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________________ सर्वतोमुखी व्यक्तित्व क्षेत्र में धर्म का बिगुल बजाते हुए गुडगावाँ, जी.टी. रोड़, राजमार्ग होते हुए अलवर, जयपुर, अजमेर की जनता को धर्म बोध देते हुए व्यावर शहर पधारे। सादड़ी सम्मेलन के लिए जाते हुए उपाध्याय कविरत्न श्री अमरमुनि जी म., दिवाकरीय संत, स्वामी श्री हजारीमल जी म., स्वामी श्री ब्रजलाल जी म., पंडित श्री मधुकर मुनि जी म. आदि “कुन्दन भवन" में एकत्रित हुए। दर्शनों का सौभाग्य मिला । ब्यावर से सेन्दड़ा, बर, रायपुर, झूठा, पीपलिया होते हुए सादड़ी की ओर द्रुतगति से बढ़ने लगे। बगड़ी ग्राम में आचार्य श्री गणेशीलालजी म.सा. के दर्शनों का अनायास ही लाभ सभी को मिला। आचार्य श्री गणेशीलालजी म.ने पंजाब के इन महारथियों की अगुवाई में संतद्वय को जेठाना तक भेजा था। महामुनिवरों के मध्य दीवारें क्यों खड़ी कर देती है?" तदनन्तर आचार्य श्री आत्मारामजी महाराज ने दोनों महापुरुषों को लुधियाना पहुंचने का निर्देश दिया। उधर स्वामीजी श्री प्रेमचंदजी म. को भी वहीं पहुँचने का आदेश प्रदान किया। नियत समय पर महारथी संतों का लुधियाना में पदार्पण हुआ। लुधियाना में पंजाब प्रान्तीय साधु सम्मेलन रखा गया। वहाँ पर सभी महारथियों की शंकाओं का समाधान हुआ और हर्ष की लहर व्याप्त हो गई। साथ ही साथ इस प्रान्तीय साधु सम्मेलन में 'सादड़ी बृहद् साधु सम्मेलन' में जाने हेतु विचार-विमर्श किया गया एवं जाने का निर्णय भी हुआ। चार प्रतिनिधियों की नियुक्ति की गई, वे थे-१ व्याख्यान वाचस्पति श्री मदनलाल जी म. २.. युवाचार्य श्री पं. रत्न शुक्लचंद जी म., ३. उपाध्याय श्री। प्रेमचंदजी म. और ४. श्री विमलचन्दजी म.। लुधियाना से ही सादड़ी सम्मेलन हेतु सभी महारथी संतों ने प्रस्थान किया। सादड़ी सम्मेलन की ओर : लधियाना से अम्बाला जाते हए खन्नामण्डी में जैन दिवाकर श्री चौथमलजी म. के शिष्यरल श्री हीरालालजी म., तपस्वी श्री लाभचन्द जी म., तपस्वी बसन्तीलाल जी श्री दीपचंदजी म., श्री मन्नालालजी म. श्रमण श्रेष्ठों का सम्मिलन हुआ। मण्डी में युवाचार्य श्री का सार्वजनिक भाषण हुआ। अम्बाला शहर में युवाचार्य श्री जी के बड़े गुरुभ्राता कवि श्री हर्षचन्द्र जी म., श्री जौहरी लालजी म. ठाणा २ से विराजमान थे। ___ अम्बाला से अम्बाला छावनी, शाहबाद, कुरुक्षेत्र, करनाल आदि क्षेत्रों को पावन करते हुए युवाचार्य श्री जी का दिल्ली क्षेत्र में पदार्पण हुआ। दिल्ली की धर्मप्रिय जनता आपके पदार्पण के साथ ही भाव विभोर हो उठी और धर्मध्यान की त्रिपथगा में अपने को आकण्ठ भिगोने लगी।... दिल्ली से नई दिल्ली, चिराग दिल्ली, महरोली पाया; ज्ञान-प्रसाद मुनि श्री सुमनकुमारजी म.को नित नवीन संतों की पुरातन चर्चा, सम्प्रदाय-परंपरा के नियम-उपनियम आदि के विषय में, विविध ज्ञान-चर्चा का प्रसाद प्रतिदिन मिलता रहता। अनुभव अमृत से मुनि श्री अपने आपको परिपक्व बनाते जा रहे थे। नियत तिथि पर सादड़ी में सभी मुनिश्रेष्ठों का प्रवेश हुआ। सादड़ी का स्थानक, अली-गली के रिक्त भवन एवं नोहरों में मनियों का बसेरा था। अश्य ततीया के दिन “लौंकाशाह जैन गुरुकुल" का उद्घाटन सेठ श्री मोहनलालजी चौरड़िया के कर-कमलों से सम्पन्न हुआ। उद्घाटन के पश्चात् उसमें भी मुनिवरों का पदार्पण हुआ। यहीं पर श्री अम्बलालजी म., श्री आनंदऋषिजी म. आदि का भी सम्मिलन हुआ। संतों का आपसी सौहार्द एवं प्रेमभाव दर्शनीय था। २७ www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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