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साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि
स्नेह मिला, मन फिरा
निकोदर के ही निवसित लाला श्री मथुरादास जी, कट्टर मूर्तिपूजक थे किंतु साम्प्रदायिक सद्भावों से परिपूरित थे । वे गिरधारी को भोजनार्थ अपने यहाँ ले जाते और प्यार से भोजनादि करवाते । कतिपय दिन व्यतीत हो गये। गिरधारी उनसे घुलमिल गया । एक दिन लालाजी ने भोजनोपरांत कहा -
“ गिरधारी ! तुम स्थानकवासी सम्प्रदाय में दीक्षित क्यों हो रहे हो? ये स्थानकवासी मुनि तो मन्दिर में नहीं जाते, मूर्ति को नहीं मानते अतः तुम हमारे संघ में दीक्षित हो जाओ; तुम्हारा जीवन आचार्य श्री विजयवल्लभ सूरिश्वर जी म.सा. के चरणों में अर्पित कर दो वे तुम्हें तराशकर कोहीनूर हीरे की भाँति चमका देंगे ।"
गिरधारी का किशोर मन बदल गया । मन तो मन है, जिधर प्यार मिला, स्नेह मिला, बस, उसी का हो गया । .... गिरधारी उनकी बात का प्रतिकार न कर सका ।
“मौनं सम्मति लक्षणम्” लाला जी के सन्निकट गिरधारी रहने लगा । .... मानव मन कितना परिवर्तन क्षेत्र में लाकर खड़ा कर देता है । ..... युवाचार्य श्री के संतगण आहारपानी की गवेषणा करते हुए लालाजी के गृह आते तो गिरधारी को अनायास ही दर्शनों का लाभ प्राप्त हो जाता । .... संतों ने भी गिरधारी को लालाजी के यहाँ रहने से रोका - टोका नहीं। लाला जी सूरीश्वरजी म. के आगमन की प्रतीक्षा करने लगे ताकि गिरधारी को उनके श्री चरणों में अर्पित कर सके। तभी एक दिन ..... ।
पाया नेह, फिरी आया मन गेह
लाला श्री अमरनाथ जी अपनी धर्मपत्नी श्री शांतिबाई के साथ शाहकोट से व्यापारार्थ निकोदर आये । निकोदर में रहते हुए उन्होंने गुरुदेवों के भी दर्शनों का लाभ प्राप्त किया। गिरधारी को देखने के लिए उनकी आँखें आतुर थी, परन्तु गिरधारी नहीं दिखा तो उन्होंने सहज ही पूछ
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लिया
"गुरुदेव । गिरधारी कहाँ है ?"
“ गिरधारी है तो यहीं किन्तु तीन-चार दिवस से लाला श्री मथुरादास के घर ही निवास कर रहा है । " युवाचार्यश्री ने कहा ।
“क्यों क्या कारण गुरुदेव !”
“ कारण तो क्या है? किशोर सुलभ मन है, प्रेम-प्यार पाकर वहीं रम गया होगा । "
पुनःवंदन-सुखशांति के पश्चात् दम्पति ने गुरुदेव से विदा ली और बाजार में आ गये । सहसा गिरधारी भी लाला अमरनाथ जी को अकस्मात् बाजार में दिखाई दे ही गया। वे द्रुतगति से चलते हुए गिरधारी के पास आये । शांतिबाई भी आयी । देखते ही देखते उसने गिरधारी को अपने अंक में समेट लिया और दुलारते हुए पूछा
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" बेटे कैसे हो?"
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" ठीक हूँ ।" आप कैसे है ? गिरधारी ने उत्तर देते प्रतिप्रश्न किया ।
" हम सभी आनंद में है । "
एक-दूसरे का कुशलवृत्त ज्ञात करने के बाद लालाजी मूल बात पर उतर आये, उन्होंने गिरधारी से पूछा
" गिरधारी, अभी गुरुदेव श्री की सेवा में नहीं रह रहे हो, क्या कारण है?"
उसने बताया- "मुझे लाला मथुरादासजी ने मंदिरमार्गी संतों के पास भेजने का कहा है अतः वही जाऊँगा । "
गिरधारी के मुख से दो टूक बात सुनकर लाला अमरनाथ जी आश्चर्यचकित रह गये । उन्होंने गिरधारी को स्थानकवासी धर्म की महत्ता एवं गरिमा का बखान करके पुनः स्थानकवासी धर्म पालन की प्रबल प्रेरणा दी ।
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