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________________ साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि अपनी संयमीय साधना के अन्तिम पैंतीस वर्ष आपने कश्मीर प्रदेश के उधमपुर जिले में एक छोटे से ग्राम अम्बाला नगर में व्यतीत किए। इन पैंतीस वर्षों में प्रथम 'भलाद' में एक ब्राह्मण परिवार में आपका जन्म हुआ । पच्चीस वर्षों तक आप वृद्ध और ग्लान मुनियों की सेवा पण्डित श्यामसुन्दर जी आपके पिता का तथा श्रीमती में लगे रहे। बाद के दस वर्ष स्वयं की दैहिक असमर्थता- चमेली देवी आपकी माता का नाम था। आप स्वयं सहित वार्द्धक्य के कारण आप अम्बाला में विराजित रहे। सात भाई थे। विद्वद्वर्य प्रसिद्ध वक्ता श्री सुमनमुनि जी म. के आपके यौवन में प्रवेश से पूर्व ही आपके पिता का सेवानिष्ठ शिष्य श्री मेजरमुनि जी महाराज एवं श्री प्रवीण । देहान्त हो गया। भवितव्यता अथवा भाग्योदय से आप मुनि जी म. ने कई वर्षों तक आपकी सेवाराधना की। अपनी माता व भाइयों के साथ पंजाब में आ गए। संयोग ६ मार्च १६६७ अपराह्न सवा दो बजे पूर्ण समाधि से जालन्धर छावनी में आपको पूज्य गुरुदेव प्रवर्तक श्री भाव तथा संलेखना संथारे सहित देहोत्सर्ग करके आप शुक्लचन्द जी महाराज के दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त हुआ। देवलोक वासी बन गए। गुरुदर्शन से आपके पूर्वजन्म के सुसंस्कार जागृत हो गए। आपने अपने अनुज श्री महेन्द्र कुमार सहित मुनि बनने का - निरन्तर ३५ वर्षों तक अम्बाला तीर्थ स्थल बना । संकल्प कर लिया। रहा था। आपकी कृपा से यहाँ सदैव शान्ति, सौहार्द और पारस्परिक सामंजस्य बना रहा। है, गुरुदेव ने आपको अक्षरज्ञान के साथ-साथ मुनि जीवन का प्रारंभिक ज्ञान-प्रदान किया । वि.सं. १९६२ - अनेक लोग आपके आशीष से समृद्ध बने। में भारत केसरी श्री काशीराम जी महाराज को होशियारपुर - अम्बाला के जैन-अजैन बच्चों में यह दृढ़ आस्था पंजाब में चतुर्विध संघ द्वारा आचार्य पद की चादर भेंट थी कि तपस्वी जी म. का मंगलपाठ सुनकर परीक्षा देने की गई। उसी अवसर पर आपने श्रमणीदीक्षा अंगीकार जाएंगे तो अवश्य उत्तीर्ण होंगे। बालभावनाएं शत प्रतिशत करके पूज्य गुरुदेव प्रवर्तक श्री जी का शिष्यत्व स्वीकार पूर्ण भी होती थीं। किया। २) पं.प्रवर श्री राजेन्द्रमुनि जी महाराज पण्डित दशरथजी झा के अध्यापन में आपने हिन्दी, परमादरणीय पण्डितरल पूज्य श्री राजेन्द्र मुनि जी संस्कृत, प्राकृत आदि भाषाओं का गहन गंभीर ज्ञान महाराज एक उत्कृष्ट संयमी और श्रमशील मनिराज थे। अर्जित किया। भाषा ज्ञान के साथ-साथ आपने आगम आपने अपनी संयमीय साधना-सुगन्ध से जैन जगत को और आगमेतर साहित्य का भी गंभीर अध्ययन किया। सुरभित बना दिया था। आगम-अध्ययन आपका प्रमुख प्रिय विषय था। जीवनवृत्तः आप पूज्य प्रवर्तक पण्डित रत्न श्री आगमों के अध्ययन, मनन, परिवर्तन में आप सतत संलग्न शुक्लचन्द जी महाराज के द्वितीय शिष्य तथा पूज्य श्री रहते थे। गुरुदेव सुनाते थे - श्री राजेन्द्र मुनिजी महाराज महेन्द्र कुमारजी महाराज के संयम पक्ष तथा संसार पक्ष से की आगमरुचि इतनी प्रबल थी कि वे अहर्निश आगमों के अग्रज थे। आयु की दृष्टि से आप अपने अनुज से पारायण में लगे रहते थे। रात्री शयन भी उनका अत्यल्प लगभग दस वर्ष बड़े थे। था। वे नियम से प्रतिवर्ष बत्तीस आगमों का सार्थ अध्ययन ५४ ___ सेवामूर्ति तपस्वी रत्न श्री सुदर्शन मुनि जी महाराज | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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