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साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि
लैके महक सोहणी
कविवर श्री विलायतीराम जी जैन ने एक सुन्दर पंजाबी कविता के माध्यम से पूज्यवर्य गुरुदेव श्री महेन्द्र मुनि जी म. के संयम- संगीत को उद्गीत किया है१. शुक्ल पंचमी उधमपुर जिले अन्दर, ब्राह्मण कुल नूं एन्हां शृंगारया सी । श्यामसुन्दर पिता दे घर आके, सारे परिवार दा कालजा ठारयासी । । चमेली मां कौलों लैके महक सोहणी, ओसे महक नूं फेर खिलारया सी । शुक्ल गुरु दी शरण दे विच आके. हस हस हाँसी विच संयम धारया सी । ।
२. चौदह बरया दी उम्र सी भावें छोटी, पर पढ़न लिखन विच मन लगाया एन्हां ।
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हिन्दी संस्कृत प्राकृत अध्ययन करके सुत्ता भाग फेर अपना जगाया एन्हां । । शास्त्र पढ़े ते लित्ता ज्ञान ओत्थों ज्ञान ध्यान विच दिल टिकाया एन्हां । शीतल लेश्या दे धारक 'शुक्ल स्वामी' शुक्ल गुरु कोलों पाया सब कुछ एन्हां । ।
३. महेन्द्र मुनि जी ने कित्ती सी बड़ी सेवा जीवन अपना सफल बनाया एन्हां । पैंतालीस साल संयम पाल के ते चौ पासे यश फैलाया अपना । । 'सुमन मुनि जी ते कित्ती बहुत कृपा ज्ञान ध्यान दा रंग चढ़ाया एन्हां । 'विलायती राम' कोटले दे विच आखिर मोक्ष नगरी नूं अपनाया एन्हां । ।
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अ. भा. वर्ध. स्था. जैन श्रमणसंघ के आचार्यों का संक्षिप्त जीवन परिचय
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