिठमड़ा, टोहाना, जाखल, लहरा गागां, सुनाम पधारे। यहाँ से सात माईल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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