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सर्वतोमुखी व्यक्तित्व
यहीं गुरुदेव पंडित रल श्री महेन्द्रकुमार जी म. से परमविदुषी साध्वी श्री कुसुमवती जी म. ने प्राकृत कौमुदी का पारायण भी किया।
सभी संत गण तदनन्तर 'गुरुकुल' में पधार गए जहां मंत्रीमंडल की बैठक हुई। इस बैठक में सचित्त-अचित्त, साध्वाचार आदि शास्त्रीय विषयों पर सांगोपांग चर्चा हई। चर्चा में भाग लेने वाले प्रमख सन्त गण थे. उपाध्याय श्री अमरमुनि जी म., बहुश्रुत श्री समर्थ मल जी म. सहमंत्री श्री हस्तीमल जी म. मरुधरकेशरी जी, पंजाब केसरी श्री प्रेमचन्दजी, पंजाब प्रवर्तक श्री शुक्लचंद जी म., प्रभृति । तदनंतर अभिरुचि जगी: ____ मंत्रीमण्डल की बैठक में चर्चा का स्तर एवं विषय उच्चस्तरीय एवं गंभीर थे। आगम के उद्धरण सुनने को मिले। बहुश्रुत जी म. के द्वारा उच्चरित शास्त्र पाठ ने, कवि श्री म. द्वारा टीका, चूर्णि, भाष्य आदि के प्रचुरण उद्धरणों ने युवामुनि श्री सुमनकुमार के मन में शास्त्रस्वाध्याय के प्रति अभिरूचि को और द्विगुणित किया।.. सादड़ी से भी अधिक इस सम्मेलन का प्रभाव मुनि श्री के जीवन पर पड़ा। अभयी को भय कहाँ?
सोजत से संतगण जोधपुर पधारे । सरदारपुरासे विहार कर श्री विजयराजजी कांकरिया के यहाँ ठहरना हुआ। बाबाजी म. आदि सभी वहाँ पधारे। वहाँ से विहार कर महामंदिर आये और महामंदिर दरवाजे के बाहर धर्मशाला में ठहरे। वहाँ (आचार्य) श्री हस्तीमल जी म. भी पधार गये। धर्मशाला की एक कोठरी को खोला तो देखा कि एक नागराज वहाँ बैठे हैं। पदचाप एवं ध्वनि सुनकर उसने अपना फण फैलाया। उसे पकड़ने का प्रयास किया
गया किंतु आचार्य श्री हस्तीमलजी म. ने अपना रजोहरण आगे कर दिया। सर्पराज रजोहरण के गुच्छक भाग से लिपट गया। श्री हस्तीमलजी म. ने अपना रजोहरण वैसे ही थामे रखा और यतनापूर्वक सर्पराज को पहाड की तलहटी में ले गये। रजोहरण धरती पर रखा, साँप ने अपने तन को शिथिल किया और वन-प्रांतर में चला गया। उनकी निर्भिकता देखकर युवामुनि श्री सुमनकुमार जी अत्यधिक प्रभावित हुए। स्वामी चौथ का आदर्श-समाधि-मरण
इन्हीं दिनों जोधपुर (चाँदी हाल) में विराजित सम्यक् श्रुताचार्य आशुकवि स्वामी श्री चौथमलजी महाराज अपने गुरुभ्राताओं (आपने यावज्जीवन किसी को अपना शिष्य नहीं बनाया) के साथ विराजमान थे। स्वामीजी ने अपने जीवन का अवसान निकट जानकर आसाढ़ वद ६ वि. सं. २००६ को संथारा ग्रहण किया। श्रद्धेय प्रांतमंत्री श्री शुक्लचन्द्रजी महाराज भी अपने श्रमणों के साथ विहार कर वहाँ पधारे आगमवेत्ता सहमंत्री (आचार्य) श्री हस्तीमलजी म.सा. भी पधारे। सभी महामुनिवरों का संथारा के समय अपूर्व सहयोग रहा। अत्यंत आत्मीय वातावरण बना रहा। आसाढ़ सुद तृतीया को स्वामीजी महाराज का १३ दिवसीय संथारा पूर्ण हुआ। अपार जनमेदिनी थी, महाप्रयाणयात्रा में। प्रान्तमंत्री श्री शुक्लचन्द्रजी महाराज प्रभृति श्रमणनिष्ठों के संस्मरण आदि 'आदर्श-समाधि-मरण' में संकलित तथा प्रकाशित हैं।
पंजाब प्रवर्तक श्री शुक्लचंद म. ने सत्य ही लिखा
“आप (श्रुताचार्य श्री चौथमलजी म.) संघ सम्प्रदाय के नेता होते हुए भी आपने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार कोई शिष्य नहीं बनाया। धन्य है-त्यागी एवं ऐसी स्वावलम्बी आत्मा को।'
१. आदर्श समाधि मरण - पृष्ठ-१८
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