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सर्वतोमुखी व्यक्तित्व
साथ ही साथ कहा कि गुरुदेव श्री की सन्निधि में ही रहकर ज्ञान-साधना में निमग्न हो जाओ।
गिरधारी का विचलित मन पुनः गुरुचरणों में संलग्न हो गया यह थी - माँ के ममत्व की और पिता के दायित्व बोध की जीत।.... वस्तुतः लाला अमरनाथ जी एवं शांतिबाई/दम्पत्ति निःसंतान थे। अतः गिरधारी को शाहकोट । में मातृवत् एवं पितृवत् स्नेह से आप्लावित किया था। प्रतिबोध : ___ गुरुदेव का निकोदर से विहार हो गया और 'श्रीशंकर' होते हुए जालंधर-छावनी पधारे। गिरधारी ने यहाँ गणावच्छेदक स्वामी श्री रघुवरदयालजी म. मुनि श्री निरंजन दास जी, श्री. छज्जूराम जी म., श्री मुनि रामकुमार जी, मुनि अभय कुमार जी ठाणे ५. के दर्शन किए। गुरुदेव श्री की वहाँ कतिपय दिवसों की स्थिरता रही तदनंतर फगवाड़ा' पधारे। फगवाड़ा के ऐतिहासिक स्थलों का निरीक्षण गिरधारी ने किया। तदनंतर आराध्यदेव, श्रद्धेय युवाचार्य श्री शुक्लचन्दजी म. शिष्य-समुदाय सहित वर्षावास . हेतु बंगा (जिला-जालंधर पधारे। वर्षावास धर्मध्यान-तपत्याग के साथ सम्पन्न होने लगा। बंगा चातुर्मास में रहते हुए लाला हरगोपालजी जैन एवं श्री मदनलालजी (जेजों वाले) नवांशहर से प्रति सप्ताह युवाचार्य श्री गुरुदेव श्री के दर्शनार्थ आया करते थे, साथ में गिरधारी को लेकर गए-जेजों में तपस्वी श्री पन्नालालजी, कवि श्री चंदनमुनिजी, ठाणा-२. एवं नवांशहर में साध्वी श्री जयवंती जी म. ठाणा-४ संत-सतियों के दर्शनार्थ ले गये, वहाँ भी गिरधारी को धर्म का प्रतिबोध वैरागी जीवन एवं साधु जीवन के
लिए मिला। ___ गिरधारी गुरुदेव श्री के चरणों में रत रहते हुए धार्मिक ज्ञानार्जन में संलग्न हो गया। वर्षावास में ही सामायिक सूत्र, प्रतिक्रमण सूत्र, पच्चीस बोल, नवतत्त्व, दशवैकालिक सूत्र के अध्ययन एवं अन्य सुभाषित कण्ठाग्र कर लिये। वैराग्य की भावना परिपक्व होने लगी। आचारण में भी विरक्ति सी आने लगी। किंचित् करो प्रतीक्षा....।
एकदा गुरु-चरणों में गिरधारी ने सविनय प्रार्थना की कि गुरुदेव मुझे आपश्री के चरणों में दीक्षित कीजिए ताकि मैं आपकी सेवा आदि सहजता से कर सकूँ। औरअपना जीवन धन्य बना सकू। गुरुदेव श्री ने कहा-“मुमुक्षु बन्धु! थोड़ी और प्रतीक्षा करो।" प्रतीक्षा की, समय बीता। गिरधारी समय-समय पर अपनी भावना को पुनःपुनः शब्द प्रदान करता रहता।...और एक दिन उसकी भावनानुरूप कार्य का श्री गणेश हो गया। दीक्षा-पूर्व संत-दर्शन-यात्रा
मुमुक्षु गिरधारी की संत-दर्शन यात्रा प्रारंभ हुई - श्रीमती महिमादेवी जैन (रावलपीडि) के संग। सर्वप्रथम वे फगवाड़ा पहुँची, मुमुक्षु गिरधारी को लेकर। वहाँ पण्डितरल श्री ज्ञानमुनि जी म. के दर्शन किए तथा प्रवचन श्रवण का लाभ लिया। वहाँ से प्रस्थित होकर वे दोनों खन्ना कवि श्री अमरमुनि जी म. के दर्शनों हेतु गए।
१. फगवाड़ा ऐतिहासिक क्षेत्र हैं। उत्तरार्द्ध लौंकागच्छ की यहाँ बड़ी गादी रही है। यहाँ मेधविनोद एवं वर्षप्रवोध जैसे महान वैयिक और ज्योतिष __ ग्रंथों की रचना यति श्री मेघ ने की। आज भी 'पूजका बाग', पूज की हवेली वहाँ विख्यात हैं। २. श्रीमती महिमादेवीजैन अत्यन्त धर्मशीला एवं सेवा भावी महिला थी। आज भी उनकी दो सुपुत्रियाँ-वर्तमान में साध्वी डॉ. अर्चना जी म. एवं
साध्वी श्री मनीषा जी म. एवं दो सुपुत्र - श्री सुभाष मुनि जी एवं श्री सुधीर मुनिजी म. के नाम से जाने जाते हुए धर्मध्वज / जिनशासन पताका को फहरा रहे हैं। ये श्री सुरेन्द्रमुनि जी म. के शिष्य रत्न हैं
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