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________________ सर्वतोमुखी व्यक्तित्व पंजाब पधारे। आचार्य श्रीआत्माराम जी म. को सादड़ी बीकानेर की ओर प्रस्थान : सम्मेलन में जो चादर समर्पित की गई थी वह युवाचार्य श्री गीदड़वाहा मंडी में ही भीनासर-बीकानेर सम्मेलन के शुक्ल चन्द्रजी म. को प्रदान की गई कि आप जाकर । लिए कॉन्फ्रेन्स का प्रतिनिधि मंडल, श्री संघ का आगमन आचार्य श्री को यह चादर समर्पित कर देना किंतु पंजाब हुआ, फलतः गुरुदेव श्री भटिण्डा पधारे, तदनंतर बीकानेर प्रवर्तक श्री जी म. को अस्वस्थता के कारण पहला चातुर्मास की ओर-विहार किया। जोधपुर में ही और दूसरा चातुर्मास सब्जी मण्डी दिल्ली में करना पड़ा। सन् १६५४ का चातुर्मास जालन्धर हुआ। युवामुनि श्री सुमनकुमार जी म. परमश्रद्धेय श्री राजेन्द्र चातुर्मासोपरान्त लुधियाना - पधारें। वहाँ आचार्य श्री का । मुनि जी म. परम श्रद्धेय गुरुदेव श्री महेन्द्रमुनि जी म. श्री 'चादर-महोत्सव' आयोजित हुआ। इस प्रसंग पर अनेका दाताराम जी म. के साथ भटिंडा से कोटफतेह, माईसर अनेक संत-सती एकत्रित हुए। दो भागवती दीक्षाएं भी खाना, मोडमण्डी, मानसा मण्डी, बुढ़लाढ़ा मंडी, बरेटा, इस अवसर पर सम्पन्न हुई। नवदीक्षित का नाम श्री मथुरा . जाखल, टुहाना, नरवाना होते हुए रोहतक पहुँचे। मुनि जी एवं नवदीक्षिता का नाम साध्वी श्री गुणमालाजी रोहतक में विराजिता महास्थविरा श्री धनदेवीजी म. रखा गया। के दर्शनों का सौभाग्य मिला। तदनंतर विहार करते हुए दिल्ली पधारे। दिल्ली के करोल बाग में लिबर्टी सिनेमा गुरुदेव श्री की सेवा में : हॉल, जो कि हाँसीवाले लाला श्री अमोलकसिंह जी का सन् १६५४ का श्री सुमनमुनि जी म. का चातुर्मास था - में विराजे। उस समय वह खाली ही था। यहाँ से संत स्वामी श्री बेलीराम महाराज की सेवा में रायकोट दरियागंज आदि बाजारों में विचरण करते हुए पुनः रोहतक हुआ। वे अकेले एवं वृद्ध संत थे। कालान्तर में पुनः पधारे। गुरुदेव श्री के चरणों में लुधियाना पहुँचे। लुधियाना से पूज्य गुरुदेव श्री की ठाणा २ से रोहतक में स्थिरता जगरावां, मोगा, फरीदकोट, जेतो, गुनियाना होते हुए रही। श्री राजेन्द्रमनिजी म. एवं. श्री दातारामजी म. ने १६५५ के वर्षावास हेतु गुरुदेव श्री की सेवा में भटिण्डा यू.पी. की ओर विहार किया।... रोहतक से हिसार पहुँचे। यहाँ स्वामी श्री कस्तूरचंदजी म. श्री अमृतमुनि जी हिसार से बीकानेर सम्मेलन के लिए राजगढ़ होते हुए म. श्री ओमीश मुनि म. के दर्शनों का लाभ भी प्राप्त हुआ। शार्दूलशहर पधारे। तदनंतर राजलदेसर पदार्पण हुआ। एक मास की स्थिरता के पश्चात् गीदड़वाहा मंडी पधारे । __ गीदड़वाहा मण्डी में प्रवर्तक श्री जी म., बाबा श्री ज्ञानकोष हुआ समृद्ध माणकचंदजी म., श्री राजेन्द्रमुनि जी म., और श्री शांतिमुनिजी यहाँ व्याख्यान वाचस्पति श्री मदनलाल जी म. आदि म. एवं श्री सुमनमुनि जी का चातुर्मास घोषित किया गया ठाणा के दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त हुआ। ज्ञान-ध्यान था। (तपस्वी श्री सुदर्शन मुनि जी म., पूज्य गुरुदेव श्री __ आदि कई प्रकार के अनुभवों से युवा मुनि श्री ने अपने महेन्द्रमुनिजी म. का चातुर्मास भटिंडा में तथा स्वामी श्री ज्ञान कोष को और अधिक समृद्ध बनाया। इधर विहारकस्तूरचंद जी म. एवं श्री छज्जुमुनि जी म. का अबोहर मार्ग जटिल था। रेत, कंकड, कांटे आदि थे, तथापि मंडी में सम्पन्न हुआ) मुनिवरों की विहार यात्रा सतत आरंभ रही। सड़क का ३१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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