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साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि
संति संतः कियन्तः?
ने पत्र का अवलोकन किया तथा वि. सं.२००६ कवि श्री अमरमनि जी म. कविरल थे. उन्होंने अपने आसोजशुक्ला त्रयोदशी - सोमवार सन १६५० अक्टबर जीवन में लगभग २५,००० व्यक्तियों को मांसाहारी से
२३ का दिवस दीक्षा के लिए सुनिश्चित किया। दीक्षा की शाकाहारी बनाने का पुनीत कार्य किया। उनकी दिनचर्या
लिखित अनुमति भी आचार्यवर्य ने साथ ही साथ प्रदान
कर दी... वहीं विराजित वयोवृद्धा स्थविरा महासाध्वी श्री का यह अभिन्न अंग था कि वे व्याख्यानोपरांत आहारादि
सौभाग्यवती जी म.एवं. स्थविरा साध्वी श्री लज्जावती करके प्रासुक जल-पात्र लेकर किसी भी ग्राम या नगर के
जी म. आदि विदुषी साध्वियां भी थी। ये पंजाब के वाहर आम रास्ते पर बैठ जाते और राहगीरों से सम्पर्क
सुविख्यात साध्वी जी श्री चंदाजी म. की सुशिष्याएं थी। साधते और शराब माँस छोड़ने का उपदेश देते। लोग उनकी बात मानते भी। एक दिन की बात है कि पटियाला
लुधियाना से अम्वालासिटी आये जहाँ ममतामयी माँ (घग्घर पुल) के पास से गुजर रहे थे कि एक मिलिट्री/
ने एवं प्रव्रज्यार्थी ने उपाध्याय श्री प्रेमचंदजी म. के दर्शनों सेना अधिकारी की जीप उधर से निकली, संकेत देकर
का एवं प्रवचन श्रवण का सुनहरा अवसर पाया। वहाँ से जीप को रोका-पूछा – “माँसाहार करते हो?” अधिकारी
प्रस्थित हो वैराग्यवान् बराड़ा आये, वराड़ा से साढोरा ., ने कहा-“हाँ, महात्माजी! लेकिन मुझे क्यों रोका, मेरे लिए
पहुँचे। कोई सेवा कार्य? कविश्री जी म.ने कहा- “आज से माँस साढोरा में पूज्य प्रवर्तक युवाचार्य श्री के बड़े गुरुभ्राता
और शराब का त्याग कर लो।" अधिकारी ने कुछ पल श्री हर्षचन्द जी म. श्री जौहरीलालजी म. एवं श्री सुरेन्द्र सोचा और सहर्ष प्रतिज्ञा ग्रहण कर ली। तदनंतर उस । मुनि जी म. आदि ठाणा ४ का वर्षावास सानन्द सम्पन्न हो अधिकारी का जीवन शाकाहार से युक्त हो गया।) ...
रहा था। श्रद्धेय मुनिवरों के दर्शन कर गिरधारी कृतकृत्य ऐसे महामना के दर्शन कर गिरधारी कृतकृत्य हो गया।
हो उठा। युवाचार्य श्री का कर-पत्र गुरुवर्य श्री को प्रदान
किया तथा आचार्य श्री का दीक्षा-विषयक स्वीकृति-पत्र आचार्य देव के श्री चरणों में
भी। वहाँ से विरक्तात्मा गिरधारी के संग महिमादेवी
विघ्नसंतोषी जीव का कथन लुधियाना आचार्य आत्मारामजी म. के चरणों में पहुंची। आचार्य श्री ने जव गिरधारी को “आइये वैरागी जी" वैरागी जी के आगमन की खबर साढोरा के घर-घर, कहकर संबोधित किया तो गिरधारी का रोम-रोम विरक्तता जन-जन तक पहुंच गई। “दीक्षा साढोरा में ही होनी है" से नहा उठा और मानस श्रद्धा से परिपूरित । आचार्य श्री ।
तो और भी उत्फुल्लता जन-मानस में बढ़ गई। साढोरा के ने विरक्तात्मा से कण्ठाग्र ज्ञान के विषय में भी पूछा।।
जैन बिरादरी / संघ के पदाधिकारी गण की मिटिंग भी गिरधारी ने स्मृतज्ञान से परिचित किया-आचार्य श्री को।
समायोजित हुई दीक्षा-विषयक विचार-विमर्श के बाद प्रस्ताव
पारित हो गया - गिरधारी की दीक्षा का। दीक्षा की दीक्षानुमति, दीक्षा-तिथि
तैयारियाँ होने लगी। तभी एक विघ्नसंतोषी जीव श्री वै. गिरधारी ने आचार्य श्री के कर-कमलों में युवाचार्य विलायतीराम जी आ गये, वे दिल्ली, केन्द्र-सरकार में श्री का पत्र विनम्रता के साथ प्रदान किया। आचार्य श्री नौकरी करते थे। उन्होंने कहा-"किसे दीक्षा दे रहे हो,
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