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श्रमण परंपरा का इतिहास
श्रद्धेय चरितनायक गुरु देव का शिष्य परिवार
(१) सेवामूर्ति श्री सुमन्त भद्र मुनि जी
महाराज आप पूज्य गुरुदेव, श्रमणसंघीय सलाहकार-मन्त्री, उपप्रवर्तक श्री सुमनमुनि जी महाराज के ज्येष्ठ शिष्य हैं। सेवाव्रती एवं तपस्वी मुनिराज हैं। पिछले लगभग सोलह वर्षों से आप अपने गुरुदेव की सेवा में संलग्न हैं। गुरु चरणों में आपका समर्पण और श्रद्धा अद्भुत है। ___ आप एक अच्छे वक्ता भी हैं। आपका वक्तव्य सरल, सरस और सारपूर्ण होता है।
तप में भी आपकी अच्छी रुचि रही है। प्रत्येक वर्षावास में आप उपवास, बेले, तेले, अठाई, एकान्तर आदि करते रहते हैं। सन् १६८८ बोलाराम वर्षावास में आपकी तप रुचि को देखते हुए आपको तपस्वी रत्न की उपाधि दी गई थी। शब्द चित्र जन्म : २३ जनवरी १६४८, 'देवबन्द
जिला सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) नाम : श्रीकृष्ण माता : श्रीमती जावित्री देवी पिता : श्रीमान लाला मामचन्द जी अग्रवाल दीक्षा : ८ नवम्बर १६८४ पटियाला (पंजाब) अध्ययन : दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, नंदीसूत्र,
दशाश्रुतस्कंध, आचाराङ्ग आदि परीक्षा : जैनागम श्रुतरत्न प्रथम श्रेणी (पंजाब)
जैन सिद्धान्त विशारद (पाथर्डी) उपाधि : सेवाव्रती, तपस्वी रत्न विशेषता : सेवा, तपस्या, अध्ययनशीलता,
सुमधुरभाषी प्रवचनादि।
(२) परम सेवाभावी सन्त रत्न
श्री गुणभद्र मुनि जी महाराज
श्री मेजर मुनिजी महाराज के नाम से जैन समाजे में ख्यात पूज्य श्री गुणभद्र मुनि जी महाराज पूज्य गुरुदेव इतिहास केसरी, श्रमणसंघीय मंत्री श्री सुमन मुनिजी महाराज के द्वितीय शिष्य रत्न हैं। ___ मुनि दीक्षा अंगीकार करते ही आपने स्वयं को वृद्ध
और रुग्ण मनियों की सेवा में अर्पित कर दिया। पूज्य गुरुदेव की आज्ञा लेकर आपने सर्वप्रथम कविरत्न श्रीचन्दनमुनि जी महाराज की गीदड़वाह मण्डी में तीन वर्षों तक सेवा की। उसके बाद मूनक पंजाब में विराजित संयम मूर्ति पण्डित रत्न श्री रणसिंह जी महाराज की सेवा आराधना की। तपस्वीरल श्री सुदर्शनमुनि जी महाराज की सेवा में आप अम्बाला में कई वर्षों तक विराजमान रहे। श्री सत्येन्द्र मुनि जी महाराज व श्री गोविन्दमुनि जी म. की सेवा भी आपने की। उपर्युक्त मुनिराजों में से द्वितीय, तृतीय व पंचम मुनिराज को संथारा कराने का सुयोग आप को ही प्राप्त हुआ।
आपकी सेवा में माँ का वात्सल्य, पिता का दायित्व और शिष्य का समर्पण भाव है।
आप सरल, विनीत, संयमनिष्ठ और तपस्वी मुनि हैं। उर्दू मिश्रित पंजाबी भाषा में आपके प्रवचन श्रोताओं के हृदय में सीधे उतर जाते हैं। आप कविताएं भी करते हैं जिनमें भाव और भाषा का सुन्दर सामञ्जस्य रहता है। जन्म : १८ नवम्बर सन १६३५, खेयोवाली
(पंजाब) माता : श्रीमती निहाल कौर
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