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________________ साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि प्रथम सुअवसर : मुनि श्री सुमनकुमार जी म. के मानस में उनके प्रति श्रद्धा मुनि श्री सुमनकुमार जी के लिए यह प्रथम सुअवसर जागृत हुई, और मानस पर अमिट प्रभाव पड़ा। था कि इतना मुनिसमूह एक साथ देखा। बुजुर्ग एवं पाली पदार्पण : महारथी संत अपने उम्र के एवं समादरणीय मुनिश्रेष्ठों के चातुर्मास पूर्व, सादड़ी सम्मेलन के पश्चात् नाडोल साथ विचारणा - मंत्रणा आदि में संलग्न थे। मुनि सुमन लोकमान्य संत प्रवर्तक श्री रूपचन्द जी म. 'रजत' की कुमार जी भी अपनी उम्र के युवा साथियों के साथ जन्म स्थली) आदि बड़े ग्रामों में विचरण करते हुए पाली विचार-विमर्श एवं ज्ञान के आदान-प्रदान में संलग्न रहते। पधारे और श्री सिरेहमलजी कांठेड के कपड़ा मार्केट के साथ ही साथ युवा मुनियों से बनाये - प्रगाढ़तर स्नेह- ऊपर ठहरे। यहाँ श्रद्धेय सहमंत्री श्री हस्तीमलजी म. सम्बन्ध। आदि ठाणा एवं श्री लाभचन्द्रजी म., श्री चौथमलजी म. सम्मेलन की कार्यवाही में छोटे-मुनियों एवं साध्वियों तथा साध्वी श्री चांदकंवरजी महाराज ठाणा ८, श्री वदनकंवर को अभिभाषण नहीं करने दिया जाता। इससे युवा मुनि । जी म., श्री मैनासुन्दरी म. आदि का भी पाली पदार्पण एवं साध्वियाँ क्षुब्ध अवश्य थीं। हुआ। सादड़ी सम्मेलन सुचारुरूपेण सम्पन्न हुआ। सादड़ी सम्मेलन के पश्चात् नाडौल होते हुए युवाचार्य श्री शुक्लचंद निर्दयता की पराकाष्ठा : जी म. मरुधरा की हृदय स्थली जोधाणा/जोधपुर-पधारे। पाली से महासती श्री चांदकंवर जी म. ने जोधपुर आप श्री का वर्षावास सिंहपोल में ही सम्पन्न हुआ। की ओर प्रस्थान किया। पाली से लगभग ५ कि. मी. विहार हुआ होगा कि एक साध्वी को ट्रक ने टक्कर मार दी ज्ञानाभ्यास : और घायल कर दिया। ट्रक वालों ने घायल साध्वी को सन् १९५२ के वर्षावास में गुरुदेव श्री की सेवा में पुल के नीचे डाल दिया और भाग खड़े हुए। निमग्न रहते हुए युवा मुनि श्री सुमनकुमार जी ने आगम साध्वियाँ जो कि थोड़ी पीछे थीं उन्होंने शोर भी का अध्ययन गुरुदेव श्री से प्रारंभ किया । लघुकौमुदी एवं मचाया, लोग भागे भी, किंतु तब तक ट्रक को लेकर संस्कृत व्याकरण का अध्ययन जोधपुर संस्कृत महाविद्यालय खलासी एवं ड्राइवर फरार हो चुके थे। पाली संघ को के प्राध्यापक पं श्रीविष्णुदत्त जी शर्मा से आरंभ किया। सूचना मिली, साध्वी जी को उपचारार्थ पुनः पाली लाया ज्ञान का प्रभाव अमिट है : गया। पाली से सोजतसिटी पधारे। रनवंशीय परम्परा के बाबा मुनि श्री सुजानमल जी मंत्री मंडल की बैठक : म. श्री लक्ष्मीचन्द जी म. (बड़े) श्री माणक मुनि जी का यहाँ से विहार कर सोजतसिटी के कोट के स्थानक चातुर्मास भी साथ ही था। श्री लक्ष्मीचन्द जी म. (बड़े) से में लगभग एक मास-कल्प की स्थिरता रही उपर्युक्त संत मध्याह्न में श्राविकाएं शास्त्राभ्यास करती थीं। उनकी मण्डल, एवं मरुधर केशरी श्री मिश्रीमलजी म. श्री रूपचन्दजी अध्ययन शैली अत्यन्त रोचक सरल एवं सरस थी। युवा म. आदि ठाणा के प्रवचनों में जनता उपकृत होती रही। | २८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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