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साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि
पुनः विहार :
जोधपुर से विहार करके सोजतरोड़ पदार्पण हुआ। वहाँ प्रायः सभी मूर्धन्य संत पधारे हुए थे। स्वामी भूरालालजी, छोगालालजी, गोकलचन्दजी आदि मेवाड़ी संतो का एवं स्थविर महासन्त श्री ताराचन्दजी म. उपाध्याय श्री पुष्करमुनि । जी म., श्री देवेन्द्रमुनि जी म. श्री गणेशमुनि जी म. आदि का समागम हुआ। पीपाड़ आदि ग्रामों में होते हुए पादूकलां पहुँचे। तदनंतर पीही-थांवला, पुष्कर, अजमेर, मदनगंज, किशनगढ़, हरमाड़ा, फूलेरा (जंक्शन) रीगंस, श्री माधोपुर, खंडेला, नीम का थाना, डाबला, मांवडा, निजामपुर को पावन करते हुए नारनौल पधारे। यहाँ आप सभी की स्थिरता रही। स्थानक छोटा था अतः व्याख्यान दिगंबर धर्मशाला में होता था।
नारनौल से रेवाड़ी, गुड़गांव, दिल्ली फरसते हुए नई दिल्ली पधारे। सेवा ही परम धर्म है :
सन १६५३ में अम्बाला में विराजमान कविरत्न श्री हर्षचन्दजी म. मुनि श्री जौहरीलाल जी म. जो कि प्रवर्तक श्री जी म. के गुरु भ्राता थे। श्री जौहरीलालजी म. अस्वस्थ थे एवं श्री हुकममुनि जी म. भी वृद्ध संत थे इसलिए प्रवर्तक श्रीजी म. के पास यह सूचना आई कि एक सेवार्थी संत की आवश्यकता है।
गर्मी की प्रचण्डता के कारण कोई भी सन्त सेवा में जाने के लिए तत्पर नहीं हुए तो युवामुनि सुमनकुमार जी। म. ने कहा
__ "गुरुदेव ! आपकी आज्ञा हो तो मैं संतों की सेवा में जाने के लिए तत्पर हूँ।” गुरुदेव श्री ने प्रसन्नता के साथ स्वीकृति प्रदान कर दी। साथ ही साथ यह भी निर्देश दिया कि जब तक कोई अन्य सन्त सेवा में नहीं आ जाए तब तक वहीं रहना मेरे आदेश की प्रतीक्षा करना।
जय-जय आत्मबली की:
दिल्ली से मुनि श्री सुमन कुमार जी ने प्रस्थान किया - अम्बाला की ओर ! भयंकर ग्रीष्म ऋतु के ताप ने उनके शरीर को स्वेद बिन्दुओं से नहला दिया किंतु मुनि श्री ने आत्मबल नहीं हारा। थकान से चकनाचूर कदम पीछे हटने को उद्यत थे किंतु उनका मनोबल उन्हें आगे बढ़ने को प्रेरित कर रहा था।... और २०० कि.मी. की यात्रा सप्ताहांत तक पूर्ण कर दिल्ली से अम्बाला पहँच ही गये। वृद्ध स्थाविरी को जब उन्होंने जाकर वन्दन-नमस्कार किया तो उनकी पीठ थपथपाई और कहा – मुनि ! अत्यन्त उग्रविहार करके आये हो, तुम्हारी आत्मशक्ति की भी यह पराकाष्ठा है। पुनः सन्त सेवा :
मुनि श्री सुमनकुमार जी म. उनकी सेवा में तत्पर हुए। सेवा कार्य अत्यन्त कठिन है तथापि मुनि श्री निष्काम भाव से सेवाधर्म में रमण करने लगे। एक वर्ष सेवा कार्य में लगे रहे। तदनन्तर श्री हुकममुनि जी म. के साथ लालडू, डेरावसी, मणीमाजरा आदि स्थानों का विचरण कर पुनः अंबाला आये और गुरुदेव श्री की आज्ञा प्राप्त होने पर पुनः तपस्वी श्री मोहनमुनि जी म. के संग दिल्ली की ओर प्रस्थान किया।
उस समय मालेर कोटला में तपस्वी श्री मोहनमुनिजी म. (श्री चौथमलजी म. के आज्ञानुयायी) विराजमान थे। चातुर्मासोपरान्त अम्बाला शहर पधारे। उनके साथ भी आप श्री ने विहार किया। अम्बाला छावनी, मुलाना, साढोरा, बराड़ा, उगाला, पानीपत, समालखा, गन्नौर, सोनीपत उच्चाखेड़ा, नरेला, आजादपुर होते हुए दिल्ली (सब्जी मण्डी) पधारे । आचार्य-चादर महोत्सव :
गुरुदेव श्री सेवा में संलग्न रहते हुए आप श्री पुनः
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