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सर्वतोमुखी व्यक्तित्व
लक्षण नजर आए महाभाग बनने के। उनकी अनुभवी/ “मैंने एक बार कह दिया, वहां नहीं जाना है तुम्हें ।' पारखी आँखों से कुछ भी छुपा नहीं रह सका। पलक
“पर क्यों?" झपकते ही भाँप गई थी, पढ़ ली थी जीवन रेखा, जौहरी
"मेरे से बहसबाजी करता है, चुप रह।" की भाँति हीरे की चमक। इस बालक में विलक्षण प्रतिभा
गिरधारी चुप हो गया। उसने फिर-कुछ नहीं कहा अन्तर्निहित है। बस, फिर क्या था। सर्व श्री जेठमलजी
तथापि उसका मन विद्रोह कर उठा कि बुरा कार्य हो और बैद, चेतनलालजी वरड़िया, कालूरामजी आदि को बुलाकर
उसके लिए मना करे तो उचित है किंतु अच्छा करने पर अपनी मनोगत भावना व्यक्त कर ही दी।
रोक क्यों?...रुकमांजी तो मुझे बहुत प्यार करती है, स्नेह स्वार्थी दुनिया
रखती है मुझ पर, ज्ञान की बातें सिखाती है, हिंसा नहीं माता-पिता के निधनोपरांत गिरधारी सिसक-सिसक
करने, झूठ नहीं बोलने की, चोरी नहीं करने की शिक्षाएं
देती है। रोता रहता वियोग में! भला कौन धीर बंधाये। इन दुःखद क्षणों में भी गिरधारी का कोई साथी संगी नहीं ___मना करने के बावजूद भी गिरधारी का क्रम टूटा था। परिजन तो उसके पिता की सम्पत्ति पर कब्जा करने । नहीं, वह उपाश्रय जाता रहा। और रुकमा जी की ममता में लगे हुए थे झूपेनुमा घर, छकड़ा, ऊँट, जमीन-जायदाद । पाता-रहा। रुकमा जी भी गिरधारी को देखकर सोचती - एवं घर बिखरी सम्पत्ति पर परिजनों ने अधिकार जमा
विडंबना लिया। जिसके जो चीज हाथ लगी उसका वे उपभोग करने लगे। रही बात 'सामाजिक कारज' की तो चावल "कैसी है भाग्य की विडंबना, असमय में ही माताऔर चनें बनाकर मृत्युभोज कर दिया और सभी ने अपनी- पिता का साया एक बालक के सिर से उठ जाना उसके अपनी राह ली।
जीवन के लिए कितना भयानक होता है। कौन उसकी
देखभाल करें, कौन उसका लालन-पालन करे, कौन उसकी समाज-भय
आकांक्षाएं-इच्छाएँ पूरी करे। बाल मन तो आखिर बाल समाज के लोगों ने ताने कसे, पारिवारिक जनों पर मन ही है व, कभी खाने की, कभी पहनने की, कभी कुछ "क्यों भई, इसके पिता के निधन का ही इंतजार था कि वस्तु लेने की ललक तो विद्यमान रहती ही है। तथापि वह इस संसार से विदा ले और तुम उसका जमीन- यह बालक कितना निर्लोभी एवं निस्पृही है। न कुछ जायदाद-सम्पत्ति हड़प ले।" गिरधारी और ईसर का कौन मांगता है, न कुछ चाहता है"... रूखाल करेगा?" लोगों के कहने पर श्री मूलचन्द जी
रुकमांजी गुरुवर्या उसका अत्यधिक ख्याल रखती, चौधरी ने गिरधारी ईसर को दस दिवस तक रखा और
खाना खाया या नहीं, जाओ पानी पी लो, आदि दैनंदिनी रुकमा जी के यहाँ रहने से भी गिरधारी को स्पष्टतः मना
क्रियाओं के बारे में पूछती रहती एवं निर्देश देती रहती। कर दिया।
गिरधारी ने कहा - माँ भी तो जाती थी उपाश्रय में. चेतावनी कभी दर्शन हेतु कभी दवा हेतु। फिर वहाँ तो कोई बुराई एक दिन पुनः मूलचंदजी चौधरी ने गिरधारी को नहीं है, अच्छाई ही अच्छाई सिखाई जाती है।" डांटा कि मेरे इंकार करने के बावजूद भी तूं वहाँ गया।...
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