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साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि
की यात्रा करने वाले ये एक मात्र प्रथम सन्त थे जब कि उन दिनों इतने साधन भी नहीं थे ।
मुनिश्रेष्ठ श्री फूलचन्दजी म. 'पुप्पभिक्खु' ने सुत्तागमे भाग-प्रथम एवं द्वितीय सम्पादित किए। अत्थागमे का भी प्रकाशन करवाया। परदेशी की प्यारी बातें भाग-१-२ एवं वीरत्थुई आदि कई कृतियों के लेखक एवं सम्पादक थे ।
कांधला वर्षावास :
यहाँ दिल्ली के विविध बाजारों के संघ आगामी चातुर्मास हेतु अपनी-अपनी विनतियाँ लेकर उपस्थित हुए। ... गुडगाँव से महरोली पधारे। वहाँ से चिराग दिल्ली, नई दिल्ली, सदरबाजार आदि क्षेत्रों में धर्म का प्रचार-प्रसार करते हुए कांधला (उ.प्र.) के संघ की अत्याग्रह युक्त विनति को ध्यान में रखते हुए आगमी चातुर्मास करने की स्वीकृति संघ को प्रदान की ।
बड़ौत में भी चातुर्मास :
बड़ौत संघ की भी विनति आग्रह से युक्त थी अतः वहाँ संतद्वय - मुनि श्री सुमनकुमार जी म. एवं श्री नवरतनमुनि जी म. के चातुर्मास की स्वीकृति प्रदान की । युवामुनि श्री सुमनकुमारजी म.सा. का यह प्रथम स्वतंत्र चातुर्मास था ।
सन् १६५७ में चातुर्मास पूर्व दिल्ली से एक सन्त श्री रामजीवनजी म. को लेकर मध्यवर्ती क्षेत्रों में विचरण करते हुए बड़ौत में आचार्य श्री कांशीरामजी म. की पुण्यतिथि मनाने हेतु गए। वहाँ से पुनः दिल्ली की ओर पधारे। दिल्ली चाँदनी चौक में गुरुदेव प्रवर्तक श्री शुक्लचन्दजी म., उपाध्याय श्री प्रेमचंदजी म., श्री जग्गुलाल जी म. श्री सुदर्शन मुनि जी म. आदि विराजमान थे । रंग में भंग :
बड़ौत-चातुर्मास धर्मध्यानादि से युक्त रहा। बड़ौत की एक दुःखद स्मृति भी है। मुनि श्री सुमनकुमार जी म.
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aa मंत्र - स्मरण साधना की वेला में यकायक उदर पीड़ा उत्पन्न हो गई । चिकित्सा करवाने पर भी शान्त नहीं हुई फलतः वहाँ के श्री संघ ने कांधला से गुरुदेव पंडित रल श्री महेन्द्रकुमार जी म. को बुलवाया। यह उदरपीड़ा वर्ष तक रही ।
हुए संघ में सम्मिलित :
चातुर्मास समाप्ति के पश्चात् प्रवर्त्तक श्री जी म. कांधला पधार गए। भंडारी श्री पदममुनि जी म. श्री अमरमुनि जी म. बड़ौत आ गए। भंडारी जी म. को श्रमण संघ में सम्मिलित करवाने के लिए श्री सुमनकुमारजी म. ने प्रवर्तक श्री जी म. से पुरजोर आग्रह किया क्यों कि उन दिनों प्रान्त मंत्रियों को यह अधिकार मिला हुआ था कि वे किसी भी संत को संघ में सम्मिलित कर सकते हैं । ... परिणाम स्वरूप यहाँ भंडारी जी म. आदि ठाणा at श्रमणसंघ में सम्मिलित कर दिया गया। बड़ौत से विहार करके टटीरी मण्डी, बागपत, खेकड़ा पधारे।
खेकड़ा से लूनी शाहदरा होते हुए चाँदनी चौक पधारे। वहाँ से सदर बाजार जैन स्थानक पधारे जहाँ स्थविर श्री भागमल जी म. पं. श्री तिलोकचंदजी म. ठाणा ४ से विराजमान थे ।
विश्वधर्म सम्मेलन :
यहीं मुनि श्री सुशीलकुमार म. विश्वधर्म सम्मेलन का आयोजन करने जा रहे थे। कांधला (१६५७) के चातुर्मास में ही प्रवर्तक श्री जी म. को जैन कान्फ्रेन्स के पदाधिकारी गण एवं दिल्ली के वरिष्ठ श्रावकगण विश्व धर्म सम्मेलन में पधारने के लिए विनति कर चुके थे । गुरुदेव प्रवर्तक श्री जी म. साधु-साध्वियों के साथ विश्व धर्म में सम्मिलित होने की स्वीकृति दे ही चुके थे । तथापि कतिपय वरिष्ठ सन्तों एवं श्रावकों का यह आग्रह रहा कि गुरुदेव श्री इसमें सम्मिलित न हों ।
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