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________________ सर्वतोमुखी व्यक्तित्व यहाँ सार्वजनिक प्रवचन, तत्त्वचर्चा आदि कार्यक्रम हुए। जैन स्थानक के पीछे सेठ मोहन मल जी चौरड़िया के नोहरे में नीम के वृक्ष के नीचे सामूहिकरूप से कल्याणमन्दिर स्तोत्र का सस्वर पाठ तथा श्रावकों द्वारा तत्त्व चर्चा का कार्यक्रम होता था, वह दृश्य आज भी चलचित्र की भाँति मुनि श्री को दृष्टिगत होता है। नागौर में उपाध्याय श्री प्यारचन्दजी म. आदि ठाणा एवं स्वामी श्री रावतमलजी म. के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुए। नागौर से हरसोलाव, भोपालगढ़ एवं इन क्षेत्रों के मध्यवर्ती ग्रामों में विचरण करते हुए चातुर्मासार्थ सिंहपोल जोधपुर में पधारे । सिंहपोल में ही स्वामी श्री कस्तूरचंदजी म. एवं श्री उमेशमुनि जी म. भी थे। गुरुदेव श्री ने इस वर्षावास में आचारांग सूत्र का सांगोपांग पारायण करवाया एवं रविवार तथा पर्व-दिवसों में धर्म-व्याख्यान भी प्रदान करते रहे । चातुर्मास में तप-त्याग एवं धर्मध्यान का जमघट लगा रहा। समय कच्चा एवं पथरीला थी। मार्ग में भयंकर वर्षा के कारण पानी आदि जमा हो जाता था। आज तो वहाँ पक्की सड़क निर्मित है। ऐसे पथरीले एवं उबड़-खाबड़ मार्ग से डोली द्वारा स्थविर मुनिवर को हरमाड़ा तक ले जाने का कार्य श्रम साध्य था। चार दशक बाद जन्मभूमि में : वहाँ से विहार कर रेलवे लाईन के मार्ग से नारनौल, इटेली, मण्डी होते हुए रेवाड़ी को पावन करते दड़ौली फतेहपुरी प्रवर्तक श्री जी म. सा पधारे । यह गाँव पंजाब प्रवर्तक श्री शुक्लचन्दजी म. सा. की जन्मस्थली है। दीक्षा के ४० वर्षोपरान्त यहाँ पदार्पण हुआ। ग्रामवासियों ने भटिण्डा चातुर्मास में खोज निकाली उसी का यह परिणाम था कि १६५६ के वर्षावास के पश्चात् यहाँ पधारे। दड़ोली फतेहपुरी में प्रवर्तक श्री जी म. के प्रवचन सुनने ग्राम के लोग उमड़ पड़े। प्रवर्तक श्री जी ने उन्हें व्यसन मुक्त जीवन जीने की प्रबल प्रेरणा दी तथा ग्रामीणों को मदिरा-पान का त्याग कराया। गुरुदेव प्रवर्तक श्री जी म. का जो जन्म स्थान था उसे स्थानक एवं धर्मशाला का रूप प्रदान किया। ब्राह्मण एवं अहीर (यादव परिवार) महामंत्र नमस्कार सूत्र का स्मरण एवं सामायिक व्रत करने लगे। पंडित श्री खेमचंदजी एवं पं. श्री चंद जी, जिन्होंने कालान्तर में अपने दादा की सेवा करने के लिए साधुवृत्ति धारण कर ली। घुमक्कड़ प्रवृत्ति के संतः अपनी जन्मस्थली से विहार कर प्रवर्तक श्री जी म. पटोदी, गढ़ी होते हुए गुडगाँव पधारे। यहाँ श्रमणसंघीय वयोवृद्ध संत प्रचार मंत्री श्री फूलचन्दजी म. (पुप्प भिक्खु) और मुनि श्री सुमित्रदेव (सुमित भिक्खु) विराजमान थे। ये संत घुमक्कड़ प्रवृत्ति के धर्म प्रसारक थे। प्राकृत भाषा के अधिकारिकी विद्वान थे। कश्मीर से कन्याकुमारी तक विहार-यात्रा : जोधपुर वर्षावास को सानन्द सम्पन्न कर पंजाब प्रवर्तक श्री जी म. सुशिष्यों-प्रशिष्यों सहित विहार करते हुए पुष्कर पधारे तत्पश्चात् अजमेर होते हुए किशनगढ़ - मदनगंज पधारे। मदनगंज में स्वामी श्री फतेहलालजी म. और उपाध्याय श्री कन्हैयालालजी म. 'कमल', श्री मिश्रीलालजी म. आदि सन्त रन विराजमान थे। आकांक्षा पूर्ण हुई श्री फतेहचन्द जी म. चलने-फिरने/विहार कर सकने में असमर्थ थे किंतु उन्हें हरमाड़ा पधारना था। पंजाब प्रवर्तक श्री से अपनी आकांक्षा प्रकट की तो उन्होंने अपने आज्ञानुवर्ती संतों को तत्काल आज्ञा दे दी और डोली में बिठाकर उन्हें हरमाड़ा पहँचाया तदनंतर वे हरमाडा में ही स्थिरवास रहे। मदनगंज से हरमाड़े तक का मार्ग उस ३३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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