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श्रमण परंपरा का इतिहास
अखिल भारतीय वर्धमान स्थानकवासी श्रमणसंघ के
आचायों का संक्षिप्त जीवन परिचय
श्रमणसंघ के प्रथम पट्टधर आचार्य सम्राट के शृंगार होंगे। अध्ययन प्रारंभ हुआ। कुशाग्र बुद्धि से श्री आत्माराम जी महाराज
आप ज्ञान को हृदयंगम करने लगे।
वि.सं. १६५१, आषाढ़ शुक्ला पंचमी के दिन छतआप अखिल भारतीय वर्धमान स्थानकवासी जैन ।
बनूड़ (जिला पटियाला) में, बारह वर्ष से भी कम अवस्था श्रमण संघ के प्रथम पट्टधर आचार्य मनोनीत हुए थे। यह
___में आपने जिन दीक्षा अंगीकार की और श्रद्धेय श्री शालिग्राम आपके उच्च जीवन और दिव्य साधना का ही परिणाम जी
जी म.के शिष्य बने। मुनित्व अंगीकार करते ही आपने
के था कि अखिल भारतीय मुनिसंघ में आप ही सर्वोच्च
रतीय मुनिसंघ में आप ही सर्वोच्च स्वयं को अध्ययन में डुबो दिया। आपमें प्रबल ज्ञान योग्यता सम्पन्न तथा शास्ता गुण सम्पन्न मुनिराज माने गए पिपासा थी। हिन्दी, संस्कृत, प्राकत, पाली, अपभ्रंश
और चतुर्विध श्री संघ ने समवेत स्वर से आपको अपना आदि भाषाओं का आपने गहन गंभीर ज्ञान अर्जित किया। नेता स्वीकार किया। आपके ऊर्जस्वी - यशस्वी जीवन जैन वाङ्मय का आपने तलस्पर्शी अध्ययन किया। जैनेतर की उज्ज्वल रेखाएं इस प्रकार हैं
दर्शन भी आपके अध्ययन से अछूते नहीं रहे थे। आपका जन्म वि.सं. १६३६, भाद्रपद शुक्ला द्वादशी तदन्तर आपने जैनागमों पर हिन्दी टीकाएं लिखनी के दिन राहों नगरी (पंजाव) में श्रीमान् मनसाराम की प्रारंभ की। आप द्वारा उल्लिखित टीकाएं सहज, सरल धर्मपत्नी श्रीमती परमेश्वरी देवी की रत्नकुक्षी से हुआ। और अत्यन्त विस्तृत हैं। ढाई हजार वर्षों में आप पहले यह एक सभ्य, सुसंस्कारी और प्रतिष्ठित क्षत्रिय (चोपड़ा)।
मुनि थे जिन्होंने आगमों पर इतनी सरल और बृहद् परिवार था। पुण्यवान पुत्र के अवतरण से सब ओर हर्ष ।
टीकाएं लिखीं। आपकी लेखनी से सृजित ग्रन्थों को फैल गया।
देखकर बड़े बड़े विद्वान् चकित रह जाते हैं। आपकी
आगमीय टीकाओं की यह विशेषता है कि उन्हें एक समय बीतने लगा। बहुत बचपन में ही माता-पिता अल्पज्ञ पाठक भी भली भांति समझ लेता है। का साया आपके सिर से उठ गया। दादी ने आपका
आप केवल लिखते ही न थे अपितु मुनियों को पालन-पोषण प्रारंभ किया। पर वह भी अधिक दूर तक
पढ़ाते भी थे। मुनियों को आगमीय वाचनाएं देना आपकी आपकी सहयात्री न रह सकी। माता-पिता और दादी के
दिनचर्या का अहम् अंग था। क्रमिक विरह ने आपके भीतर संसार की अशाश्वतता का
_ वि.सं. १६८६ में आचार्य प्रवर श्री सोहनलाल जी दर्शन भर दिया। यहां-वहां आश्रय पाते आप लुधियाना
महाराज ने आपको पंजाब श्रमण सम्प्रदाय का उपाध्याय आ गए। यहीं पर संयोग से आपको वह आश्रय मिला
पद प्रदान किया। पंजाब परम्परा में आप पहले श्रमण थे जो कभी अनाश्रय में बदलने वाला नहीं था। पूज्यवर्य
जो इस पद पर प्रतिष्टि आचार्य श्री मोतीराम जी म. की सन्निधि में आपने स्वयं को अर्पित कर दिया। पूज्य आचार्य देव ने आपकी आचार्य प्रवर पंजाब केसरी श्री काशीराम जी म. के मस्तिष्कीय रेखाओं में पढ़ लिया कि आप कल के जिनशासन स्वर्गवास के पश्चात् पंजाब के चतुर्विध श्री संघ ने आपको
अ.भा.वर्ध.स्था.जैन श्रमणसंघ के आचार्यों का संक्षिप्त जीवन परिचय
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